बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने बिहार एनडीए से अलग होकर खुद के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का फैसला किया था, जिससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का भारी नुकसान हुआ था। वहीं, चिराग को 143 सीटों पर उतारे गए उम्मीदवारों में से मात्र एक सीट जीत पाएं वो विधायक भी अब नीतीश के पाले में जा चुके हैं। हालांकि, भले हीं, चिराग पासवान को मात्र एक सीट नसीब हुई हो। लेकिन, उनके वोट बैंक में बढोतरी ने पार्टी को गदगद कर दिया। फिलहाल चिराग पासवान पार्टी के भीतर सांसद और चाचा पशुपति पारस गुटों द्वारा बगावत की वजह से उपजे हालात को संभालने में लगे हैं लेकिन, रार दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही है। इन सब के बीच चिराग पासवान को कलह की शुरूआत के दिन से हीं बिहार की विपक्षी पार्टी आरजेडी का समर्थन मिल रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की अगुवाई वाली महागठबंधन की तरफ से उन्हें साथ आने का खुला न्योता मिल रहा है।
आरजेडी एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान को अपने साथ लाने की कोशिश में जुटी हुई है। तेजस्वी ने खुले तौर पर इसका आमंत्रण चिराग को दिया है कि वो महागठबंध का साथ दें। आरजेडी का यह भी दांवा है कि एनडीए की अगुवाई वाली नीतीश सरकार कुछ महीनों की मेहमान है।
बीते दिनों आउटलुक से बातचीत में बीते दिनों राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा था कि यदि चिराग तेजस्वी का साथ देते हैं तो उनका खुले दिल से स्वागत है। साथ हीं, आउटलुक के साथ बातचीत में तिवारी ने ये भी दावा किया था कि सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार बस कुछ महीनों की है। घटक दल हम और वीआईपी दोनों- नीतीश के रवैये से नाखुश हैं और मांझी-साहनी तेजस्वी के संपर्क में हैं।
दरअसल, तेजस्वी की इस साथ लाने वाली रणनीति के पीछे बिहार की जातिगत राजनीति और उस पर टिके वोट बैंक का खेल है। गत वर्ष हुए बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपी को लगभग 6 फीसदी और संख्या में 26 लाख वोट मिले थे। वहीं, चिराग ने नीतीश का भी वोट जमकर काटा था। जिसका परिणाम ये हुआ कि नीतीश कुमार बड़े भाई की भूमिका से छोटे भाई की भूमिका में आ गएं। उनकी पार्टी को महज 43 सीटें मिली थी जबकि भाजपा को 74 और तेजस्वी की अगुवाई वाली पार्टी राजद को सबसे अधिक 75 सीटें मिली थी। महागठबंधन को बहुमत 122 के मुकाबले 110 सीटें मिली थी जबकि एनडीए के खाते में 125 सीटें गई थी।
भले ही तेजस्वी चिराग पर डोरे डाल रहे हों लेकिन, चिराग की तरफ से अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं। उनका कहना है कि वो एनडीए में बने रहेंगे। साथ ही वो नीतीश के साथ दुबारा जाने को भी राजी नहीं हैं। हालांकि, लगातार वो बीजेपी की चुप्पी को लेकर हमलावर हैं। चिराग का आरोप है कि पशुपति पारस गुटों के बगावत के पीछे नीतीश कुमार का हाथ है और बीजेपी के वरिष्ठ आलाकमानों ने चुप्पी साध रखी है।
एक और चाल चलते हुए राजद ने तय किया है कि 5 जुलाई को उनकी पार्टी रामविलास पासवान की जयंती मनाएगी। उल्लेखनीय है कि 5 जुलाई की तारीख राजद के लिए भी खास है। वो इसलिए क्योंकि इस दिन राजद का भी 25वां स्थापना दिवस है और इसी दिन रामविलास पासवान का जन्मदिन भी है। ऐसे में राजद ने फैसला किया है कि स्थापना दिवस के कार्यक्रम से पहले रामविलास पासवान की जयंती मनाई जाएगी।
वहीं, चाचा पशुपति कुमार पारस गुट और चिराग पासवान खेमे के बीच कुर्सी को लेकर लोक जनशक्ति पार्टी के भीतर खींचातानी जारी है। चिराग पासवान 5 जुलाई को हाजीपुर से आशीर्वाद यात्रा पर निकलने वाले हैं। हाजीपुर दिवंगत रामविलास पासवान का गढ़ माना जाता रहा है। अब ये लोकसभा क्षेत्र बागी चाचा पशुपति पारस का है। आशीर्वाद यात्रा के दौरान चिराग बिहार के सभी जिलों का दौरा करेंगे और ये संदेश देने की कोशिश होगी कि रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत के असली उत्तराधिकारी वो खुद हैं। माना जा रहा है कि इस यात्रा के दौरान चिराग अपने दलित वोट बैंक को भी मजबूत करने की कोशिश करेंगे।