आज शशि कपूर की 86वीं बर्थ एनिवर्सरी है। शशि वो स्टार थे जिनकी स्माइल और स्टाइल पर लड़कियां फिदा हो जाती थीं, लेकिन उन्होंने ताउम्र सिर्फ एक ही लड़की से प्यार किया। वो थीं उनकी पत्नी जेनिफर केंडल।
फिल्मी करियर की शुरुआत भी उन्होंने पत्नी की खराब हालत देख कर की थी। अपने करियर में शशि ने 116 फिल्मों में काम किया। इनमें से 61 इनकी सोलो हीरो फिल्में रहीं, ज्यादातर सफल थीं।
बात 1937 के आस-पास की है। पृथ्वीराज कपूर इंपीरियल फिल्म कंपनी की फिल्मों में बतौर सपोर्टिंग आर्टिस्ट काम कर रहे थे। साथ में खुद को हीरो के रूप में स्थापित करने की जद्दोजहद भी चल रही थी। इसी वक्त पत्नी रामसरणी प्रेग्नेंट हो गईं। प्रेग्नेंसी की बात सुनते ही वो दुखी हो गईं। दरअसल, इससे पहले उनकी संतान राज कपूर और शम्मी कपूर थे। वो इस तीसरे बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थीं।
ऐसे में एबॉर्शन की भी कोशिश की। कभी साइकिल से गिर जातीं तो कभी सीढ़ियों से। कभी-कभी तो वो रस्सी कूदने लगती थीं। इन तमाम कोशिशों के नाकाम होने के बाद 18 मार्च 1938 को उन्होंने तीसरे बेटे को जन्म दिया, जिसे दुनिया ने शशि कपूर के नाम से जाना। यह बात खुद शशि कपूर ने 1995 में फिल्मीबीट मैगजीन में कही थीं।
शशि के जन्म के बाद पृथ्वीराज कपूर ने पृथ्वी थिएटर ग्रुप की शुरुआत की थी। शशि का बचपन थिएटर के सेट पर ही बीता। इसी का असर रहा कि कम उम्र में ही उनका रुझान फिल्मों की तरफ हो गया। चार साल की उम्र से ही वे अपने पिता के नाटकों में नजर आने लगे। बाद में उन्होंने आग (1948) और आवारा (1951) जैसी फिल्मों में राज कपूर के बचपन का किरदार निभाया।
अपने इसी ख्वाब के साथ वे जिंदगी में आगे बढ़ना चाहते थे, लेकिन पिता पृथ्वीराज कपूर का मानना था कि पहले वे संघर्ष करें और अपनी मेहनत से बतौर एक्टर अपना करियर बनाएं।
शशि कपूर ने मुंबई के डॉन बॉस्को स्कूल से पढ़ाई की थी। यहां भारत के फेमस विकेटकीपर फारुख इंजीनियर उनके क्लासमेट थे। एक दिन दोनों एक साथ बैठकर बातें कर रहे थें, तभी क्लास टीचर ने डस्टर फेंककर शशि के चेहरे की तरफ मारा, लेकिन फारुख ने अचानक से उसे कैच कर लिया।
फारुख ने इस घटना के बारे में बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा था- वो डस्टर शशि की आंख में लगता, लेकिन मैंने उसके चेहरे से एक इंच पहले ही उसे कैच कर लिया। मैं शशि को इस बात के लिए हमेशा चिढ़ाता कि अगर उस दिन मैंने डस्टर नहीं रोका होता, तो उसे फिल्मों में बस डाकू का रोल मिलता।
ये बात 1955 की है। इस वक्त शशि 18 साल के थे। वे पिता के साथ पृथ्वी थिएटर में काम करते थे। उस समय उनके एक प्ले का शो कोलकाता के थिएटर में चल रहा था। पब्लिक डिमांड के चलते शो को कुछ दिनों के लिए और बढ़ा दिया गया था।
एक दिन प्ले शुरू होने से पहले उन्होंने पर्दे से झांक कर यह देखना चाहा कि कितने दर्शक हैं। तभी उनकी नजर चौथी लाइन में बैठी एक विदेशी लड़की पर पड़ी, जो लाल पोल्का डॉट्स का टाॅप पहने हुई थी और अपनी दोस्त के साथ हंस रही थी। उस लड़की को देखते ही शशि उस पर फिदा हो गए। बाद में उन्होंने यह जाना कि वो लड़की शेक्सपियराना थिएटर ग्रुप का हिस्सा है और गॉडफ्रे कैंडल की बेटी जेनिफर कैंडल है।
जेनिफर का भी प्ले उसी थिएटर में होना था, जहां शशि ग्रुप के साथ प्ले कर रहे थे। ऐसा पहली बार था कि शशि किसी लड़की को पसंद करने लगे थे। उन्होंने उनसे मिलने के लिए अपने कजिन शुभिराज से गुजारिश कि वो उनकी मुलाकात जेनिफर से करवा दें।
शुभिराज ने दोनों की मुलाकात का एक प्लान बनाया और उनकी मुलाकात हुई। मुलाकात के समय शशि बहुत घबराए हुए थे, जबकि जेनिफर नॉर्मल थीं। दोनों के बीच कुछ भी कॉमन नहीं था। वो पढ़ी-लिखी थीं, जबकि शशि इस घटना को याद करते हुए खुद को लल्लूराम कहते थे। इसके बाद मुलाकात का सिलसिला जारी रहा।
शशि बहुत ही शर्मीले थे, जिस वजह से जेनिफर उन्हें गे समझने लगी थीं। बाद में जेनिफर का ग्रुप शशि को प्ले देखने के लिए बुलाने लगा। शशि, जेनिफर की मंडली में भी शामिल हो गए। इस दौरान उन्होंने जेनिफर के साथ कई नाटकों में काम किया।एक बार शशि कपूर ऊटी में शो कर रहे थे। वहां पर उन्होंने जेनिफर की मुलाकात अपनी मां और भाभी गीता से करवाई। शम्मी की वाइफ गीता को जेनिफर पहली ही नजर में पसंद आ गईं। मां ने भी जेनिफर को गले लगाया और अपने गले से सोने की चेन निकालकर जेनिफर को पहना दी। शशि, पिता पृथ्वीराज कपूर से अपनी और जेनिफर की शादी की बात करने से घबराते थे। उन्होंने ये जिम्मेदारी अपने बड़े भाई शम्मी को सौंप दी।
शम्मी ने पिता से बात की, लेकिन पृथ्वीराज को ये कतई मंजूर नहीं था कि उनके घर की बहू कोई विदेशी महिला बने। बहुत मनाने के बाद पिता तो मान गए, लेकिन जेनिफर की फैमिली इस रिश्ते से खुश नहीं थी। पिता के मना करने के बाद जेनिफर ने शशि से कहा कि हम बालिग हैं और अपनी मर्जी से शादी कर सकते हैं। फिर 1958 में दोनों ने शादी कर ली।
शादी के एक साल बाद ही जेनिफर ने बेटे कुणाल को जन्म दिया। इस समय तक शशि ने फिल्मी पर्दे पर बतौर लीड एक्टर कदम नहीं रखा था। एक दिन पृथ्वी थिएटर में काम करने वाली अजरा मुमताज ने शशि से कहा- अब जब तुम शादीशुदा हो, क्या तुम्हें अपनी पत्नी की देखभाल करना नहीं सीखना चाहिए?
इस दिन को याद करते हुए शशि ने कहा था- उस दिन मुझे एहसास हुआ कि मैं 21 साल का था और अभी भी अपने माता-पिता के साथ रह रहा था। अभी भी कुछ कमा नहीं रहा था, काम की तलाश भी नहीं कर रहा था। मुझे एहसास हुआ कि जेनिफर अभी भी अलमारी में रखे हुए पिछले साल के ही कपड़े पहने हुए हैं। हमें रेस्टोरेंट में खाने के लिए बाहर गए हुए काफी समय हो गया था। फिर अगले दिन मैं उठा और काम के सिलसिले में सोहराब मोदी के पास चला गया।
लंबे संघर्ष के बाद 1959 में फिल्म गेस्ट हाउस में शशि को बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम करने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने फिल्म दूल्हा-दुल्हन और श्रीमान सत्यवादी में असिस्टेंट डायरेक्टर का काम किया, जिसमें लीड एक्टर उनके भाई राज कपूर थे। 1961 में फिल्म धर्मपुत्र में पहली बार शशि लीड एक्टर के रूप में बड़े पर्दे पर दिखे।
प्रेम पत्र, चार दीवारी, मेंहदी लगी मेरे हाथ जैसी फिल्में करने के बाद शशि कपूर के करियर में डाउनफॉल भी आया था। रोमांटिक हीरो वाले रोल करने की वजह से वो टाइपकास्ट हो गए थे जिस वजह से उन्हें फिल्मों में काम मिलना बंद हो गया। कोई भी हीरोइन उनके साथ काम नहीं करना चाहती थी।
ये दौर ऐसा था कि घर चलाने के लिए भी पैसे नहीं थे। शशि के बेटे कुणाल कपूर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि आर्थिक तंगी से परेशान होकर शशि ने अपनी स्पोर्ट्स कार बेच दी। मां जेनिफर ने भी अपना कीमती सामान बेचना शुरू कर दिया था।
बुरे वक्त में एक्ट्रेस नंदा ने अपने दोस्त शशि कपूर की मदद की थी। नंदा ने उनके साथ फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ में काम किया था। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही। इसकी सफलता के बाद ही शशि का करियर फिर से पटरी पर आ गया था।
1982 शशि के लिए बेहद मुश्किल साल था, जब उन्हें पता चला कि उनकी वाइफ को कोलन कैंसर है। इसके महज 2 साल बाद ही जेनिफर कैंसर से जंग हार गईं और उनका निधन हो गया। पत्नी की मौत के बाद शशि पूरी तरह टूट गए। खाने-पीने का बिल्कुल ध्यान नहीं रखते थे, यही वजह थी कि उनका मोटापा बढ़ने लगा। घंटों अपने अपार्टमेंट में अकेले बैठे रहते थे, किसी से बात नहीं करते थे। इस तरह से वे डिप्रेशन में चले गए, जिससे कभी उबर नहीं पाए।
एक इंटरव्यू में शशि के बेटे कुणाल ने बताया था- जेनिफर की मौत के बाद शशि कपूर पहली बार तब रोए जब एक बार गोवा के बीच से एक बोट लेकर गहरे समुद्र के बीच चले गए थे और चिल्लाते हुए घंटों रोए थे। वो अपने कमरे में भी घंटों चुपचाप बैठे रहते थे। जेनिफर के साथ उन्होंने 28 साल काटे, लेकिन उनके निधन के बाद 31 साल वो उनकी यादों के सहारे जिंदा रहे। उन्होंने खुद कहा था कि 31 सालों में कभी उनके मन में दूसरी शादी का ख्याल नहीं आया।
शशि कपूर का लंबी बीमारी के बाद 2017 में 79 साल की उम्र में निधन हो गया था।