लीजेंड्री सिंगर मुकेश की आज 47वीं पुण्यतिथि है। 1300 से ज्यादा गाने गा चुके मुकेश कभी राज कपूर की आवाज माने जाते थे। 40 के दशक से अपनी गायकी का सफर शुरू करने वाले मुकेश को गायकी का ट्रैजेडी किंग भी कहा जाता था। उनकी प्रेम कहानी किसी फिल्म से कम नहीं थी।
मुकेश का जन्म दिल्ली के एक माथुर कायस्थ परिवार में 22 जुलाई 1923 को हुआ था। वो 10 भाई-बहनों में एक थे। उनका रुझान हमेशा से संगीत की तरफ था। वो कुंदन लाल सहगल के गीत उनकी स्टाइल में ही गाते थे।
एक दिन उनकी बहन की शादी थी, जिसमें बारात की तरफ से उस वक्त के मशहूर एक्टर-प्रोड्यूसर मोतीलाल आए थे। उसी फंक्शन में भाई-बहनों के कहने पर मुकेश ने सहगल साहब के गीत सुनाए। उनके गीत मोतीलाल को बहुत भा गए, जिसके बाद उन्होंने मुकेश से कहा- मेरे साथ मुंबई चलो, मैं तुम्हारा जीवन सुधारना चाहता हूं।
फिर मोतीलाल ने मुकेश के पिता से बात की। उन्होंने कहा- आपका लड़का इतना बेहतरीन गाता है, फिर ये दिल्ली में क्यों है। इसे तो मुंबई जाना चाहिए। उनकी ये बात सुनकर पिता घबरा से गए। दरअसल, उस वक्त मुकेश की नौकरी लग गई थी। मिडिल क्लास परिवार में ये सारी चीजें बड़ी मायने रखती हैं।
मुकेश के भविष्य को लेकर उनके पिता किसी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे। फिर उनके ताऊ जी ने पिता को समझाया और कहा- बेटे को मुंबई जाकर सपना पूरा करने दो। फिर वो मुकेश को मुंबई भेजने के लिए राजी हो गए। उस वक्त मुकेश की उम्र मजह 17 साल थी।
मोतीलाल की कोई संतान नहीं थी। इस कारण वो मुकेश को अपने सगे बेटे जैसा मानते थे। उन्होंने ताउम्र मुकेश की परवरिश एक बेटे की तरह ही की। हालांकि, जब वो मुकेश को मुंबई लेकर आए, तो कहा- तुम्हें हर एक सुख-सुविधा मिलेगी। खाना मिलेगा, कपड़े मिलेंगे मगर खबरदार एक रुपया भी मुझसे मांगा तो। तुम्हें इंडस्ट्री में अपनी पहचान खुद के दम पर बनानी पड़ेगी। पैसे भी खुद ही कमाने होंगे।
उन्होंने मुकेश को पंडित जगन्नाथ प्रसाद से संगीत की शिक्षा दिलवाई। मुकेश ने भी संगीत के लिए बड़ी मेहनत की, जिसका फल भी उन्हें जल्द ही मिल गया।
म्यूजिक डायरेक्टर अनिल बिस्वास ने मुकेश को पहली बार 1945 की फिल्म पहली नजर में गाने का मौका दिया था। गाने के बोल थे- दिल जलता है, तो जलने दे। इस फिल्म में मोतीलाल बतौर एक्टर नजर आए थे। ये गाना उन्हीं पर फिल्माया भी गया था।
इस फिल्म और गाने से जुड़ा ये किस्सा है कि डायरेक्टर मजहर खान ने कहा था कि अगर लोगों को ये गाना पसंद नहीं आया तो वो ये गाना फिल्म से हटा देंगे। रिलीज के बाद कुछ टाइम के लिए उन्होंने फिल्म से इस गाने को हटा भी दिया था। हालांकि, बाकी सभी लोग समेत अनिल बिस्वास को भी मुकेश की आवाज में ये गाना बहुत पसंद आया था।
बाद में जब दर्शकों को फिल्म में गाना नहीं मिला तो उन्होंने फिल्म में इस गाने को फिर से डालने की मांग की। लोगों को महसूस हुआ कि फिल्म की असली जान ये गाना ही था। लोगों की बढ़ती डिमांड को देखकर इस गाने को वापस जोड़ा गया। दशक बीत गए हैं, लेकिन आज भी ये गाना लोगों के जहन में है।
एक्टिंग में भी हाथ आजमाया लेकिन सफल नहीं रहेमुकेश दिखने में भी बहुत खूबसूरत थे। उनके पास कई फिल्मों में एक्टिंग के ऑफर आए थे। एक-दो फिल्मों में उन्होंने काम किया था, लेकिन बतौर एक्टर वो लोगों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब नहीं रहे। शायद उन्होंने आधे मन से ही एक्टिंग की थी। समय रहते उन्होंने खुद से इस बात को भांप लिया था कि वो सिर्फ बेहतरीन सिंगर ही बन सकते हैं।
राज कपूर और मुकेश का रिश्ता सगे भाइयों जैसा था। राज कपूर का कहना था कि वो मात्र शरीर हैं, उनकी आत्मा और रुह मुकेश हैं। फिल्म आग की शूटिंग के दौरान दोनों की पहली बार मुलाकात हुई थी, जिसके बाद दोनों की दोस्ती ताउम्र रही। दोनों की आवाज भी काफी हद तक मिलती थी। राज कपूर ने भी कुछ फिल्मों के गानों को अपनी आवाज दी थी।
मुकेश के हर सुख-दुःख में राज कपूर उनके साथी रहे। मुकेश के बेटे नितिन मुकेश ने खुलासा किया था- पापा के निधन के बाद ऐसा कोई दिन नहीं बीता कि उन्होंने कॉल करके हमसे बात ना की हो। उनके गुजर जाने के बाद उनकी पत्नी कृष्णा जी हमें कॉल करती थीं।
मुकेश माथुर कायस्थ थे और सरला गुजरात के बड़ौदा की श्रीमाली ब्राह्मण थीं। मुकेश उनकी भाई के दोस्त थे तो घर आना-जाना लगा रहता था। इसी दौरान उनकी और सरला की मुलाकात होती रहती थी। धीरे-धीरे साथ वक्त बिताने से सरला उन्हें पसंद करने लगीं। मुकेश भी उनकी सादगी पर मोहित होकर उन्हें चाहने लगे। दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया।
कुछ समय बाद ये बात दोनों के परिवार वालों को पता चल गई। मुकेश के परिवार को इस रिश्ते से ऐतराज नहीं था लेकिन सरला के परिवार को ये रिश्ता बिल्कुल गवारा नहीं था। ये बात सामने आते ही सरला के घर पर मुकेश का आने पर पाबंदी लगा दी गई। परिवार के बढ़ते विरोध के चलते दोनों ने भागकर शादी करने का फैसला किया था।
मुकेश को पता था कि इस वक्त मोतीलाल ही वो इंसान हैं जो उनकी मदद करेंगे और उनको सही रास्ता दिखाएंगे। हुआ भी ऐसा भी। मोतीलाल ने उनसे कहा- – तुम सरला से शादी करो, मैं कन्यादान करूंगा।
मुकेश और सरला घर से भागते कि उससे पहले ही परिवार वालों ने सरला को नजरबंद कर दिया। घर से निकलने की इजाजत भी नहीं थी। दोनों टाइम का खाना उनके कमरे में पहुंचा दिया जाता था। सरला ने परिवार वालों से कहा था कि वो मर जाएंगी, लेकिन खाना नहीं खाएंगी। इस पर घरवालों का कहना था कि इससे बढ़िया है कि वो मर जाएं, लेकिन शादी तो उस लड़के से नहीं ही कराएंगे। ये सिलसिला कई दिनों तक चला फिर बारिश का मौसम आ गया।
मुकेश बारिश के दिनों में रात-रात भर सरला के घर के नीचे उनकी एक झलक पाने के लिए खड़े रहते थे। सरला की एक दोस्त थीं, जो उनके घर के पास ही रहती थीं। वो सरला से जुड़ी सभी जानकारियां मुकेश तक पहुंचाती थीं। सरला सावन सोमवार का व्रत रखती थीं। भगवान के दर्शन के बाद ही वो कुछ खाती थीं। उन्होंने ये योजना बनाई कि जब वो दर्शन के लिए मंदिर जाएंगी, तभी वहां से वो मुकेश के साथ भागकर शादी कर लेंगी। इस बात की जानकारी उन्होंने खत के जरिए दोस्त की मदद से मुकेश तक पहुंचाई। जिस दिन उन्होंने शादी की योजना बनाई उसी दिन मुकेश का जन्मदिन भी था।
22 जुलाई 1946 के दिन वो घर से बिना चप्पल पहने ही मंदिर के लिए निकल गईं। मंदिर पर मुकेश के दोस्त विजय किशोर दुबे उनका इंतजार कर रहे थे। फिर दोस्त के साथ वो भागकर कांदिवली के एक मंदिर आईं, जहां मुकेश पहले से उनका इंतजार कर रहे थे। फिर दोनों ने शादी की, मोतीलाल ने सरला का कन्यादान किया था। शादी के वक्त मुकेश 23 साल के थे और सरला 18 साल की थीं।
शादी के बाद मुकेश से पास घर नहीं था, तो कुछ दिनों तक दोनों मोतीलाल के घर पर ही रहे, फिर वो लोग एक साल तक सैनेटोरियम में रहे। इसके बाद मुकेश ने एक कमरा किराए पर लिया।
मुकेश अपनी गायिकी को लेकर इस कदर समर्पित थे कि जिस दिन किसी गाने की रिकाॅर्डिंग होती, उस दिन वो खाना नहीं खाते, उपवास पर रहते। वो ऐसा ना करके अपने सुरों को परफेक्ट करना चाहते थे। इसी दिन वो मात्र गरम दूध और गरम पानी का सेवन करते थे। यूं तो वो खाने-पीने के जबरदस्त शौकीन थे।
फिल्म आवारा जैसी फिल्मों के हिट गाने देने के बाद भी मुकेश को स्ट्रगल देखना पड़ा। तंगी का दौर ऐसा था कि दोनों टाइम खाना क्या बनेगा, ये भी नहीं पता होता था। इसके लिए उन्हें पत्नी सरला के गहने भी गिरवी रखने पड़े थे।
मुकेश बेहद कम पढ़े-लिखे थे। उन्हें तो हिंदी लिखनी नहीं आती थी। उर्दू में लिखा करते थे। हालांकि, उन्होंने खुद पर मेहनत की और हिंदी-अंग्रेजी दोनों भाषा सीखीं। ये दौर उन्होंने देखा था इसलिए वो चाहते थे कि उनके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ें।
तंगी थी तो वो बच्चों की फीस जमा करने में भी असमर्थ थे। अधिक समय जब फीस जमा नहीं की गई तो बच्चों को स्कूल से निकाल दिया गया। ये बात जब मुकेश को पता चली तो वो बेचैन हो उठे। तब इस मुसीबत की घड़ी में एक सब्जी वाले ने उनकी मदद की, जिसका एहसान उन्होंने ताउम्र माना।
इस बुरे दौर में मुकेस के कई दोस्तों ने उनकी किसी ना किसी तरह से मदद की। पड़ोस में एक महिला रहती थीं। वो अपने बच्चों के साथ मुकेश के बच्चों के लिए भी खाने के लिए कुछ ना कुछ लाती रहती थीं। वो इस बात की भनक बिल्कुल नहीं लगने देती थीं कि बुरे दिन हैं तो वो मदद के लिए ऐसा कर रही हैं।
मुकेश के बेटे नितिन मुकेश भी म्यूजिक इंडस्ट्री का हिस्सा हैं। मुकेश के साथ के अपने एक्सीपीरियंश को उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत में शेयर किया था। उन्होंने बताया था, मैं पापा के साथ हमेशा रिकॉर्डिंग में जाता था। वहीं से मेरा रुझान भी संगीत की तरफ हो गया। उन्होंने हमेशा मुझे इस चीज के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने भी उन्हीं के गुरुजी पंडित जगन्नाथ प्रसाद से संगीत की शिक्षा ली।
पापा ने लता दीदी को ब्रेक नहीं दिया था। उन्होंने बस दीदी के करियर के शुरुआती दिनों में मदद की थी। दीदी पापा को बड़ा भाई मानती थीं। दीदी की मां उन्हें अकेले रिकॉर्डिंग के लिए नहीं भेजती थीं, वो थोड़ा डरती थीं। इसी कारण पापा उन्हें हमेशा रिकॉर्डिंग के लिए ले जाया करते थे। पापा ने पूरी जिंदगी बड़ा भाई बनकर दीदी का साथ दिया।
पापा का जो अंतिम कॉन्सर्ट अमेरिका में था, लता दीदी भी उनके साथ गई थीं। कुछ दिनों से पापा की तबीयत खराब चल रही थी, जिसके बाद उन्होंने दीदी से कहा- आप दो गाने नितिन से गवा लें, इससे मुझे भी थोड़ा आराम मिल जाएगा और मेरा सपना भी पूरा हो जाएगा कि उसने आपके साथ परफॉर्मेंस दी। इस बात पर दीदी ने भी सहमति जताई थी। मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। जब शो शुरू हुआ तब दीदी ने मुझे स्टेज पर बुलाया और गाने की गुजारिश की। ये पल मेरे लिए बेहद खास था, क्योंकि इस शो में मैंने पापा के सामने अपनी परफॉर्मेंस दी, जो उन्हें बहुत पसंद आई थी।
पापा के चले जाने के बाद दीदी ने ताउम्र मेरा साथ दिया। वो अपने हर कार्यक्रम में मुझे बुलाती थीं। उनकी बदौलत मैंने पूरी दुनिया देखी है। आए दिन वो कॉल और मैसेज से हाल-चाल पूछती थीं। कोविड के दौरान वो हर दिन कॉल करके तबीयत की जानकारी लेती थीं। इस दौरान उन्होंने मुझे राम दरबार की मूर्ति भेजी थी, जो आज भी मेरे मंदिर में रखी हुई है।