रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे तनाव के बीच भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में इस तनाव के मुद्दे पर चर्चा की मांग वाली वोटिंग में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है। भारत ने सुरक्षा परिषद के प्रक्रियात्मक मतदान में भाग नहीं लिया और कहा कि शांत और रचनात्मक कूटनीति समय की आवश्यकता है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के बड़े हित में सभी पक्षों द्वारा तनाव बढ़ाने वाले किसी भी कदम से बचना चाहिए। भारत ने यह निर्णय तब लिया जब सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव लाया गया जिसमें यूक्रेन के सीमा हालात पर चर्चा करने की मांग की गई।
दरअसल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस-यूक्रेन विवाद पर चर्चा के लिए होने वाली बैठक से पहले सोमवार को प्रक्रियात्मक मतदान का आह्वान किया गया। परिषद के स्थायी और वीटो-अधिकार प्राप्त सदस्य रूस ने यह निर्धारित करने के लिए एक प्रक्रियात्मक वोट का आह्वान किया कि क्या खुली बैठक आगे बढ़नी चाहिए। अमेरिका के अनुरोध पर हुई बैठक को आगे बढ़ाने के लिए परिषद को नौ मतों की आवश्यकता थी। रूस और चीन ने बैठक के खिलाफ मतदान किया, जबकि भारत, गैबॉन और केन्या ने भाग नहीं लिया।
इसके अलावा फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन सहित परिषद के अन्य सभी सदस्यों ने बैठक के चलने के पक्ष में मतदान किया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने परिषद में कहा कि नई दिल्ली रूस और अमेरिका के बीच चल रही उच्च-स्तरीय सुरक्षा वार्ता के साथ-साथ पेरिस में नॉरमैंडी प्रारूप के तहत यूक्रेन से संबंधित घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रही है।
भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत का हित एक ऐसा समाधान खोजने में है जो सभी देशों के वैध सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए तनाव को तत्काल कम कर सके और इसका उद्देश्य क्षेत्र तथा उसके बाहर दीर्घकालिक शांति और स्थिरता हासिल करना हो। शांत और रचनात्मक कूटनीति समय की मांग है। अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा हासिल करने के व्यापक हित में सभी पक्षों द्वारा तनाव बढ़ाने वाले किसी भी कदम से बचा जाना चाहिए।
तिरुमूर्ति ने परिषद को यह भी बताया कि 20,000 से अधिक भारतीय छात्र और नागरिक यूक्रेन के सीमावर्ती क्षेत्रों सहित विभिन्न हिस्सों में रहते हैं और अध्ययन करते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय नागरिकों की भलाई हमारे लिए प्राथमिकता है। भारत ने कहा कि वह सभी संबंधित पक्षों के संपर्क में भी है और यह विचार है कि इस मुद्दे को केवल राजनयिक बातचीत के माध्यम से हल किया जा सकता है। इस संदर्भ में नई दिल्ली मिन्स्क समझौते और नॉरमैंडी प्रारूप सहित चल रहे प्रयासों का स्वागत करती है।
अब सवाल यह उठता है कि भारत ने ऐसा क्यों किया। वैश्विक राजनीतिक के एक्सपर्ट्स का मानना है कि कूटनीतिक स्तर पर ऐसा जरूरी भी था। अगर भारत रूस के पक्ष में वोट देता, तो अमेरिका समेत कई अन्य पश्चिमी देश नाराज हो सकते थे. दूसरी तरफ अगर भारत यूक्रेन के समर्थन करता, तो इससे रूस के साथ रिश्तों पर गंभीर असर पड़ सकता था। ऐसे में भारत ने बीच का रास्ता चुनते हुए मतदान से दूरी बनाए रखी।
बता दें कि यूक्रेन और रूस के बीच इस समय युद्ध जैसे हालात हैं। रूस ने अपनी सीमा पर एक लाख सैनिकों को भारी हथियारों के साथ तैनात किया हुआ है। वहीं यूक्रेन भी अमेरिका और बाकी नाटो देशों के हथियारों को रूसी सीमा पर भेज रहा है। खबर आई थी कि रूस जल्द ही यूक्रेन पर हमला कर सकता है, हालांकि रूस ने इस बात से इनकार किया था।