आडवाणी युग से मोदी के दौर तक शत्रुघ्न सिन्हा का 35 साल का सफर

 

मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया, सुना है कि तू बेवफा हो गया…..1980 में आई शत्रुघ्न सिन्हा की ही फिल्म ‘दोस्ताना’ का यह गीत वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में उनकी हालत बयां करता है। बॉलीवुड के शॉटगन अब अपनी ही पार्टी के लिए ‘शत्रु’ हो चुके हैं और उनकी अपनी पार्टी उनकी नजर में बेवफा हो चुकी है। भाजपा ने उनका टिकट काट कर रविशंकर प्रसाद को दे दिया है और शत्रुघ्न का दोस्ताना अब कांग्रेस के साथ है।  उनकी अधिकतर फिल्मों की ही तरह राजनीतिक जीवन भी दोस्ती और दुश्मनी के इर्द-गिर्द घूमती रही है। उनकी राजनीति ही राजेश खन्ना से उनकी दोस्ती टूटने का कारण बनी थी। साल 1991 में उपचुनाव में जब लाल कृष्ण आडवाणी की छोड़ी गई सीट नई दिल्ली से वह खड़े हुए, तो उनके सामने दोस्त सुपर स्टार रहे राजेश खन्ना कांग्रेस से उम्मीदवार थे।
शत्रुघ्न चुनाव तो जीत गए, लेकिन राजेश खन्ना से अपनी दोस्ती हार गए।
2009 में जब पटना साहिब से पहली बार सांसद बने, तब भी उन्होंने अपने दोस्त रहे अभिनेता शेखर सुमन को हराया था। दोस्ती और दुश्मनी के बीच उनके फिल्मी सफर की ही तरह राजनीति की डगर भी दोस्ती और दुश्मनी के साथ बीत रही है। रील लाइफ से रियल लाइफ तक शत्रुघ्न ने अबतक न केवल दोस्तों संग बल्कि विरोधियों संग भी दोस्ती निभाई है।

भाजपा में रहते उनकी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव संग भी ठीक संबंध रहे। वहीं, भाजपा से अलग होकर पिछला विधानसभा चुनाव लड़ने वाले नीतीश कुमार की तब भी उन्होंने प्रशंसा की थी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी की भी वह तारीफ कर चुके हैं।

बॉलीवुड के ‘बिहारी बाबू’ का राजनीति में प्रवेश

नौ दिसंबर 1945 को बिहार की राजधानी पटना में एक कायस्थ परिवार में जन्मे बिहारी बाबू यानि शत्रुघ्न सिन्हा प्रारंभिक पढ़ाई के बाद अभिनय सीखने भारतीय फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान(एफटीआईआई) चले गए। एफटीआईआई के बाद वह बॉलीवुड निकल पड़े और वहां करीब 120 से भी ज्यादा फिल्में की।

इस बीच राजनीति में उनकी रुचि हुई। उनके जीवन पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ‘जन आंदोलन’ का बड़ा प्रभाव पड़ा। उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत 1984 में हुई, जब उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।

स्टार प्रचारक से राज्यसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री तक का सफर
पार्टी ने उनके व्यक्तित्व और दमदार आवाज की वजह से उन्हें चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी सौंप दी। उन्हें पहली राजनीतिक कामयाबी 1996 में मिली जब उन्हें बिहार से राज्यसभा सांसद चुना गया। इसके बाद एनडीए के शासन में 2002 में दूसरी बार राज्यसभा के लिए चुना गया।

खुद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इनके काम से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने सिन्हा को अपने कैबिनेट में जगह दी और 2003 में स्वास्थ्य मंत्री बना दिया। 2004 में उन्हें जहाजरानी मंत्री बना दिया गया। वह ऐसे पहले अभिनेता है जो केंद्रीय मंत्री बने। 2009 और 2014 में पटना साहिब से आम चुनाव में जीत चुके शत्रुघ्न फिलहाल 16वीं लोकसभा के सांसद हैं।

अटल-आडवाणी युग में अर्श से मोदी-शाह युग में फर्श तक
भाजपा में शत्रुघ्न सिन्हा लालकृष्ण आडवाणी के करीबी रहे हैं। वह खुद कई मंचों से कह चुके हैं कि राजनीति में उनका पदार्पण आडवाणी जी ने ही कराया। चुनावी मैदान में पहली बार वह आडवाणी की ही सीट से उतरे। साल 1991 में जब लालकृष्ण आडवाणी नई दिल्ली और गुजरात की गांधीनगर से चुनाव लड़े थे। तब दोनों सीट पर उन्हें जीत मिली और उन्होंने नई दिल्ली सीट छोड़ दी थी और यहां उपचुनाव में  शत्रुघ्न सिन्हा पहली बार जीते थे।

कांग्रेस सरकार के लगातार दो कार्यकाल के दौरान जब धीरे-धीरे अटल-आडवाणी युग की समाप्ति होने लगी और 2014 में मोदी लहर में मिली बड़ी जीत के बाद भाजपा की सरकार आई तो पार्टी में एक नए युग की शुरुआत हुई। नरेंद्र मोदी और अमित शाह का युग शुरू हुआ और पुराने खेमे के कई नेता नए खेमे में सक्रिय हो गए। वहीं, शत्रुघ्न पार्टी में तो बने रहे पर पाला नहीं बदल पाए।

मोदी सरकार के कार्यकाल में ही शत्रुघ्न सिन्हा का बागी तेवर दिखने लगा। वहीं, भाजपा ने भी पटना साहिब से उनका टिकट काट रविशंकर प्रसाद को दे दिया।

मंत्रिमंडल में नहीं मिली जगह, तो दिखने लगी नाराजगी
2009 में वह पहली बार पटना साहिब के सांसद बने। यहां उन्होंने बॉलीवुड में अपना आइडल मानने वाले अभिनेता शेखर सुमन को चुनाव में हराया। साल 2014 में उनके खिलाफ कांग्रेस से भोजपुरी अभिनेता कुणाल सिंह तो जदयू से शत्रुघ्न के करीबी डॉ. गोपाल प्रसाद सिन्हा सामने थे, लेकिन शत्रुघ्न फिर से आसानी से जीत गए।

जीत के बावजूद केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें जगह नहीं दी गई, जिसके बाद उनकी नाराजगी साफ दिखने लगी। नाराज शत्रुघ्न सिन्हा पार्टी के खिलाफ लगातार बयानबाजी करते रहे। यहां तक कि पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के साथ मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। सरकार के कई फैसलों की वह खुले मंचों से आलोचना करने लगे।

बॉलीवुड के ‘शॉटगन’ को भाजपा ने कर दिया ‘खामोश’
बीते जनवरी में ममता बनर्जी के बुलावे पर महागठबंधन की रैली में कोलकाता पहुंचे शत्रुघ्न ने मंच से ही लगभी स्पष्ट कर दिया कि वह पार्टी से किनारा कर विपक्ष के साथ खड़े हैं। कई सार्वजनिक मंचों पर पार्टी से बगावत करने को लेकर जब भी उनसे सवाल किया गया तो उनका एक ही जवाब रहा-

 अगर सच कहना बगावत है, तो हां हम बागी हैं।
शत्रुघ्न को शायद उनका टिकट काटे जाने का अंदाजा पहले से ही था। तभी तो वह कहते रहे कि सिचुएशन कोई भी हो, लोकेशन वही रहेगा। यानि पार्टी टिकट दे या न दे, वह पटना साहिब से ही चुनाव लड़ेंगे। टिकट बांटने का समय आया तो वही हुआ जिसका अंदाजा था। पार्टी ने एक बार फिर शत्रु को खामोश कर दिया। उनके बागी तेवर का ही फलाफल है कि कभी अटल-आडवाणी के खास रहे शत्रुघ्न अपनी भाजपा की ‘शत्रु’ पार्टी कांग्रेस के खास हो गए।

 

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