कृषि-रसायन वे पदार्थ हैं, जिनका उपयोग मनुष्य कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के प्रबंधन हेतु करता है। कृषि रसायनों का इस्तेमाल फसल उत्पादन में सुधार के लिए शुरू हुआ था, लेकिन वर्तमान में इन रसायनों का अधिक एवं असंतुलित मात्रा में प्रयोग हो रहा है। ये रसायन आसपास मृदा और जल निकायों में रिसते हैं और पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। आज कृषि रसायनों के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने वाले किसानों तथा उनके परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य भी गंभीरता से प्रभावित होता है। भारत में बहुसंख्यक आबादी के लिये कृषि आजीविका का प्रमुख स्रोत बनी हुई है और कृषि-रसायन, यानी रासायनिक उर्वरक और पीड़कनाशक इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। हरित क्रांति के बाद से संश्लेषित उर्वरकों और पीड़कनाशकों के उपयोग में कई गुना वृद्धि आई है। वर्तमान में भारत विश्व में कृषि-रसायनों के प्रमुख उत्पादकों में से एक है। आकंड़ों की मानें तो भारत का स्थान चौथा माना जा रहा है। संश्लेषित उर्वरकों एवं पीड़कनाशकों के गैर-वैज्ञानिक और अत्यधिक उपयोग ने न केवल पर्यावरण एवं कृषि भूमि के जीवन को क्षति पहुँचाई है, बल्कि इसने खाद्य शृंखला में भी प्रवेश कर लिया है जिससे पादप, मानव और पशु स्वास्थ्य प्रभावित हो रहे हैं।
आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में देश का उर्वरक उत्पादन 42-45 मिलियन टन है, जबकि लगभग 18 मिलियन टन उर्वरक का आयात किया जाता है। देश के 525 जिलों में से 292 जिले 56 प्रतिशत कुल उर्वरक उपयोग में 85 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं। कृत्रिम उर्वरकों में उपयोग किये जाने वाले रसायनों में अत्यधिक जहरीले पदार्थ मौजूद होते हैं । जिसके परिणामस्वरूप जीवों के ऊतकों में विषाक्त पदार्थों का संचयन (जिसे जैव आवर्धन कहा जाता है) होता है। जिससे उनके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है। रासायनिक उर्वरकों में फॉस्फेट, नाइट्रेट आदि तत्व मौजूद होते हैं, जो मृदा में अप्रयुक्त रूप से शेष रह जाते हैं। ये तटीय जल, झीलों और नदियों की ओर अपवाहित हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सुपोषण या यूट्रोफिकेशन की स्थिति बनती है। यह जल निकायों में शैवाल के विकास को उत्प्रेरित करता है। शैवाल विघटित होने से पहले जल के ऑक्सीजन को समाप्त कर देते हैं, जिससे इस पारितंत्र की अन्य प्रजातियों के लिये अस्तित्व बनाए रखना कठिन हो जाता है और यहाँ एक मृत क्षेत्र या डेड जोन का निर्माण होता है। कृषि रसायनों के अति उपयोग से मृदा के अम्लीकरण की स्थिति बन सकती है, इस प्रकार मृदा में जैविक पदार्थ (ह्यूमस सामग्री) की मात्रा कम हो जाती है जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है और यहाँ तक कि इससे वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की स्थिति बनती है।
इन सबको देखते हुए वर्तमान में रसायन-मुक्त कृषि की दिशा में एक धीमी लेकिन उल्लेखनीय संक्रमण की आवश्यकता है। इसके साथ ही, प्राकृतिक खाद के उपयोग, फसल रोटेशन, इंटरक्रॉपिंग, जैविक कीट नियंत्रण जैसे प्राकृतिक और जैविक तरीकों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है जो कम ऊर्जा की खपत करता है। और किसानों को उर्वरक और कीटनाशकों के आनुपातिक उपयोग के बारे में सूचित करने के लिये विभिन्न जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता है। इसके साथ ही नैनो-यूरिया को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये। कृषि रसायनों के छिड़काव के तुरंत बाद खेतों में पशुओं और श्रमिकों का प्रवेश प्रतिबंधित करें। कृषि रसायनों के प्रयोग के लिए सही उपकरणों का चयन करें तथा उनकी साफ-सफाई सुनिश्चित कर लें। खरीद और भंडारण हमेशा प्रतिष्ठित एवं ब्रांडेड कपंनी द्वारा निर्मित कृषि रसायन केवल आवश्यक मात्रा में खरीदें।