बीमार होता देश और बेकाबू होती आबादी : आदर्श कुमार

आज भारत देश अनेक प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त नजर आ रहा है। बढ़ती आबादी के बोझ तले देश का विकास और स्वास्थ्य सेवाएं बौनी साबित हो रही हैं। देश में विकास की गति कम नहीं है, किंतु आबादी पर नियंत्रण न होने के कारण समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। भारत की लगभग सभी समस्याओं के मूल में जनसंख्या विस्फोट प्रमुख कारण है। इससे लोगों की मानसिकता, शारीरिक स्वास्थ्य और जीवन में गुणवत्ता गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। बढ़ती हुई आबादी के कारण ही देश में गरीबी, बेरोजगारी, अराजकता, अनुशासनहीनता, हिंसा, अपराध, नशाखोरी और राष्ट्रविरोधी गतिविधियां पनप रही हैं। बढ़ती हुई आबादी के कारण संसाधनों की कमी होती जा रही है। सबसे बड़ा संकट पर्यावरण और खाद्य संसाधनों के समक्ष उत्पन्न हो गया है। वेतहाशा आबादी के कारण सरकार और समाज का ध्यान पर्यावरण, स्वच्छता, शिक्षा और विकास से हटकर येन-केन-प्रकारेण जीवनयापन और उदर पोषण मात्र तक सीमित रह गया है।

नई पीढ़ी को आज देश में न तो उचित शिक्षा और संस्कार मिल पा रहे हैं। और न ही स्वास्थ्यप्रद वातावरण तथा उचित पोषण। उचित शिक्षा, मार्गदर्शन और प्रेरक वातावरण के अभाव में कम उम्र से ही बच्चे गलत संगत का शिकार हो रहे हैं। छोटी उम्र से ही भारतीय बच्चों को तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट तथा नशे की लत में फंसते देखा जा सकता है। भारत में सबसे अधिक मात्रा में मादक द्रव्यों, नशा तथा तंबाकू का प्रयोग होता है। तंबाकू आदि नशा भारतीय समाज में दैनिक जीवन का अंग बन गए हैं। इससे बहुत अधिक स्वास्थ्य समस्याएं तथा जन-धन हानि हो रही है। सरकार के अनेकानेक प्रयासों के बावजूद इस दिशा में समाज जागरूक होता दिखाई नहीं पड़ रहा है। वर्तमान भारत सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को गति देने के उद्देश्य से अनेक परियोजनाओं की शुरुआत की है। अस्पतालों की गुणवत्ता और सेवा पूर्व की तुलना में बेहतर हुई है। सरकारी अस्पतालों की दशा निरंतर सुधर रही है। उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाने के उद्देश्य से अनेक नए अस्पताल तथा प्रोजेक्ट शुरू किए गए हैं। कई नए एम्स के निर्माण की प्रक्रिया को हरी झंडी दी गई है। आवश्यकता इस बात की है कि नई परियोजनाओं के साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि पहले से कार्यरत अस्पतालों और परियोजनाओं की गुणवत्ता और स्तर में सुधार हो ।

वर्तमान में मात्र इतने भर से ही संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि देश में कई नए एम्स बन रहे हैं और कई अन्य प्रस्तावित हैं। हम इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि पहले से कार्यरत एम्स अभी बहुत सुधारों की मांग कर रहे हैं। मौजूदा एम्स वह चाहे दिल्ली का हो अथवा अन्य शहरों का, कई समस्याओं से घिरे हैं। स्थिति यह है कि दिल्ली स्थित एम्स में गंभीर बीमारी से ग्रस्त कई मरीजों को ऑपरेशन के लिए दो-दो साल बाद की तिथि देनी पड़ रही है। जब देश के सबसे बड़े माने जाने वाले अस्पताल में यह स्थिति हो, तब फिर इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि अन्य सरकारी अस्पताल अथवा मेडिकल कॉलेज किस स्थिति से दो-चार हो रहे होंगे। सरकारी अस्पताल आमतौर पर अव्यवस्था के पर्याय बनते जा रहे हैं। कदम-कदम पर मरीजों की उपेक्षा- अनदेखी आम बात है। कई बार तो ऐसा लगता है कि हमारा सरकारी स्वास्थ्य तंत्र सेवाभाव से ही विलग हो गया है।

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के गिरते स्तर के कारण अनेक लोग अस्पताल जाने से डरने और कतराने लगे हैं। कई लोगों के मनोमस्तिष्क में यह डर बैठ गया है। कि अस्पताल में भर्ती होने के बाद जिंदा वापस लौटना असंभव है। अस्पतालों के भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता के किस्से अब आम हो गए हैं। प्रतिदिन समाचार पत्र और मीडिया खबरों में अस्पतालों की लापरवाही और मजबूर रोगियों और उनके परिजनों से अधिकाधिक वसूली के किस्से देखे सुने जा सकते हैं। अस्पतालों में आज इंसान की कोई कीमत नहीं रह गई है। हर चीज केवल और केवल कारोबार बनकर रह गई है। चिकित्सा क्षेत्र जिस सेवा और मिशन भाव के कारण जाना-पहचाना और आदर की दृष्टि से देखा जाता था, वह आज के विशालकाय अस्पतालों और आधुनिक सुविधाओं के बावजूद वह सम्मान नहीं पा रहा है।

आज देश में स्थित कई निजी अस्पताल में इलाज कराना सबके वश का नहीं रह गया है। यहां का इलाज अत्यधिक महंगा है। ये अस्पताल अब मरीजों के शरीर से इंजेक्शन से पैसा निकालते हैं। उनके जीवन की कीमत कई अस्पताल में न के बराबर है। पिछले कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जो हैरान कर देती हैं। इस देश में लोग चिकित्सकों को दूसरा भगवान मानते रहे हैं, लेकिन आज हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। लगभग हर रोज देश में कहीं न कहीं अस्पतालों द्वारा की गई लूट के मामले सामने आते रहते हैं। अस्पतालों से सुरक्षित वापस लौटने वालों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। इसी क्रम में पिछले कुछ महीनों में अनेक बड़ी घटनाएं सामने आई हैं, जो चौकाती हैं कि क्या दूसरा भगवान ऐसा भी हो सकता है।

आज देश में विशाल आबादी की तुलना में उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप जरूरी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। स्थिति यह है कि आज प्रति 10 हजार आबादी पर अस्पतालों में मात्र 6 बेड हैं। इसी प्रकार प्रति डेढ़ हजार की आबादी पर मात्र एक चिकित्सक हैं। लगभग चार लाख की आबादी पर देश में एक मनोरोग चिकित्सक है, जबकि प्रति एक लाख की आबादी पर मात्र दो सर्जन मौजूद हैं। यह स्थिति बदलने के लिए देश में उच्चस्तरीय मेडिकल शिक्षा संस्थान और शोध संस्थान खोले जाने की आवश्यकता है।

आदर्श कुमार (सम्पादक दस्तक मीडिया ग्रुप)