लॉकडाउन के कारण प्रवासी कामगारों की दुर्दशा पर सुप्रीम कोर्ट के स्वत: ही संज्ञान लिए जाने से एक दिन पहले देश के 20 प्रमुख वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे और अन्य न्यायाधीशों को तल्ख पत्र लिखा था। पत्र में कहा गया था कि इस मानवीय संकट के प्रति शीर्ष अदालत के कथित उदासीन रवैये को अगर तुरंत ठीक नहीं किया गया तो इसका मतलब उसका अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना होगा। इस सारे मामले पर न्यायालय गुरुवार को सुनवाई करेगा
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे इन कामगारों की दयनीय स्थिति का मंगलवार को स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किए थे। पीठ ने केंद्र और राज्यों से कहा था कि इन कामगारों को राहत प्रदान करने के लिए कदम उठाए जाएं क्योंकि ये कदम अपर्याप्त रहे हैं ओर इनमें कमियां थीं। इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम, कपिल सिब्बल, आनंद ग्रोवर, इंदिरा जयसिंह, प्रशांत भूषण और इकबाल छागला आदि शामिल हैं।
पत्र में शीर्ष अदालत में कतिपय जनहित याचिकाओं पर की गई कार्यवाही का जिक्र करते हुए अनुरोध किया गया है कि इन कामगारों की मदद के लिये इसका न्यायिक संज्ञान लिया जाए। पत्र में कहा गया है कि हम सम्मानपूर्वक कहते हैं कि सरकार की ओर से दिये बयान और इस व्यापक मानवीय संकट के प्रति न्यायालय का उदासीन रवैया, यदि इसे तत्काल दुरूस्त नहीं किया गया, इन लाखों गरीबों, भूखे प्रवासियों के प्रति शीर्ष अदालत द्वारा अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी और कर्तव्यों से मुंह मोड़ने जैसा होगा।
पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य वकीलों में मोहन कतर्की, सिद्धार्थ लूथरा, संतोष पॉल, महालक्ष्मी पवनी, सीयू सिंह, विकास सिंह, एस्पी चिनॉय, मिहिर देसाई, जनक द्वारकादास, रजनी अय्यर, यूसुफ मुछाला, राजीव पाटिल, नवरोज सिरवई, गायत्री सिंह और संजय सिंघवी भी शामिल हैं। पत्र में कहा गया है कि मौजूदा प्रवासी संकट इस बात का लक्षण है कि मनमाने तरीके से शासकीय उपाय लागू करते समय सरकार ने किस तरह से समता, जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा के संवैधानिक वायदों को पूरी तरह नजरअंदाज किया है
पत्र के अनुसार शीर्ष अदालत द्वारा सरकार को जिम्मेदार ठहराने और इन लाखों गरीब प्रवासियों को राहत प्रदान करने के प्रति अनिच्छा से नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में उसकी सांविधानिक भूमिका और हैसियत का बुरी तरह ह्रास होगा। पत्र में कहा गया है कि शीर्ष अदालत की संवैधानिक भूमिका और कर्तव्य मौजूदा संकट के दौर जैसे समय में अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब पूरा देश और उसकी अर्थव्यवस्था 24 मार्च से लॉकडाउन में है।
पत्र में आपातकाल का भी जिक्र किया गया है जब नजरबंदियों को कार्यपालिका के समक्ष माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया था। इन वकीलों ने अपने पत्र में जनहित याचिकाओं की गौरवशाली परंपरा का जिक्र करते हुये कहा कि इसने हमेशा के लिये भारत के संवैधानिक न्याय शास्त्र को ही बदल दिया और बंधुआ मजदूर,जेल सुधार, पर्यावरण और भोजन के अधिकार जैसे विषयों पर विचार किया।