बच्चों की शिक्षा सुचारू बनाना सबसे ज्यादा जरूरी : आदर्श कुमार शाक्य

शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों के व्यक्तिगत और सामाजिक फायदे हैं। अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य का अर्थ होता है भविष्य में अच्छी नौकरी, आमदनी और परिवार का बेहतर जीवनस्तर। वहीं सामाजिक फायदे यह हैं कि स्वस्थ और शिक्षित नागरिक देश के आर्थिक व चहुंमुखी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यानी शिक्षा व स्वास्थ्य मानव विकास के लिए बहुत जरूरी हैं। इसीलिए दुनियाभर के विकसित व विकासशील देश दोनों क्षेत्रों में खुले दिल से पैसा खर्च करते हैं। कई देशों में सरकारी अस्पताल व स्कूल दोनों ही उच्चतम दर्जे के होते हैं। अमेरिका, जापान और ब्रिटेन में 85% से 95% बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। ब्रिटेन का नेशनल हेल्थ सर्विसेज दुनिया में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एक मिसाल है और बड़े नेताओं, अमीरों समेत 90% लोग जरूरत पड़ने पर सरकारी अस्पताल जाना पसंद करते हैं।

भारत में इसका उल्टा है। स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी खर्च दुनिया में सबसे कम में से एक है। करीब 50% से 70% लोग निजी क्षेत्र में इलाज करवाते हैं और स्वास्थ्य पर लोग जो पैसा खर्च करते हैं वह सरकार द्वारा स्वास्थ्य खर्च से दोगुना होता है। शिक्षा की भी वही हालत है। देश में शिक्षा पर सरकारी खर्च बाकि विकसित व विकासशील देशों के औसत का आधा है। मात्र 45% बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। निजी स्कूल महंगे हैं व सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर खराब माना जाता है। बात साफ़ है, अच्छी शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं गरीब व निम्न वर्ग के लिए दुर्लभ हैं।

कोविड-19 महामारी ने शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिकतम असर डाला है। महामारी की दूसरी लहर में स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खुल गई। हालांकि इस दौरान सरकारें स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने की बातें करती रहीं। लेकिन बातें खोखली नज़र आती हैं क्योंकि महामारी के दौरान भी सरकारों ने स्वास्थ्य पर खर्च आबंटन नहीं बढ़ाया है। जो विशेष पैकेज दिए गए हैं, वो ऊंट के मुंह में जीरा के समान हैं।अब, स्वास्थ्य से भी बड़ी चुनौती शिक्षा के रूप में उभर रही है। पिछले 17 महीनों से देश में स्कूल बंद पड़े हैं। दुनिया के 170 देशों में स्कूल बहुत कम बंद हुए थे। यह बात साफ़ हो चुकी है कि बच्चों को कोरोना की गंभीर बीमारी का खतरा लगभग नगण्य है, फिर भी सरकारें खुलकर स्कूल खोलने की बातें नहीं कर रही हैं। वैज्ञानिक तथ्य है कि 6 से 11 साल के बच्चों को कोरोना का खतरा सबसे कम है इसलिए प्राथमिक विद्यालय पहले खुलने चाहिए, लेकिन सरकारें इस बात को नज़रअंदाज करते हुए बड़ी कक्षाओं, जैसे कि 9वीं से 12वीं को शुरू कर रही हैं।

प्राथमिक स्तर के बच्चों के लिए इसलिए भी स्कूल खुलने चाहिए क्योंकि बड़े बच्चे तो पढ़ और समझ सकते हैं इसलिए ऑनलाइन क्लासेज ले भी सकते हैं, लेकिन जो बच्चे शुरुआती कक्षाओं में होते हैं, वे अभी गिनती और वर्णमाला सीख रहे होते हैं, ऐसे में उन्हें व्यक्तिगत मार्गदर्शन निहायत जरूरी होता है। यह एक त्रासदी है कि इस महामारी में जिन बच्चों को सबसे कम खतरा है, उन्हें ही सबसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है। जब महामारी से हुए नुकसान का आकलन किया जाएगा तो संभव है कि सबसे बड़ा दीर्घकालिक नुकसान बच्चों की शिक्षा के रूप में उभरकर आए।

कोई नहीं कह सकता कि महामारी कब तक रहेगी और कोरोना वायरस कितने सालों तक। हर काम में, यहां तक कि घर में रहने में भी, बीमारी का थोड़ा-सा रिस्क तो है ही। नेता और सरकारें यह कह कर अपनी जिम्मेदारी से दूर भाग रहे हैं कि लोग नहीं चाहते स्कूल खुलें (जो कि निराधार है)। समय आ गया है कि अभिभावक सरकारों से जवाब मांगें और सरकारें बच्चों की शिक्षा को सुचारु करने के लिए हर जरूरी कदम उठाएं।

Adarsh Kumar Shakya