यूपी की सियासत में स्वामी प्रसाद मौर्य का असर : समझें आदर्श कुमार शाक्य की रिपोर्ट

देश के सबसे बढ़े सूबे उत्तर प्रदेश में चुनावी समर भूमि सज गई है। कहीं गढ़ बचाने की लड़ाई है, तो कहीं नया गढ़ बनाने की चुनौती। सियासी ताकत और जातीय अस्मिता के सवाल खूब उछाले जा रहे हैं। वादों की बौछार हो रही है, तो मुद्दों की धार पैनी की जा रही है। वोटों के ध्रुवीकरण के लिए जाति और धर्म का रंग गाढ़ा किया जा रहा है। चाय-पान की दुकानों से लेकर चौराहों की अड़ियों तक जीत-हार के दावे किए जा रहे हैं। कहीं नाम और काम हावी है, तो कहीं-कहीं मुफ्त बिजली-पानी के वादों का असर भी दिख रहा है। यूं कहें कि मतदाता सबको देख-परख रहा है। काम के आधार पर मूल्यांकन तो हो रहा है, पर ज्यादातर के मन-मस्तिष्क पर जाति-मजहब के समीकरण ही हावी हैं।

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव से पहले सत्ताधारी दल बीजेपी को एक बड़ा झटका लगा है. यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया है. साथ ही दावा किया है कि कुछ और मंत्री भी जल्द बीजेपी छोड़ने वाले हैं. लेकिन मौर्य के इस्तीफे की वजह पुरानी है और वह पहले से ही यूपी सरकार के कामकाज को लेकर नाराज चल रहे थे. दरअसल स्वामी प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश सरकार के कामकाज से नाराज थे. 20 जून, 2021 को एक चैनल पर स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था, ‘चुनाव बाद तय होगा सीएम कौन होगा, विधायक दल की बैठक में यह फैसला होगा. आलाकमान किसी और चेहरे को भी भेज सकता है, सीएम चेहरा योगी भी हो सकते हैं और कोई और भी हो सकता है, सब कुछ केन्द्रीय नेतृत्व को तय करना है.’

मौर्य के बयान से साफ है कि उन्हें तब भी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व पर भरोसा नहीं था और कामकाज को लेकर वह खफा चल रहे थे. दूसरी वजह यह है कि स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बेटे अशोक के लिए विधान सभा का टिकट माँग रहे थे, बीजेपी देने को तैयार नहीं थी, क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य खुद विधायक और मंत्री हैं और उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं लोक सभा सीट से बीजेपी सांसद हैं. ऐसे में यूपी चुनाव से ठीक से पहले भाजपा को तगड़ा झटका लगा है। योगी सरकार में मंत्री पद से स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफा और फिर सपा में शामिल होने की खबर ने पार्टी में हलचल पैदा कर दी है। सूत्रों की मानें तो कुछ और विधायक भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं, और कई विधायकों ने स्तीफा दे भी दिया । बता दें की स्वामी प्रसाद मौर्य चार बार बीएसपी से विधायक चुने गए और पिछले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थामकर पांचवीं बार विधायक बने थे।

मौर्य बोले, मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा किसी से भी शिकायत नहीं है। मैं मुद्दों और नीतियों को लेकर राजनीति करता हूं। भाजपा के इन बड़े नेताओं के सानिध्य में सम्मान और स्नेह मिला है। सपा में शामिल होने पर उन्होंने कहा कि मैं अपने समर्थकों से बात करूंगा और एक-दो दिनों में मीडिया के सामने बात रखूंगा। अभी आगे की धार और आगे की वार देखते रहिए।

मौर्य के इस्तीफा देने के बाद कई भाजपा विधायक उनके आवास पर मौजूद थे। मौर्य के साथ ही तिंदवारी से विधायक बृजेश प्रजापति, बिल्हौर से विधायक भगवती सागर और तिलहर से विधायक रोशन लाल वर्मा ने इस्तीफा दे दिया है।

फिलहाल बीजेपी में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने से उथल-पुथल मची हुई है। वहीं चर्चा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव के कहने पर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। लेकिन इन सभी अटकलों पर स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी और बदायूं से बीजेपी सांसद संघमित्रा ने खारिज कर दिया है।

बीजेपी सांसद संघमित्रा ने बताया कि ,उनके पिता किसी पार्टी में शामिल नहीं हुए है। वह आगामी दो दिन में अपनी रणनीति के बारे में सभी को जानाकारी देंगे। उन्होंने साफ कहा है कि उनके पिता ने किसी भी पार्टी में शामिल होने की सहमति नहीं दी है। बता दें कि बीजेपी से इस्तीफा देने के बाद अखिलेश यादव ने एक ट्वीट किया था। इसमें उन्होंने लिखा था कि सामाजिक न्याय और समता-समानता की लड़ाई लड़ने वाले लोकप्रिय नेता स्वामी प्रसाद मौर्या जी एवं उनके साथ आने वाले अन्य सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों का सपा में ससम्मान हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन। इसके बाद से ही उनके सपा में शामिल होने की चर्चा होने लगी। वहीं अखिलेश यादव के ट्वीट को लेकर संघमित्रा ने कहा कि ऐसे ही उनके पिता की पहले भी फोटो वायरल हो चुकी है। उन्होंने बताया कि जब 2016 में उनके पिता ने बसपा का साथ छोड़ा था तब शिवपाल यादव ने उनके साथ की एक फोटो सोशल मीडिया पर डाल दी थी। इसके बाद उनके शिवपाल के साथ जुड़ने पर चर्चाएं होने लगी थी।

बता दें की मौर्य के छिटकने से भाजपा की रणनीति में सेंध का डर है , इससे साफ़ तौर पर आठ मंडलों की दो दर्जन सीटों पर पड़ सकता है प्रभाव . स्वामी प्रसाद मौर्य के छिटकने से भाजपा के सामने करीब 4.5 फीसदी कोइरी मतों को सहेजने की चुनौती आ गई है। सैनी, शाक्य, कुशवाहा, कोली, मौर्या आदि जातियों के नाम से जाने वाले कोइरी बिरादरी का गढ़ पूर्वांचल है। बुंदेलखंड में भी इस बिरादरी की अच्छी तादाद है। पिछले करीब तीन दशकों से स्वामी प्रसाद मौर्य राज्य में इस बिरादरी के स्थापित नेता बने हुए हैं। इस बिरादरी में इनकी पकड़ के कारण ही मायावती ने लंबे समय तक इन्हें अपनी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा। सरकार बनने पर महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री की जिम्मेदारी भी दी गई थी। इस लिए स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में जाने से पूर्वांचल व बुंदेलखंड में भाजपा की कई सीटों के समीकरण बिगड़ने की आशंका है। अब इसे सहेजने के लिए भाजपा को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ सकती है। पूर्वांचल के गोरखपुर, बस्ती, वाराणसी, आजमगढ़, वाराणसी, मिर्जापुर, प्रयागराज, अयोध्या मंडल की दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर कोइरी बिरादरी निर्णायक भूमिका में रहती है। बुंदेलखंड के बांदा व चित्रकूट और पश्चिम में मेरठ तथा आसपास के जिलों की एक दर्जन से ज्यादा सीटों में इस बिरादरी की बड़ी तादाद है।

यूपी में मौर्य, कुशवाहा, सैनी और शाक्य की आबादी करीब आठ फीसदी के आसपास है। करीब 100 विधानसभा सीटों पर इस जाति का प्रभाव माना जाता है। बसपा स्वामी प्रसाद के जरिये इन्हीं लोगों को आकर्षित करती थी, यही काम भाजपा कर रही थी और अब यही उम्मीद सपा करेगी। मौर्य जब बसपा में थे तब भी वे गैर यादव ओबीसी के वोटों के लिए बसपा के सबसे मजबूत नेता थे। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले विश्लेषक मानते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य पिछड़े वर्ग के बड़े और असरदार नेता हैं और इस तरह चुनाव से पहले यदि वे सपा में शामिल होते हैं तो भाजपा के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।

2014-2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें या 2017 के विधानसभा चुनाव की, भाजपा के जबरदस्त प्रदर्शन और उसे सत्ता में लाने के पीछे गैर यादव ओबीसी वोट बैंक का योगदान रहा था।

भाजपा ने इस वर्ग में अपनी खूब बढ़त बनाई थी। भाजपा को 2017 के विधानसभा चुनाव में गैर यादव ओबीसी वोट 61 फीसदी मिला था, वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा 74 फीसदी था। जबकि इसके मुकाबले दोनों चुनाव में सपा को इस वर्ग के बेहद कम वोट मिले थे।

वहीं आपको बता दूँ की , जिस पार्टी में सबसे ज्यादा नेता शामिल होते हैं, वे फ्लोटिंग वोटर्स पर अपना असर डालते हैं। फ्लोटिंग वोटर्स वो हैं, जो आखरी आखरी वक्त में माहौल देखकर अपना मन बनाते हैं। इन वोटर्स का झुकाव उस पार्टी की तरफ होता है जिसके जीतने की संभावना बन रही होती है। उनके मुताबिक पिछले चुनाव में 25 फीसदी फ्लोटिंग वोर्टर्स रहे हैं। इस लिहाज से यदि आने वाले समय में और भी नेता सपा में शामिल होते हैं तो इससे पार्टी को काफी फायदा हो सकता है। यह पूरे चुनावी समीकरण को बदल सकता है।

लेकिन दोस्तों चुनाव बढ़ा अहम है , अपनी उम्मीदों और बेहतर कल की कसौटी पर सबको परखिए। क्योंकि, सवाल सिर्फ चुनाव का नहीं है। आपका वोट प्रदेश के भविष्य की तस्वीर गढ़ेगा। आपको तस्वीर के हर फ्रेम को दुुरुस्त करना है। इसलिए एक-एक ईंट चुन कर रखिए और उस पर भविष्य की इमारत तैयार करने में सहयोग कीजिए, जैसा कि आप चाहते हैं।