अकेला जीवन-रितेश मौर्य

अकेला
अकेले ही जीवन जीते हैं
अपने जैसा कोई नहीं?
मिलने को तो बहुत मिले
पर हम सा कोई मिला नहीं?

किसी को हमसे धन चाहिए
तो किसी को हमसे वादा,
आजकल जो मिलते हैं उनका
कोई न कोई होता है नेक इरादा।

झुण्ड में चलने से सड़क
भरी भरी सी लगती है,
पर जब धन खत्म होता है तो
जिन्दगी अकेली सी लगती है।

अंधेरे ही हमें बताता है कि….
उजाला कितना ज़रूरी है,
किसी से ज्यादा लगाव न करो
दूरी का होना भी ज़रूरी है।

अकेले चलने वाले कभी
मुड़ के देखते नहीं है,
किसी के जख्म पर नमक रख
अपनी रोटी कभी सेंकते नहीं है।

अकेला छोड़ देना मुझे
मैं जीना सीख जाऊंगा,
दुःख हो या मुसीबत उनसे
निपटना सीख जाऊंगा।


–रितेश मौर्य
जौनपुर, उत्तर प्रदेश
मो. नं.8576091113