शाही घराने में जन्मीं हवेली में पलीं और सोने-चांदी की जरी के कपड़े पहनने वालीं शहनाज की जिद उन्हें पहले बॉम्बे ले आई

आज की अनसुनी दास्तान बेहद अलग है। ये किसी हिंदी सिनेमा की नामी अभिनेत्री नहीं बल्कि उस थिएटर आर्टिस्ट की कहानी है, जो ताउम्र जवाहरलाल नेहरू, दिलीप कुमार, राजा-महाराजाओं जैसे आला मुकाम लोगों से घिरी रही, जो भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बेहतरीन फिल्म मुगल-ए-आजम का अहम हिस्सा होते-होते रह गई। वजह सिर्फ यही थी कि शहनाज शाही खानदान की थीं, जहां फिल्मों में आना तो दूर, फिल्में देखने की भी इजाजत नहीं होती थी।
शाही घराने में जन्मीं राजकुमारी शहनाज, हवेली में पलीं और सोने-चांदी की जरी के कपड़े पहनने वालीं शहनाज की जिद उन्हें पहले बॉम्बे ले आई और फिर थिएटर तक। बला की खूबसूरत शहनाज ने जब शाही घराने की परंपरा तोड़ते हुए थिएटर में काम किया तो देखने वालों का मजमा लगने लगा। कुछ लोगों में राजघराने की थू-थू हुई तो कोई स्टेज पर पहली बार एक शाही लड़की को सोने-चांदी के कपड़ों में देखकर देखता ही रह गया। आम जनता ही नहीं नामी फिल्ममेकर के.आसिफ भी एक झलक में ही उनके मुरीद हो गए। मुगल-ए-आजम में अनारकली बनाने की जिद में कई सीन उन पर ही फिल्माए, लेकिन जब घरवालों को इसकी भनक लगी, तो वही हुआ जिसका शहनाज को डर था। पति ने भी मारपीट करते हुए बच्चों से अलग कर दिया।
15 फरवरी 1932 की बात है, जब शहनाज बिया का जन्म भोपाल के शाही परिवार में हुआ। उनका असली नाम क्या था या उनकी जन्म की पुख्ता तारीख क्या थी ये फिल्म इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है। महज 5 साल की थीं, जब उन्होंने जिद में अपनी मां का दिया नाम ठुकरा दिया और खुद का नाम शहनाज रख लिखा। शहनाज यानी राजाओं की शान।
भोपाल की शाही हवेली में शहनाज को नौकरों के बीच हर ऐशो-आराम मिलता था। दिन भर आया साथ रहती थी, वहीं पढ़ाने वाले भी घर ही आया करते थे, लेकिन वो दूसरे आम बच्चों की तरह स्कूल जाना चाहती थीं। कई दफा जिद भी की, लेकिन लड़कियों को हवेली से बाहर भेजने की शाही घराने में इजाजत नहीं थी।
शहनाज महज 13 साल की थीं, जब उनके लिए एक शाही खानदान का रिश्ता आया। 40 के दशक में राजशाही चलती थी, ऐसे में 13 साल की उम्र में राजकुमारियों की शादी होना आम था, वो भी सिर्फ किसी राजकुमार से। लेकिन शहनाज ये रीत तोड़ना चाहती थीं। वो पढ़ना चाहती थीं और ऐसे ही माहौल में रहना चाहती थीं। जब घरवालों ने शादी का दबाव बनाया तो शहनाज ने भी जिद पकड़ ली। जिद पूरी करवाने के लिए उन्होंने खाना-पीना पूरी तरह बंद कर दिया और भूख हड़ताल शुरू कर दी। अब भला किसी राजकुमारी को कोई कितने दिनों तक भूखा देख पाता। परिवार वालों ने हार मान ली और रिश्ता ठुकरा दिया।

अब एक जिद और थी। वो जिद थी पढ़ाई करने की। शहनाज शाही परिवार की पहली लड़की थीं, जिन्हें भोपाल से पूना (अब पुणे) की बोर्डिंग स्कूल (कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी) भेजा गया।
शहनाज बिया की जिद और पढ़ाई की ललक ही ये वजह थी कि 19 साल की उम्र तक उनकी शादी नहीं हुई। आज के दौर में जहां ये आम बात है, वहीं उस दौर में ये चिंता का विषय हुआ करता था। घरवाले सोच में ही थे कि अचानक एक खबर आई। ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई कर चुके बॉम्बे में रहने वाले एक बैरिस्टर का उनके लिए रिश्ता आया था। वो शख्स बॉम्बे के नामी पढ़े-लिखे खानदान का शख्स था, जो जल्द ही राजनीति में बड़ा नाम करने वाला था। जैसे ही शहनाज को पता चला कि वो शख्स बेहद पढ़े-लिखे परिवार से है, तो वो झट से मान गईं, लेकिन इस बार शर्त थी कि रिश्ता पक्का करने से पहले उन्हें वो शख्स दिखाया जाए।
परिवार ने बात मानी और दूर से उस शख्स को देखने की इजाजत दे दी। वो शख्स 19 साल की शहनाज ने दोगुनी उम्र 38 साल का था। जब शहनाज ने उसे देखा, तो वो ये बात जानती थीं, लेकिन पढ़े-लिखे शख्स के साथ जिंदगी काटने और भोपाल की हवेली से बाहर जिंदगी जीने की चाह रखने वालीं शहनाज झट से राजी हो गईं।
भोपाल में हुई शाही शादी के बाद 1951 के एक रोज शहनाज बारात के साथ बॉम्बे के विक्टोरिया टर्मिनस पहुंचीं। शाही घराने की शहनाज जब नामी बैरिस्टर की पत्नी बनकर बॉम्बे पहुंचीं तो बड़े पैमाने में उनका सत्कार किया गया। उनके पति का उठना बैठना बड़े राजनेताओं, फिल्मी हस्तियों और इंटरनेशनल स्टार्स के साथ होता था, तो शहनाज भी उन्हें क्लब्स में कंपनी दिया करती थीं।
ऐसे ही हाईक्लास क्लब गैदरिंग में शहनाज की मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से हुई। जवाहरलाल नेहरू के कंधे से कंधा मिलाए तस्वीर क्लिक करवाते हुए शहनाज ने काले बोटनेक ब्लाउस के साथ सफेद साड़ी पहनी थी। गले में 4 लड़ी वाला मोतियों का हार और घुंघराले बालों में शहनाज किसी फैशनेबल हीरोइन की तरह लग रही थीं।
शहनाज को खातिर दारी का बड़ा शौक था। अक्सर वो भोपाल ने आने वाले नवाबों के लिए बॉम्बे में खुद दावत का इंतजाम करवाया करती थीं। एक दिन उन्होंने भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान के लिए बॉम्बे में दावत रखी थी। इस दावत में हमीदुल्लाह खान के साथ मोराजी देसाई भी शामिल हुए थे।
हाई सोसाइटी क्लब में कुछ थिएटर आर्टिस्ट से मुलाकात होने के बाद शहनाज का थिएटर की तरफ झुकाव होने लगा। जब बॉम्बे के एक थिएटर में प्ले अनारकली में अहम किरदार के लिए जब एक लड़की की जरूरत पड़ी, तो हर किसी ने शहनाज का नाम सुझाया। आखिर एक रॉयल परिवार की लड़की से बेहतर अनारकली का रोल कौन निभाता। शहनाज भी मान गईं और चंद दिनों की तैयारी के बाद वो अनारकली के रोल में ऐसी रच बस गईं कि मंच पर उनका अभिनय देखने लायक था। इससे भी ज्यादा कोई बात अगर लोगों का ध्यान खींच रही थी, तो वो ये कि मंच पर शहनाज ने सोने-चांदी की जरी वाले अपने शाही जोड़े पहने थे।
चंद हफ्तों तक चलने वाले इस नाटक को देखने भारी भीड़ पहुंचती थी। जैसे ही प्ले खत्म होने के बाद शहनाज अपने मेकअप रूम में जातीं, तो चाहनेवालों की भीड़ उनके पीछे-पीछे वहां भी पहुंच जाती थी। दरवाजे के बाहर हर कोई उनसे मिलने के लिए घंटों इंतजार किया करता था।
शहनाज के पति के कई क्लाइंट फिल्मी दुनिया के थे, ऐसे में क्लब में होने वाली पार्टियों और फिल्मों के प्रीमियर में शहनाज भी पति के साथ शिरकत करती थीं। ऐसे ही एक प्रीमियर में शहनाज से दिलीप कुमार, मधुबाला, सुरैया की मुलाकात हुई। इस मुलाकात की एक तस्वीर में शहनाज शाही जोड़ा पहने हुए रॉयल अंदाज में दिलीप कुमार के सामने बैठी हैं, वहीं दूसरी तरफ दिलीप कुमार उनसे मुस्कुराते हुए नजर आ रहे हैं।
एक दिन स्टेज से उतरते ही थकी हुईं शहनाज अपने मेकअप रूम चली गईं। चंद मिनट ही गुजरे थे कि दरवाजे पर खटखटाने की आवाज आई। शहनाज को लगा कि शायद कोई चाहनेवाला मिलने के लिए आया होगा। उन्होंने आवाज नजरअंदाज की, लेकिन कुछ देर बाद और जोर-जोर से दरवाजा पीटा जाने लगा। आवाज देकर पूछा, तो वो थिएटर मालिक थे। दरवाजा खोला तो देखा वो अपने साथ मशहूर फिल्ममेकर को लिए खड़े थे। जैसे ही उनकी नजर के.आसिफ से मिली, तो वो हाथ फैला कर बोले- यही है मेरी अनारकली। मैं तुम्हें हिंदुस्तान की सबसे प्रसिद्ध महिला बना दूंगा।
दरअसल, उस समय के.आसिफ फिल्म मुगल-ए-आजम बनाने की तैयारी में थे। सलीम के लीड रोल में दिलीप कुमार थे, लेकिन उनकी अनारकली के रोल की तलाश पूरी नहीं हुई थी। के.आसिफ का प्रस्ताव सुनते ही शहनाज ने पहली ही बार में उन्हें इनकार कर दिया। उनका कहना था कि मैं फिल्मों में काम नहीं कर सकूंगी। के.आसिफ ने उन्हें मनाने के लिए जोर दिया, अरे, प्ले में कर सकती हो तो फिल्म में क्यों नहीं। शहनाज जानती थीं कि जिस तरह के रॉयल बैकग्राउंड से वो थीं, उन्हें कभी फिल्मों में काम करने की इजाजत नहीं दी जाती। लेकिन जब के.आसिफ उन्हें फिल्म में लेने की जिद पर अड़ गए, तो वो भी स्क्रीन टेस्ट देने के लिए मान गईं। के. आसिफ भी शहनाज की झिझक भांप चुके थे, तो उन्होंने वादा किया, मैं फिल्मी स्कैंडल को तुम तक पहुंचने नहीं दूंगा।
अगले दिन शहनाज के.आसिफ के प्रोडक्शन हाउस पहुंची, तो देखा उनकी टीम पहले ही लाइटिंग और सेट की तैयारी किए हुए उनका इंतजार कर रही थी। सेट पर शहनाज की चंद तस्वीरें ली गईं और उनसे चंद डायलॉग्स बुलावाए गए। पहले ही स्टेज पर अनारकली बन चुकीं शहनाज के लिए ये मुश्किल नहीं था। के.आसिफ ने चंद लाइन्स सुनकर ही उन्हें फिल्म में लेने का इरादा कर लिया और कहा कि अब अगली रिहर्सल अनारकली के लिबास में ही होगी।
कॉस्ट्यूम डिजाइनर्स की टीम भी मौके पर मौजूद थी। टीम ने कहा कि इतनी जल्दबाजी में अनारकली के किरदार के लिए कपड़े डिजाइन करना मुमकिन नहीं हो सका। इस पर के.आसिफ ने शहनाज से कहा कि क्यों न तुम वही पहनो, जो स्टेज पर पहना था।
शहनाज ने उन्हें बताया कि स्टेज पर पहने हुए उनके कपड़े किसी नाटक के नहीं बल्कि उनका अपना भोपाली जोड़ा है, जिसमें असली सोने-चांदी की जरी हैं। के. आसिफ ये सुनकर और हैरान रह गए और कहा, इससे बेहतर क्या हो सकता है। अगले दिन शहनाज ने अपने भोपाली जोड़े में करीब 200 तस्वीरें क्लिक करवाईं। शहनाज का फिल्म में होना तय हो चुका था और शहनाज को ध्यान में रखते हुए सभी तैयारियां भी शुरू हो चुकी थीं।
चंद दिनों बाद के.आसिफ, शहनाज को साइनिंग अमाउंट देने उनके घर पहुंचे। उस समय शहनाज के 2 बड़े भाई अलिम मियां और धनी मियां भी उनसे मिलने घर पहुंचे थे। साइन करने के लिए नोटों की गड्डी के साथ के.आसिफ ने उनकी सेट पर ली हुई तस्वीर दिखाई और कहा, तुम हिंदुस्तान की सबसे बेहतरीन हीरोइन बनने वाली हो।
जैसे ही शहनाज के बड़े भाइयों की नजर उस तस्वीर पर पड़ी, तो फिल्मी सेट पर सज-धजकर बहन को पोज करते देख वो भड़क उठे। अलिम मियां ने मेज से तस्वीर उठाई और उसे फाड़ते हुए के. आसिफ को धमकाना शुरू कर दिया। वहीं बड़े भाई ने उन्हें धक्के देकर घर से निकाल दिया।
शहनाज का फिल्म में काम करने का सपना एक पल में टूट गया। रॉयल परिवार में होने का ये खामियाजा काफी ज्यादा था, क्योंकि हर कोई जानता था कि 1960 में रिलीज हुई फिल्म मुगल-ए-आजम में अनारकली का रोल कर मधुबाला ने खुद को वाकई हिंदुस्तान की सबसे बड़ी हीरोइन का तमगा हासिल किया था। जबकि के.आसिफ तो शहनाज के लिए ये सपना देखते थे।
शहनाज के फिल्मों में जाने के फैसले से उनकी शादीशुदा जिंदगी पर भी गहरा असर पड़ा। घर में झगड़े होने लगे और कुछ समय बाद ये बहस, मारपीट में तब्दील हो गई। शादीशुदा जिंदगी बचाने के लिए शहनाज ने परिवार शुरू किया। 2 बच्चे भी हुए, लेकिन पति ने कभी मारपीट बंद नहीं की।
अपने शरीर और चेहरे पर बने मारपीट के जख्म छिपाने के लिए शहनाज नकाब पहनकर हाइ सोसाइटी में खुशहाल जिंदगी का दिखावा करती रहीं। एक रोज शहनाज के पति ने इस कदर पीटा कि उन्हें अस्पताल भर्ती होना पड़ा
इलाज के दौरान शहनाज के गायनाक्लोजिस्ट डॉक्टर वी.एन. शिरोडकर कई बार उनके पति की बर्बरता देख चुके थे। उन्होंने शहनाज से कहा था कि अगर तलाक नहीं लिया और ऐसे ही मार खाती रहीं, तो 6 महीने से ज्यादा जिंदा नहीं सकोगी। आखिरकार इलाज के बाद शहनाज के घरवाले उन्हें भोपाल ले गए।
कुछ समय बाद शहनाज के पति ने लिखित माफीनामा भेजकर शहनाज को दोबारा बॉम्बे बुला लिया। 2 बच्चों के साथ रहने की ख्वाहिश में शहनाज लौटीं तो जरूर, लेकिन पति के बर्ताव में कोई सुधार नहीं था।
पति के जुल्मों की शिकार शहनाज ने घर से निकलना लगभग बंद कर दिया और सिगरेट की तल में चूर होने लगीं। आलम ये था कि बेसुध शहनाज के कपड़ों में सिगरेट से जलने के निशान आम बात हो गई। एक समय ऐसा आया, जब उन्होंने सादे कपड़े पहनने शुरू कर दिए और सोने-चांदी के जोड़े पेटी में बंद कर दिए।
एक दिन जब पति ने दोबारा उन पर हाथ उठाया, तो इस बार शहनाज ने घर छोड़ने का पक्का इरादा कर लिया। लेकिन इस फैसले की उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। बैरिस्टर पति ने पावर का इस्तेमाल कर दोनों बच्चों की कस्टडी हासिल कर ली। कई महीनों तक शहनाज बच्चों की एक नजर पाने को तड़पती रहीं। उनका पति लगातार उनके बच्चों को मां के खिलाफ भड़काता रहा।
शहनाज ने अपना परिवार तो शुरू कर दिया, लेकिन वो हर रात पहले पति से हुए 2 बच्चों को याद कर खूब रोती थीं। जब उनके पति ने उन्हें सपोर्ट किया तो वो हर साल अपने बच्चों की तलाश में भारत आने लगीं। शहनाज भले ही रॉयल परिवार से थीं, लेकिन जब उन्होंने पुलिस से मदद मांगी तो वो लोग भी उन्हें परेशान करने लगे। ये सिलसिला करीब 20 सालों तक चला। आखिरकार 20 साल के संघर्ष के बाद उन्हें बच्चों से मिलने की इजाजत मिली, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। शहनाज के खिलाफ बच्चों के कान इस कदर भर दिए गए थे कि उन्होंने शहनाज के सामने ही उनसे रिश्ता रखने से इनकार कर दिया। बच्चों के बर्ताव से शहनाज बुरी तरह टूट गईं और फिर कभी भारत नहीं आईं।
एक बार परिवार की जिद में शहनाज कराची में हुई एक शादी में शामिल हुई थीं। इस शादी में उनकी मुलाकात लाहौर के बिजनेसमैन से हुई, जिनसे उन्होंने दूसरी शादी की। इस शादी से शहनाज को एक बेटी भी हुई। उनकी बेटी करीब 6-7 साल की थी, जब उनके पति को युद्ध बंदी बना लिया गया। पति की नामौजूदगी में शहनाज ने अकेले अपनी बेटी की परवरिश की
बढ़ती उम्र के साथ शहनाज ने हालातों से समझौता कर लिया। जब उनकी बेटी सोफिया बड़ी हुई तो शहनाज ने अपनी जिंदगी की दास्तान उसे सुनाई, जिस पर उन्होंने 2020 में बुक शहनाजः ए ट्रैजिक ट्रू स्टोरी ऑफ रॉयल्टी, ग्लैमर एंड हार्टब्रेक लिखी थी। इस किताब के जरिए सोफिया ने अपनी मां शहनाज की कहानी लोगों तक पहुंचाई। The Dawn के लिए लिखे गए एक आर्टिकल में भी सोफिया ने अपनी मां की परत दर परत कहानी लिखी थी।
बुक और आर्टिकल के अनुसार, ढलती उम्र के साथ शहनाज ने सालों बाद अपनी बंद पड़ी पेटी खोली थी। वो उस पेटी में रखीं साड़ियों और मुगल-ए-आजम के सेट पर ली गईं तस्वीरों को घंटों निहारती थीं। जो भी साड़ियां जल गई थीं, शहनाज ने उनकी सोने-चांदी की बॉर्डर काटकर उन्हें सहेज लिया। खाली वक्त में शहनाज यादों का पिटारा लेकर बैठती थीं, गजलें सुनती थीं और शायरियां लिखती थीं।
साल 2012 में शहनाज के निधन के बाद सोफिया ने खुद अपने पिता का सरनेम हटाकर मां के आधे नाम नाज (शह-नाज) को अपना सरनेम बना लिया। सोफिया ने मां शहनाज पर कई लेख लिखे, लेकिन उनमें कहीं भी उन्होंने अपने सौतेले पिता और भाई-बहनों के नाम का जिक्र नहीं किया।