पर्यावरण को बचाना है तो वृक्षारोपण है जरूरी : आदर्श कुमार (सम्पादक दस्तक मीडिया ग्रुप)

जंगल हों या वृक्ष इनका मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान है। असलियत यह है कि वृक्ष दुनिया में जीवन का समर्थन करने वाली अहम और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाहते हैं। यह ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। लेकिन आज जिस तेजी से समूची दुनिया में जंगल खत्म हो रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब जंगलों के अभाव में धरती पर पाई जाने वाली बहुमूल्य जैव सम्पदा बड़ी तादाद में नष्ट हो जाएगी जिसकी भरपाई की कल्पना ही बेमानी होगी।

आज जीवन की दृष्टि से पर्यावरण मानव के लिए सर्वोच्च जरुरत है। जल, जंगल और जमीन तीनों उसके प्रमुख आधार हैं। विकास के मौजूदा मॉडल की विफलता यह कि जीवन के इन तीनों आधारों को प्रदूषण ने लील लिया है। यही वजह है आज देश की आबादी का बड़ा हिस्सा स्वच्छ व सुरक्षित पानी, शौचालय और शुद्ध हवा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित है। पर्यावरण पूरी तरह प्रदूषित हो चुका है। इस दिशा में समाज और सरकार को स्वच्छता और वृक्षारोपण को एक जनान्दोलन बनाने की तरफ सोचना होगा, जिसके लिए समाज की सहभागिता होना पहली और आवश्यक शर्त है।

एक नए शोध के अनुसार समूची दुनिया में तकरीबन तीन ट्रिलियन पेड़ हैं। देखा जाये तो पूरी दुनिया में हर साल तकरीबन 15 अरब पेड़ काट दिये जाते हैं। मौजूदा हालात गवाह हैं कि मानव सभ्यता की शुरुआत के बाद से दुनिया में पेड़ों की संख्या में 46 फीसदी की कमी आई है। यह स्थिति की भयावहता का प्रतीक है। जबकि यह जगजाहिर है कि प्रदूषण रोकने में पेड़ों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

समय की माँग है कि अब प्रकृति को बचाया जाये। यह अपरिहार्य है। पर्यावरण को बचाने की दिशा में प्रकृति से जुड़ाव पहला कदम है। जरूरत है कि पुराने समय में लौटा जाये, फिर से ईकोफ्रेंडली कारोबारों, व्यवसायों से जुड़ना होगा जो न सिर्फ लोगों को रोजगार दिलाते हैं, बल्कि प्रकृति को बिना नुकसान पहुँचाए हमारी जरूरतों की पूर्ति भी करते हैं। इसके सिवाय कोई चारा नहीं है। आज पर्यावरण संभालने की दिशा में समाज और सरकार को स्वच्छता और वृक्षारोपण को एक जनान्दोलन बनाने की तरफ सोचना होगा, जिसके लिए समाज की सहभागिता होना पहली और आवश्यक शर्त है। इस दिशा में जागरुकता के लिए समाज के साथ समूह चर्चाएं की जाएं। विभिन्न स्तरों पर सामाजिक सहभागिता बढ़ायी जाए। महिलाएं, युवा और बुजुर्ग समूह चर्चाओं का आयोजन करें। तब सम्भव है, जनता जागरूक हो और इस गंभीर समस्या के लिए काम हो।

आदर्श कुमार (सम्पादक दस्तक मीडिया ग्रुप)