पुण्यतिथि आजः दिलो-दिमाग में आज भी लयबद्ध हैं उस्ताद बिस्मिल्ला खां की शहनाई की धुनें

 

उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ (अंग्रेजी: Bismillah Khan, जन्म: 21 मार्च1916 – मृत्यु: 21 अगस्त2006हिन्दुस्तान के प्रख्यात शहनाईवादक थे। उनका जन्म डुमराँवबिहार में हुआ था। सन् 2001 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

वह तीसरे भारतीय संगीतकार थे जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।

 

 

जिक्र शहनाई का आए तो जहन में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की तस्वीर उभर आती है। जी हां, आज 21 अगस्त के दिन ही शहनाई के शहंशाह दुनिया ए फानी को अलविदा कह गए थे। जिनके लिए शहनाई जिंदगी की सबसे अहम तरीन चीज थी, लेकिन इंडिया गेट पर शहनाई बजाने की हसरत अधूरी रह गई।

शहनाई के शहंशाह को खिराजे अकीदत के साथ पेश जिंदगी से जुड़े कुछ पहलू:-जिस वक्त मुल्क आजाद हुआ और लालकिला की प्राचीर से तिरंगा लहराया गया था। उस वक्त हर सिम्त फिजा में उस्ताद की शहनाई की तान गूंज रही थी। उस्ताद के बारे में एक दिलचस्प जानकारी है कि शहनाई को ही अपनी बेगम तसव्वुर करते थे। सरकार ने बिस्मिल्लाह खां को भारत रत्न अवार्ड से नवाजा था।

आपकी पैदाइश 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमराव में हुई थी और 21 अगस्त 2006 को वफात पाई। बचपन मे ही उस्ताद अपने चाचा अलीबख्श के साथ वाराणसी आ गए थे। जहां चौदह साल की उम्र में गंगा के तट पर शहनाई बजाना शुरू कर दिया था। शहनाई ने ही उस्ताद को देश और दुनिया में पहचान दी, लेकिन उस्ताद ने देश की मिट्टी को नहीं छोड़ा। उनकी वतन से मोहब्बत का एक वाकिया यूं बयान किया जाता है कि एक बार एक अमेरिकी ताजिर हिंदुस्तान आया।

उस्ताद की शहनाई सुनकर वह इस कदर मानूस कि उस्ताद के सामने ऑफर रख दिया कि आप अमेरिका चलो, अमेरिका ऐश ओ आराम के साथ भरपूर रुपया पैसा दूँगा। उस्ताद ने अमेरिकी ताजिर से सवाल किया कि क्या अमेरिका में गंगा बहती है, जवाब मिला नहीं तो उस्ताद बोले पहले गंगा को अमेरिका ले चलो मैं भी चलूंगा। अमेरिकी ताजिर शर्त सुनकर खामोश रह गया। उस्ताद की आखिरी ख्वाहिश इंडिया गेट पर शहनाई बजाना थी, जोकि पूरी नहीं हो सकी। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को अपने जीवनकाल के दौरान 1961 में पद्मश्री, 1968 में पद्म विभूषण, 1980 में भी पद्मविभूषण और 2001 में भारत रत्न सम्मान मिला था।