देश में आर्थिक उदारीकरण की बुनियाद रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था को लेकर सतर्क किया है। पूर्व प्रधानमंत्री ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि देश की अर्थव्यवस्था का जैसा बुरा हाल 1991 में था, कुछ वैसी ही स्थिति आने वाले समय में होने वाली है। सरकार इसके लिए तैयार रहे।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह खुश या मगन होने का नहीं, बल्कि आत्ममंथन और विचार करने का वक्त है। आगे का रास्ता 1991 के संकट की तुलना में ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। एक राष्ट्र के तौर पर हमारी प्राथमिकताओं को फिर से तय करने की जरूरत है, ताकि हर भारतीय के लिए स्वस्थ और गरिमामयी जीवन सुनिश्चित हो सके।
2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह 1991 में नरसिम्हा राव की अगुआई में बनी सरकार में वित्त मंत्री थे और 24 जुलाई 1991 को अपना पहला बजट पेश किया था। इस बजट को देश में आर्थिक उदारीकरण की बुनियाद माना जाता है। इस ऐतिहासिक बजट के 30 साल पूरा होने के मौके पर शुक्रवार को मनमोहन सिंह ने कई मुद्दों पर अपने विचार रखे। 30 साल पहले कांग्रेस ने भारत की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण सुधारों की शुरुआत की थी। पार्टी ने देश की आर्थिक नीति के लिए एक नया रास्ता तैयार किया था। पिछले तीन दशकों में सरकारों ने इसका अनुसरण किया और आज हमारी गिनती दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में की जाती है।
सिंह ने कहा- मैं सौभाग्यशाली हूं कि मैंने कांग्रेस में कई साथियों के साथ मिलकर सुधारों की इस प्रक्रिया में भूमिका निभाई। इससे मुझे बहुत खुशी और गर्व की अनुभूति होती है कि पिछले तीन दशकों में हमारे देश ने शानदार आर्थिक प्रगति की। इस अवधि में करीब 30 करोड़ भारतीय नागरिक गरीबी से बाहर निकले और करोड़ों नई नौकरियां आईं।
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि 1991 में मैंने एक वित्त मंत्री के तौर पर विक्टर ह्यूगो (फ्रांसीसी कवि) के कथन का उल्लेख किया था कि ‘पृथ्वी पर कोई शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती है, जिसका समय आ चुका है।’ 30 साल बाद, एक राष्ट्र के तौर पर हमें रॉबर्ट फ्रॉस्ट (अमेरिका कवि) की उस कविता को याद रखना है कि हमें अपने वादों को पूरा करने और मीलों का सफर तय करने के बाद ही आराम फरमाना है।