मदद करने से होता है अपना भी भला

दूसरों की मदद करें। इसलिए नहीं कि यह पुण्य का काम है। इस डर से भी नहीं कि कभी आपको दूसरों के सहयोग की जरूरत पड़ सकती है। मदद करें, क्योंकि इससे आपका भी भला होता है। मदद करना आपके अपने दिमाग की सेहत के लिए अच्छा है। मन को वह खुशी और शांति मिलती है, जो दवाओं और थेरेपी से भी नहीं मिलती

कहावत है कि समझदार लोगों के दो हाथ होते हैं। एक हाथ अपनी मदद करने के लिए और दूसरा, औरों की मदद के लिए। और यह समझदारी तब आती है, जब हम समझ जाते हैं कि मदद करने से हमारा अपना भी भला होता है। केवल दूसरों की जरूरत पूरी नहीं होती, बल्कि हमारे अपने लिए भी कमी नहीं रहती। हालांकि दुनिया के तमाम धर्म-दर्शन तो यह बातें कहते ही रहे हैं, पर विज्ञान भी यही मानता है। .

मनोवैज्ञानिकों के एक शोध का मानना है, मानसिक स्तर पर मदद पाने वाले से अधिक फायदा उसे देने वाले को होता है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दिमाग की एमआरआई जांच करने के बाद यह नतीजा निकाला है। तनाव, उदारता, कृतज्ञता, प्यार पाना व देना, दिमाग के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करता है।

क्या कहता है मनोविज्ञान .

आम तौर पर देखने में आता है कि मदद पाने वाला खुद को हीन समझते हुए दूसरों के एहसान से दबा महसूस करता है। वहीं मदद करने में हो रही असुविधा के कारण मदद करने वाला भी बहुत बार ख्ुाश नहीं दिखाई देता। कई बार मदद करना मजबूरी होती है तो कितनी ही दफा हमारी उदारता के पीछे हमारा अहंकार और मान-सम्मान पाने की चाहत छिपी होती है। .

मनोवैज्ञानिकों ने इस संबंध में अध्ययन किया तो सामने आया कि मदद करने वाले के दिमाग पर कहीं ज्यादा फायदा होता है। शोध के अनुसार, मदद करने वालों के दिमाग पर तीन तरह के असर होते हैं। पहला, दिमाग के दाएं भाग में तनाव पैदा करने वाली गतिविधियों में कमी आती है। दूसरा, दिमाग में सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार पाने और तीसरा, देखभाल करने में सक्षम होने की अनुभूति होती है। कोच और लेखक क्रिस्टोफर बर्गलैंड कहते हैं, ‘मदद करना, देने और पाने वाले, दोनों पक्षों को मजबूत बनाता है। उदारता और कृतज्ञता का भाव संपूर्ण सेहत पर बेहतर असर डालता है।’.

इतना ही नहीं कुछ अन्य शोधों के अनुसार, सहयोग देने से उम्र बढ़ती है। मृत्यु-दर में कमी आती है। सप्ताह में पांच बार किसी भी तरह की मदद करने से मूड बेहतर होता है। वहीं 50 पार के लोगों में दूसरों की मदद का भाव उनमें रक्तचाप से जुड़ी समस्याओं की आशंका को 40 प्रतिशत तक कम कर देता है। अवसाद दूर रहता है। दर्द से उबरने में मदद मिलती है। एक अन्य शोध के अनुसार, महीने में कम से कम साढ़े पांच घंटे दूसरों की मदद करने वाले लोग दूसरों की तुलना में ज्यादा खुश रहते हैं। .

सहयोग का सिलसिला .

मैनेजमेंट की दुनिया में टीम वर्क एक बड़ा गुण माना जाता है। जहां एक व्यक्ति के काम की सफलता दूसरे की सफलता से जुड़ी होती है। जहां काम को पूरा करने के लिए एक-दूसरे को सहयोग देना जरूरी हो जाता है। और सबसे ज्यादा सफल वह होता है जो दूसरों से पाने से अधिक दूसरों के लिए मदद करने को तैयार रहता है। मैनेजमेंट गुरु ब्रायन टे्रेसी कहते हैं, ‘सफल लोग दूसरों की मदद करने का अवसर खोजते रहते हैं, वहीं असफल लोग अपना हित ही खोजते रहते हैं।’ .

यूं भी जिंदगी में देने और पाने का सिलसिला लगातार और कई स्तरों पर चलता रहता है। एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे व्यक्ति का हाथ थामे मदद करने वालों का चक्र बनता और बड़ा होता रहता है। जरूरत पड़ने पर कई बार उनसे मदद मिल जाती है, जिनकी हम मदद करते हैं, तो कई बार सहयोग देने वाले हाथ दूसरे होते हैं। .

कर्म सिद्धांत तो कहता ही है कि भला करेंगे तो भला होगा। कृतज्ञता का भाव थोड़ा और बढ़ाएं तो लगेगा कि यह हमारी खुशकिस्मती थी कि हमें मदद करने का मौका मिला। पाने वाले ने एहसान कर हमें देने वाला बना दिया।

बढ़ाते रहें मदद का हाथ .

‘ अपनी जानकारी को दूसरों के साथ बांटते हुए उनके काम को आसान करने की कोशिश करना। .

‘ दूसरों की जरूरत को समझते हुए मदद करना। अपने मन से कुछभी देने की बजाय वह देने की कोशिश करना जिसकी उन्हें जरूरत है। .

‘ अपने अतिरिक्त संसाधन जरूरतमंदों को देना। .

‘ दूसरों को उनकी बेहतरी और तरक्की के मौकों की जानकारी देना। .

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