लोकसभा चुनाव के दौरान मप्र कांग्रेस के तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। इनमें सिर्फ एक विधायक कमलेश शाह ने ही विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया है। लेकिन, विजयपुर विधायक रामनिवास रावत और बीना विधायक निर्मला सप्रे ने अब तक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है। दल-बदल कानून के तहत दोनों विधायकों की सदस्यता जा सकती है।
इधर, कांग्रेस दल-बदल करने वाले विधायकों के इस्तीफे का इंतजार कर रही है। विधायक अपने नए दल के इशारे का इंतजार कर रहे हैं।
सबसे पहले बात कमलेश शाह की, जिनसे विधायकों के दल-बदल की शुरुआत हुई
छिंदवाड़ा की अमरवाड़ा सीट से तीन बार के कांग्रेस विधायक और आदिवासी राजपरिवार के सदस्य कमलेश शाह ने 29 मार्च को सबसे पहले बीजेपी की सदस्यता ली। विधानसभा चुनाव के बाद दल-बदल करने वाले कमलेश शाह पहले विधायक हैं। कमलेश ने बीजेपी जॉइन करने के साथ ही विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। विधानसभा सचिवालय ने अमरवाड़ा सीट को रिक्त भी घोषित कर दिया है। अब अमरवाड़ा सीट पर उपचुनाव होना तय है।
श्योपुर जिले की विजयपुर सीट से छह बार के कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत मुरैना से नीटू सिकरवार को टिकट मिलने के बाद से ही कांग्रेस से नाराज चल रहे थे। रावत को पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह, जीतू पटवारी से लेकर राहुल गांधी ने समझाया था। राहुल गांधी से लंबी बातचीत होने के बाद भी रामनिवास रावत नहीं माने। उन्होनें 30 अप्रैल को विजयपुर में ही सीएम डॉ मोहन यादव, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के समक्ष बीजेपी जॉइन कर ली। भाजपा की सदस्यता लेने के बाद भी रात ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है।
सागर जिले की आठ विधानसभाओं में से सात सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार 2023 में चुनाव जीते थे। अकेले बीना विधानसभा सीट पर कांग्रेस की केंडिडेट निर्मला सप्रे विधायक चुनी गई थीं। निर्मला सप्रे ने तीन दिन पहले बीजेपी की सदस्यता ले ली है। निर्मला सप्रे ने पीसीसी चीफ जीतू पटवारी को पूर्व मंत्री इमरती देवी पर दिए गए बयान से आहत बताते हुए कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया। बीजेपी जॉइन करने के बावजूद निर्मला ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है।
निर्मला सप्रे- जब सदन चलता है। तब अध्यक्ष को इस्तीफा देना पड़ता है। बाकी पार्टी जैसा निर्देश देगी वैसा करेंगे। इस्तीफा देना है या नहीं, ये अभी कुछ तय नहीं हैं।
विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव भगवानदेव इसरानी कहते हैं – ऐसे मामले में संविधान की दसवीं अनुसूची के दल-बदल के नियम लागू होंगे। उसमें कांग्रेस के किसी विधायक को लिखित शिकायत में प्रमाणों सहित करनी पड़ेगी। कि इन्होंने इस तरह से दल बदल किया है। शिकायत की जांच होगी और उसके बाद उनकी सदस्यता जाएगी
सदस्यता जाए या फिर वो स्वयं इस्तीफा दे दें। चूंकि उन्होंने दल बदल ही लिया है तो वो इस्तीफा भी दे सकते हैं। जैसा कि कुछ लोगों ने किया है। ये अब उन विधायकों पर निर्भर करेगा कि वो इस्तीफा देते हैं या फिर कांग्रेस पार्टी के विधायक प्रमाणों सहित शिकायत करेंगे। फिर स्पीकर उसपर निर्णय लेंगे।
दल-बदल के बाद सदस्यता खत्म होने के मामले लंबे चलने के पीछे ईसरानी कहते हैं – टाइम गेन करते हैं लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ चुका है कि यदि शिकायत आती है तो तीन महीने में स्पीकर को निर्णय लेना पडे़गा। और अगर प्रमाणों सहित शिकायत आएगी तो स्पीकर निर्णय करेंगे।
दल-बदल के दौरान के फोटोग्राफ्स, भाषण, वीडियो क्लिपिंग, सदस्यता का कोई प्रमाणपत्र मिल जाता है तो इन दस्तावेजों के साथ शिकायत की जाती है तो फिर विधानसभा की ओर से संबंधित दल के अध्यक्ष से पूछा जाता है कि क्या इन्होंने आपकी पार्टी की सदस्यता ली है तो अध्यक्ष की ओर से हां-ना में जवाब आता है। इस जवाब तलब के बाद जो स्थिति स्पष्ट होती है उसके आधार पर कार्रवाई होती है।
कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष और चुनाव आयोग कार्य विभाग के प्रभारी जेपी धनोपिया ने विधायकों के दल-बदल को लेकर कहा- कोई भी व्यक्ति किसी राजनीतिक दल के चुनाव चिन्ह पर इलेक्शन लड़कर विधायक बनता है तो पार्टी के विधायक के तौर पर उसकी विधानसभा में उपस्थिति दर्ज की जाती है। रिकॉर्ड में वह उस दल का विधायक माना जाता है। विधानसभा में उसी के आधार पर उसके बैठने का स्थान तय होता है। लेकिन अभी हाल ही में जो घटनाक्रम हुआ है उसमें छिंदवाड़ा के एक विधायक कमलेश शाह द्वारा इस्तीफा दिया और बीजेपी की सदस्यता ली गई।
लेकिन, अभी कुछ दिन पहले रामनिवास रावत और निर्मला सप्रे ने भाजपा में शामिल होने की घोषणा की है लेकिन मेरी जानकारी के अनुसार उन्होंने त्यागपत्र नहीं दिया है। और उनमें त्यागपत्र देने का साहस भी नहीं है। क्योंकि, उन्हें मालूम है कि गलत हो गया है। और भाजपा की सदस्यता लेने के बाद उनकी विधायकी समाप्त होने की संभावना पूरी है। ध्न यदि उनका त्यागपत्र आता है तो सोचा जाएगा। अगर नहीं आता है तो कांग्रेस विधायक दल की ओर से नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार अग्रिम कार्रवाई करते हुए विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत करेंगे और हम सिद्ध करेंगे कि दोनों विधायक भाजपा के सदस्य हो गए हैं उनकी सदस्यता समाप्त की जाए और उनके खिलाफ सदस्यता रद्द करने की कार्रवाई की जाए।
2018 के विधानसभा चुनाव में खरगोन की बड़वाह से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने सचिन बिरला ने 24 अक्टूबर 2021 को खरगोन के बेड़िया में BJP की सदस्यता ले ली थी। बिरला के बीजेपी जॉइन करने के बाद कांग्रेस ने काफी दिनों बाद विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत कर उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग की। विधानसभा सचिवालय की ओर से पत्र जारी हुआ और कहा गया कि आपने शिकायत के साथ प्रमाण प्रस्तुत नहीं किए।
सचिन बिरला ने पिछले साल 8 नवंबर को दूसरी बार भोपाल में औपचारिक तौर पर भाजपा की सदस्यता ली थी। इससे पहले वे अक्टूबर 2021 में भाजपा में शामिल होने का ऐलान सीएम शिवराज की मौजूदगी में कर चुके थे।
बड़वाह से कांग्रेस विधायक सचिन बिरला ने खंडवा लोकसभा के उपचुनाव के समय 24 अक्टूबर 2021 को खरगोन के बेड़िया में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में भाजपा में शामिल होने की घोषणा कर दी थी। हालांकि, उन्होंने सदस्यता नहीं ली पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक में भी फिर नहीं आए। कांग्रेस विधायक दल ने दो बार उनकी सदस्यता समाप्त करने के लिए आवेदन दिया पर उसे तकनीकी आधार पर विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने अमान्य कर दिया था। इस तरह सचिन बिरला ने दलबदल के बाद भी अपना कार्यकाल पूरा किया। बीते विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उन्होंने औपचारिक तौर पर बीजेपी जॉइन की और अब वे भाजपा के टिकट पर 2023 में चुनाव लड़कर विधायक चुने जा चुके हैं।