अप्रैल की शुरुआत से ही गर्मी का पारा चढ़ रहा है। मौसम वैज्ञानिकों ने चेताया है कि मई व जून तक अधिकतम तापमान 45 से 48 डिग्री सेल्सियस तक पार हो सकता है। तापमान के बढ़ने के साथ ही सेहत पर ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता है। घर से बाहर हों या अंदर, गर्मी से बचाव के लिए ऐसे सुरक्षित विकल्प अपनाना जरूरी हो गया है जिसका हमारी सेहत पर दीर्घकाल में बुरा असर न पड़े। बहुत देर तक एयर कंडीशनर(एसी) में रहना भी ठीक नहीं और तेज धूप का संपर्क भी बीमार कर सकता है।
गर्मी में कितने तापमान पर शरीर सामान्य रहे, क्या खाएं या क्या पहनें आदि कुछ ऐसी जरूरी बातें हैं, जिन पर ध्यान दिया जाए तो गर्मी का आनंद लिया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार गर्मी में लू लगना, बेहोश होना, पेचिस, सिरदर्द या फिर नकसीर फूटना आदि कुछ ऐसी समस्याएं होती हैं, जिसका शिकार हम लापरवाही की वजह से होते हैं। उत्तर भारत में गर्मी के प्रकोप का सितम जारी है। इस मौसम में लापरवाही बरतने पर स्वास्थ्य से संबंधित कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर आप इस मौसम में भी स्वस्थ रह सकते हैं…
गर्मी में न करें डाइटिंग
किसी भी मौसम के प्रभाव से कैसे लड़ा जाए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या खाते हैं और हमारी दिनचर्या कैसी है। अब उदाहरण के लिए गर्मी में अनेक बार इमरजेंसी में लड़कियों को बेहोशी या बीपी कम होने की शिकायत को लेकर भर्ती किया जाता है। सिर्फ अप्रैल महीने के आंकड़े की बात करें तो हम पाएंगे कि इनमें से अधिकतर लड़कियां डाइटिंग पर रहीं और जो घर से बिना खाए बाहर निकलीं। अहम बात यह है कि विशेषकर गर्मी में खाली पेट नहीं रहना है और खाना क्या है, इसके लिए भी एहतियात बरतनी होगी।
अगर किसी वजह से खाना नहीं खा पा रहे हैं तो ऐसे पेय पदार्थ सत्तू, बेल का शर्बत, शिकंजी या जूस पीएं, जिससे बाहर के बदलते तापमान के अनुसार शरीर का तापमान संतुलित बना रहे। एसी से तुरंत तेज धूप में निकलना या तेज धूप से आकर फ्रिज का ठंडा पानी पीना, ये आदतें बीमार कर सकती हैं। गर्मी के लिए खुद को तैयार करने के लिए यह जरूरी है कि आप स्वास्थ्य जांच भी करा लें, कम हीमोग्लोबिन होने पर बीपी कम हो जाता है या फिर नकसीर फूटने (नाक से खून निकलना,जो हाई बीपी में होता है) की शिकायतें सामने आती हैं।
बचें धूप के सीधे संपर्क से
गर्मी में तेज धूप का सीधा संपर्क आपको बीमार कर सकता है। धूप के दुष्प्रभाव से कमजोरी महसूस होने लगती है, मुंह सूखने लगता है। इसीलिए अनियंत्रित ब्लड प्रेशर और डायबिटीज के शिकार लोगों का डाइट चार्ट और दवाएं गर्मी शुरू होने से पहले ही बदल दी जाती हैं। ग्लूकोज अनियंत्रित होने से गर्मी में डायबिटीज के मरीजों को आंखों से संबंधित दिक्कतें भी बढ़ जाती हैं। गर्मी में सबसे अधिक जरूरी है कि शरीर में नमक और पानी का अनुपात बिल्कुल भी कम न होने पाएं। इसलिए जरूरी है कि तरल चीजों का सेवन जरूर किया जाए, इसमें भी अनेक लोग कोल्ड ड्रिंक पीना कहीं ज्यादा पसंद करते हैं जबकि अधिक ठंडा पानी और कोल्ड ड्रिंक्स प्यास बुझाने की जगह प्यास को बढ़ा देती है।
आयुर्वेद के सुझाव रखेंगे दुरुस्त
मौसम में हवा के थपेड़े और बढ़े हुए तापमान में सबसे अधिक खतरा लू लगने का होता है, जिसकी चपेट में कोई भी आ सकता है। आयुर्वेद में कुछ खास प्रकृति के लोगों को इसके खतरे के अधिक करीब माना गया है। शारीरिक रूप से कमजोर या कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ ही पित्तज या पित्त प्रवृति के लोगों को लू अधिक लगती है। लू लगने पर शरीर का तापमान एकदम से बहुत बढ़ जाता है। खेतों में खुले शरीर काम करने वाले, आग के सामने काम करने वाले, बाइक सवार और टीन से बने घरों में रहने वालों को भी लू का खतरा अधिक होता है। धूप में अधिक देर तक रहने से शरीर का पानी कम होने लगता है, लाल रक्त कणिकाएं टूटने लगती हैं, सोडियम पोटेशियम का अनुपात बिगड़ने लगता है और मरीज बेहोश हो जाता है। यह स्थिति समुचित इलाज के अभाव में मरीज के लिए घातक साबित हो सकती है।
ऐसा हो खानपान
छाछ, नारियल पानी, आम का पना, जौ का सत्तू, केला, दही, चंदन, खस का शर्बत और दूध की लस्सी लेने से भी शरीर को ठंडा रखा जा सकता है। इस दौरान मिलने वाली अधिकांश सब्जियां भी ठंडी तासीर की होती हैं, जिसमें टिंडा, घिया, तोरई और लौकी आदि शामिल हैं। कच्चा प्याज, आंवला, पुदीना, धनिया, ककड़ी, संतरा, तरबूज, बेल और खरबूजे आदि की तासीर भी ठंडी होती है, लेकिन इन सब फलों का सेवन भी एक रात पानी में डुबोकर रखने के बाद ही करना चाहिए। भूल कर भी बाजार या खुले में बिकने वाले कटे हुए फल और फ्रूट चाट का सेवन नहीं करना चाहिए। इनके सेवन से हैजा या आंतों में सूजन हो सकती है।
लू लगने के लक्षण
तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी और चक्कर आना, नाक से खून बहना, सिरदर्द और शरीर में दर्द आदि लू लगने के लक्षण हैं। ऐसा होने पर मरीज को सबसे पहले छांवदार जगह पर ले जाना चाहिए। उसके कपड़े ढीले कर देने चाहिए। नमक और नींबू का घोल पिलाया जा सकता है, उसके आसपास भीड़ न लगाएं
और उस पर पंखे से हवा करते रहे।
लू लगने पर अपनाएं देसी नुस्खे
- सौंफ का अर्क दो छोटे चम्मच, दस बूंद पुदीने का रस और दो चम्मच ग्लूकोज का पाउडर मिलाकर तैयार घोल का सेवन हर दो घंटे में करें।
- कच्चे आम और प्याज को पीस लें, उसमें भुना हुआ जीरा और छोटी इलायची का चूर्ण मिलाकर हर तीन घंटे में दें।
- कच्चे आम को भूनकर, उसको पानी में मसलकर रस निकाल लें, स्वाद के अनुसार चीनी और जीरा पाउडर मिलाकर सेवन करें।
- लगभग एक ग्राम आंवले का चूर्ण लें, उसमें एक ग्राम मीठा सोडा और तीन ग्राम मिश्री और सौंफ मिलाकर रखें, लू लगने पर मरीज पर यह रामबाण का काम करता है।
- पुदीने की थोड़ी सी पत्तियां, दो ग्राम जीरा और दो ग्राम सौंफ को भूनकर सभी को पीस लें, एक गिलास पानी में मिलाकर इसे लू लगने पर पिएं।
डॉ. जुगल किशोर (कम्युनिटी मेडिसिन विभाग, सफदरजंग हॉस्पिटल,नई दिल्ली), डॉ. राकेश यादव (कार्डियोलॉजी विभाग, एम्स, नई दिल्ली) व आयुर्वेद चिकित्सक डॉ.आर.पी.पाराशर से बातचीत पर आधारित।