मशहूर एक्टर अखिलेंद्र मिश्र ने कहा कि आज पूरा देश राममय हो गया है। हर जगह लोग राम की ही बात कर रहे हैं। सोशल मीडिया, टेलीविजन और समाचार पत्रों में बस राम के ही नाम की गूंज है। हो भी क्यों न, राम हमारी संस्कृति के आधार हैं। जब वो मनुष्य रूप में अवतरित हुए तो उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहा गया।
19 जनवरी को अखिलेंद्र मिश्र की फिल्म 695 रिलीज हुई है। 695 का अर्थ तीन तिथियों से है। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी। 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि अयोध्या में मंदिर ही बनेगा। इसके बाद 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने मंदिर निर्माण की पहली आधारशिला रखी थी। इन्हीं तीन तारीखों के आधार पर फिल्म का टाइटल रखा गया है।
अयोध्या में मंदिर बनने को लेकर जो संघर्ष हुआ, यह फिल्म उसी कहानी को दिखाती है। अखिलेंद्र ने दैनिक भास्कर के साथ एक्सक्लूसिव बातें की हैं।
अखिलेंद्र ने कहा, ‘राम चरित मानस में तुलसीदास जी ने यही कहा है कि राम का नाम लेना बहुत जरूरी है। चाहे वो मित्रता से लीजिए, या शत्रुता से। रावण भी दिन भर राम का नाम जपता था, भले ही वो शत्रुता से ही क्यों न हो।
आज कई लोगों को राम नाम लेने में दिक्कत होती है। वो भगवान के अस्तित्व को ठुकराते हैं। वे भूल जाते हैं कि एक दिन उन्हें भी राममय हो जाना है। राम का नाम लेना कितने सौभाग्य की बात है, उन्हें इसका अंदाजा नहीं है।’
रामानंद सागर के बेटे आनंद सागर ने रामायण पर एक सीरीज बनाई थी। उसमें अखिलेंद्र मिश्र ने रावण का किरदार निभाया था। इस पर बोलते हुए हुए उन्होंने कहा, ‘हां, मैंने रावण का रोल किया था। पहले तो इच्छा नहीं थी। रामानंद सागर जी की रामायण में अरविंद त्रिवेदी ने रावण के रोल को जीवंत कर दिया था। मैं अपने आप को वहां तक नहीं देख रहा था।
इसके बावजूद मैंने हामी भर दी। मैंने आनंद जी से कहा कि मैं रावण का रोल करूंगा जरूर लेकिन अपने तरीके से। आप देखेंगे कि एक एपिसोड में रावण रोया भी था। उस एपिसोड ने सबसे ज्यादा TRP दी।’
अखिलेंद्र ने श्रीराम के वनवास के समय के कुछ अद्भुत बातों से पर्दा उठाया। उन्होंने कहा, ‘वानर सेना राम लिखे पत्थरों को समुद्र में फेंक रही थी, वो पत्थर सेतु बनते जा रहे थे। लेकिन श्रीराम ने जो पत्थर फेंका वो डूब गया।
उन्होंने वहां मौजूद अपनी सेना से इसका कारण पूछा। सेना ने कहा कि प्रभु हम तो आपके नाम के पत्थर समुद्र में छोड़ रहे हैं, इसलिए वो सेतु बनते जा रहे हैं। लेकिन जिसे आपने छोड़ दिया उसका तो डूबना तय है।’
अखिलेंद्र ने यहां वानर सेना का भी मतलब बताया। उन्होंने कहा, ‘कुछ लोग वानर का संबंध बंदरों से बताते हैं। ऐसा नहीं है। वन में रहने वाले नर को वानर कहते हैं। वानर सेना में सिर्फ बंदर नहीं थे। वहां और भी जीव-जंतु थे, जो राम जी की सेना के साथ रावण के खिलाफ लड़े थे। ये सभी वानर सेना कहलाए।’
आपको रावण का रोल ऑफर किया गया था। अगर खुद से कोई रोल चुनना रहता तो रामायण का कौन सा पात्र निभाना पसंद करते। अखिलेंद्र ने कहा, ‘वैसे तो मैं राम का ही रोल करना चाहता। हालांकि मैं बचपन से शिव का भक्त रहा हूं, इसलिए मेरे हिस्से में शिव के भक्त रावण का किरदार आया।
वैसे भी भगवान राम तो शिव के हृदय में बसते हैं। जब समुद्र मंथन हो रहा था तो शिव जी ने विष को अपने गले यानी कंठ में ही रोक लिया, उसे नीचे नहीं जाने दिया। उन्हें डर था कि कहीं वो विष राम जी को स्पर्श न कर दे।’
आज के वक्त में कुछ लोग रावण को श्रीराम की तुलना में ज्यादा पराक्रमी और महान बताते हैं, ऐसी बातों का जवाब कैसे देंगे। अखिलेंद्र ने कहा, ‘रावण पराक्रमी तो था, इसमें कोई संदेह नहीं है। वो ग्रह नक्षत्रों को अपने इशारे पर नियंत्रित करता था।
तप करते वक्त उसे पता चलता था कि चंद्रमा कहीं हंस रहे हैं, रावण वहीं से उन्हें डांट देता था। कहता था- ऐ चंद्रमा तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है कि मैं यहां तप कर रहा हूं। हालांकि राम तो राम हैं। राम की तुलना किसी से नहीं हो सकती। उनकी तुलना करने वाले अज्ञानी हैं।’
अखिलेंद्र मिश्र ने कहा कि सालों बाद हिंदू चेतना जागृत हुई है। हिंदू काफी वर्षों से शांत बैठा था। वो अपने अधिकारों की मांग नहीं करता था। सालों से इनके साथ अन्याय होते आया है। विदेशी आक्रांता हिंदुओं के मंदिर तोड़ते गए। संस्कृति को भी नष्ट करने का प्रयास किया।
किसी भी कालखंड में इन अन्यायों के खिलाफ आवाज नहीं उठाई गई। अब जाकर हिंदू समाज एकजुट हुआ है। अखिलेंद्र ने कहा कि उनकी फिल्म 695 में काशी और मथुरा में तोड़े गए मंदिरों की भी बात की गई है। फिल्म में उनका किरदार एक संत की भूमिका में है। वो संत लोगों से आह्वान करता है कि अयोध्या के साथ इन दोनों स्थानों की भी बात होनी चाहिए।’