पश्चिमी मीडिया ने मोदी को देश बांटने वाला बताया, चुनाव परिणाम के बाद बदली भाषा

हालिया संपन्न चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन द्वारा करीब साढ़े तीन सौ सीटें हासिल करने से यह खयाल आया कि वामपंथ ने कैसे कैसे वैश्विक भ्रमजालों का निर्माण किया है? लियो टॉलस्टाय का एक उपन्यास है ‘वार एंड पीस।’ फ्रांसीसी विचार लेखक रोमां रोलां ने इस पुस्तक को ‘19वीं शताब्दी का भव्य स्मारक, उसका मुकुट’ बताया था। इस पुस्तक में टॉलस्टाय ने कहा, ‘सत्ता की हुकूमत जनता के अज्ञान में निहित होती है।’ जनता के अज्ञान में सत्ता के सूत्र खोजने वाले चिंतन के ठीक विपरीत भारत में जनता के ज्ञान वैभव से सत्ता की उत्पत्ति मानी गई है। जनता की इसी दृष्टि, विवेक व विवेचना से भरोसा हासिल कर नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार विश्व के सबसे बड़े जनतंत्र व विश्व के दूसरे सबसे बड़े जनसमूह के नेता बन कर समूचे विश्व की आशा की किरण बनने की ओर बढ़ चले हैं। कहा जा सकता है कि भारतीय जनता लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली के मूल मंत्र ‘सशक्त सरकार’ शब्द के मर्म को समझ चुकी है।

अद्वितीय जनादेश प्राप्त करने के बाद नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘चुनाव के दौरान मुझे जो भी कहा गया, वह सब मैं भूल गया।’ क्या भूलना और क्या याद रखना, कब विस्मृत करना और कब स्मरण कर लेना, यह विवेक ही किसी शासक को सामान्य से असामान्य बनाता है। हवा में विचरण कर रहे, घोर जनाधारहीन नेताओं के मुंह से गालियां सुनने वाले नेता बनने के बाद मोदी का यह कहना कि मैं सारी गालियों को भूल गया, अपनेआप में एक सत्कर्म है जो मोदी जैसे संन्यासी राजनीतिज्ञ से ही अपेक्षा की जा सकती है। केवल और केवल अपनी व्यक्तिगत छवि के आधार पर समूचे चुनाव को ‘संसदीय निर्वाचन प्रणाली’ को ‘राष्ट्रपति निर्वाचन प्रणाली’ की ओर मोड़ देने वाला यह व्यक्ति भारतीय राजनीति की एक अनूठी व अलभ्य पूंजी है जो राजनीति के दशकों से हानि में चल रहे खाते को लाभ में परिवर्तित कर समृद्ध कर रही है।

संसद को देवालय मानकर माथा टेकने के बाद और संविधान को शीश नवाने के बाद इस तरह की उदार शब्दावली से नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल के बड़े संदेश दिए हैं। मोदी ने स्वयं को नेता सत्ता पक्ष चुने जाने के बाद जो कहा वो सब उनका केवल उच्चारित किया हुआ शब्द समूह मात्र नहीं है, वह सब उनका 12 वर्षों के गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में और पांच वर्षों के प्रधानमंत्री के रूप में क्रियान्वित किया जा चुका ‘सबका साथ सबका विकास’ का अद्वितीय सिद्धांत है। दुखद है कि कुछ राजनीतिज्ञों, पत्रकारों व बुद्धिजीवियों द्वारा देश में एक छद्म वातावरण रच दिया गया था कि ‘देश में एक समूह विशेष में भय का माहौल व्याप्त है।’ इस जननेता के पिछले कार्यकाल को देखें तो लगता है कि यह व्यक्ति इस समाज विशेष को सुरक्षा देने व समृद्ध करने की कई बातों को कार्यरूप में परिवर्तित कर चुका है। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति के प्रयास समूचे मुस्लिम समाज को एक नई जागृति व ऊर्जा से भरने वाला प्रयास सिद्ध होने वाला है।

चुनाव के दौरान देशव्यापी अभियान को वे तीर्थयात्रा समझ रहे थे। इसके समापन में संसद की देहरी पर माथा टेकना व भारतीय संविधान को शीश नवाना लोकतंत्र में एक पवित्र भाव को प्रवाहित कर रहा है। भारतीय जाति व्यवस्था को दो जातियों में बांट देने का उनका प्रकल्प भी बड़ा अनूठा लगा। मोदी ने कहा, ‘अब भारत में दो जातियां रहेंगी। एक जाति होगी गरीबी से बाहर निकलने को प्रयासरत और दूसरी होगी गरीबों को गरीबी से बाहर निकलने में सहयोग करने वाली।’ ऐसा कहकर मोदी ने भारतीय जाति व्यवस्था में भारतीय धर्म ग्रंथों के बसे हुए प्राणों को जागृत कर दिया है। मोदी के ऐसा कहने के बाद हमें भारत का एक नया सामाजिक स्वरूप देखने को मिलेगा। निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि आगामी दशकों की भारतीय राजनीति में मोदी प्रभावी रहेंगे और आगामी सदी में उनके जीवन को एक संदर्भ ग्रंथ के रूप में पढ़ा जाएगा।

वर्ष 2019 के चुनावों के बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने मोदी के संदर्भ में जो कहा है वह भी पिछले दो-तीन दशकों की चुनावी प्रतिक्रिया से सर्वथा भिन्न अध्याय प्रस्तुत करता है। इस प्रसंग में सर्वाधिक अनुकूल चर्चा होगी अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘टाइम’ के टाइमिंग की। इस पत्रिका द्वारा चुनाव अभियान के दौरान मोदी को ‘डिवाईडर इन चीफ’ बताने को यदि धूर्तता जनित दुष्प्रयास माना जाएगा तो चुनाव परिणाम के मोदी के पक्ष में आने के बाद उन्हें ‘भारत को एकता के सूत्र में पिरोने वाला’ बताने को भारतीय बाजार की चिंता और भारतीय जनमानस को अपनी पत्रिका में व्यवसायगत मजबूरियों के कारण स्थान देने की मजबूरी ही माना जाएगा।

खैर मजबूरी में ही सही, भारतीय राजनीतिक नेतृत्व की यह सच्ची प्रसंशा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सशक्त होते भारत का परिचायक है। भारत की एकता, अखंडता व सार्वभौमिकता के विरोधी पश्चिमी मीडिया ने एक मजबूत भारत के उदय को रोकने के लिए हरसंभव प्रयास किए। धन, संचार माध्यम, अफवाहें, षड्यंत्र, समाज विभाजन आदि कई हथियारों का उपयोग किया उसने, किंतु फिर भी उसकी दाल नहीं गली तो उसने भारतीय बाजारों की क्रय क्षमता का लाभ उठाने के लिए मोदी को अपना चेहरा बनाकर सच्चाई लिखना प्रारंभ कर दिया। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने संघर्षरत मोदी की कभी चर्चा नहीं की, किंतु सफल व विजयी मोदी को जरूर अपने कंधों पर उठाया। इस संदर्भ में पाकिस्तानी अखबार ‘द डॉन’ ने वहां की जनता को डराते हुए लिखा, ‘मोदी की यह जीत पाक विरोधी नीति पर मुहर है,’ जबकि मोदी की यह विजय संपूर्ण विश्व में आतंकवाद के विरुद्ध अभियान का अगला महत्वपूर्ण चरण मात्र है। नरेंद्र मोदी की यह विजय आंकड़ों की दृष्टि से अत्यंत प्रभावी है। देश भर में 200 से अधिक सीट पर भाजपा को 50 प्रतिशत से अधिक मत मिलना भाजपा व मोदी को एक पुरस्कार की तरह माना जा रहा है जिसे जनता ने प्रत्यक्ष रूप से दिया है।

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