कोई जल्दबाजी नहीं, डेढ़ दशक से हो रही थी कृषि कानूनों पर चर्चा:रविशंकर प्रसाद

कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमा पर एक पखवाड़े से आंदोलन चल रहा है। सरकार की लाख कवायद के बावजूद वह टस से मस होने को तैयार नहीं हैं, बल्कि अब कृषि कानूनों की बजाय ऐसे लोगों को छोड़ने के नारे लगने लगे हैं जिनके ऊपर आपराधिक मामले ही नहीं, बल्कि अदालत ने भी बेल देने से मना कर दिया है। ऐसे में भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद आशंका जताते हैं कि इसे शाहीनबाग के रास्ते ले जाने की कोशिश हो रही है, लेकिन सरकार ऐसा नहीं होने देगी। कुछ किसान संगठनों की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए रविशंकर चेताते हैं- कानून हाथ में लेनेवालों के खिलाफ कानून काम करेगा। वहीं कांग्रेस व राकांपा को याद दिलाते हैं कि संप्रग के कृषि मंत्री शरद पवार ने तो माडल कानून लागू न करने वालों को धमकी तक दे दी थी। अब राजनीति कर किसानों का नुकसान कर रहे हैं। दैनिक जागरण के उप ब्यूरो प्रमुख एसपी सिंह से बातचीत के अंश-
सवाल : किसानों के आंदोलन को एक पखवाड़ा हो गया है। सरकार पर आरोप है कि न तो किसानों की सुनी गई और न ही राजनीतिक दलों से चर्चा की गई। आखिर सरकार को क्या जल्दी थी?

जवाब- सरकार ने कोई काम जल्दी में नहीं किया है। कृषि सुधार के कानून के मुद्दे पर चर्चा पिछले डेढ़ दशक से ज्यादा समय से हो रही थी। इतिहास को पलट कर देख लीजिए। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कवायद शुरू हुई थी। संप्रग सरकार ने इसे मंजिल तक पहुंचाने की कोशिश की। सभी जानते हैं कि मनमोहन सरकार में कृषि मंत्री रहे शरद पवार ने राज्यों को चिट्ठी लिखी थी और मंडी में निजी निवेश की बात कही थी। तो क्या यह सबकुछ तत्कालीन संप्रग सरकार में चर्चा के बगैर हुआ। आम सहमति बनी होगी। याद रखिए कि उस सरकार में कांग्रेस के साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस, राजद, डीएमके, टीडीपी, एनसीपी, नेशनल कांफ्रेंस समेत सभी गैर भाजपा दल शामिल थे। उस वक्त की मनमोहन सिंह सरकार वामपंथी दलों के समर्थन से चल रही थी। उसी सरकार में कृषि मंत्री शरद पवार ने सभी राज्यों को खत लिखकर धमकी भरे अंदाज में कहा था कि कृषि सुधार को लागू न करने वाले राज्यों की वित्तीय मदद रोक दी जाएगी। इसके बावजूद अब राहुल गांधी इन्हीं सुधारों पर किसानों को उकसाने वाले बयान दे रहे हैं। यह इन पाíटयों का दोमुंहापन है। रही बात किसानों की तो उनसे पहले भी चर्चा की गई थी और अभी भी वार्ता के लिए तैयार हैं।
सवाल : लेकिन अध्यादेश लाना और फिर संसदीय समिति में भेजे बगैर पारित कराना..।

जवाब- रोकते हुए.. देखिए मोदी सरकार किसानों के हित में कोई देरी करना नहीं चाहती है। अध्यादेश कानून ही होता है। वह लाए और फिर संसद में घंटों चर्चा कराई। विपक्ष की मंशा इन कानूनों को लंबित कराने तक ही सीमित थी, वरना उन्हें क्या ऐतराज है। कृषि सुधार के ये सारे प्रावधान विपक्षी कांग्रेस के वर्ष 2019 के चुनाव घोषणापत्र में स्पष्टता से दर्ज हैं। घोषणापत्र में मंडी कानून में संशोधन करने और कांट्रैक्ट खेती को लागू करने का वायदा किया गया है। वर्ष 2013 में कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की राहुल गांधी की बुलाई बैठक में फल और सब्जियों को मंडी कानून के दायरे से बाहर करने का फैसला किया गया था। तत्कालीन संप्रग सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाले तत्कालीन योजना आयोग की सिफारिश में भी यही सब कहा गया। राजनीतिक दलों का विरोध केवल विरोध के लिए है और वही किसानों को भी भड़का रहे हैं।

सवाल : लेकिन अब तो यह बात आ रही है कि किसान संगठनों के अंदर कुछ टुकड़े- टुकड़े गैंग शामिल हैं?

जवाब- अगर आंदोलन के बीच से ऐसे लोगों के समर्थन में आवाज उठ रही है जिन्होंने देश को तोड़ने, देश की सुरक्षा और संप्रुभता के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश की है, तो यह आशंका तो जताई ही जाएगी। अदालत से जिनकी बेल रिजेक्ट हो गई हो उन्हें मुक्त कराने की बात की जाए तो क्या कहा जाएगा। किसान संगठनों को गुमराह नहीं होना चाहिए। किसानों को अपने आंदोलन की पवित्रता को उनके हाथों नहीं सौंपना चाहिए, जिन पर पहले से ही गंभीर आरोपों की चार्जशीट दाखिल हुई हो। ऐसे लोग बेनकाब होने लगे हैं। सरकार उनके आगे नहीं झुकेगी जिनके राजनीतिक स्वार्थ के चलते देश की संप्रभुता को खतरा पैदा हो गया हो।
सवाल : किसानों का यह आंदोलन शाहीनबाग के रास्ते पर तो नहीं जा रहा है?

जवाब- कुछ लोगों की ऐसी कोशिश जरूर है कि इसे शाहीनबाग बनाया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाएगा। सरकार खुले मन से किसानों को वार्ता की मेज पर आमंत्रित कर उनकी समस्याओं का निराकरण करने को तैयार है।

सवाल : क्या सुरक्षा को लेकर सरकार के पास कोई इनपुट है?
जवाब – कई बातें सार्वजनिक नहीं की जा सकती हैं। हां, हम इतना जरूर कहेंगे कि सरकार सतर्क है और सशक्त भी। कानून अपने हाथ में लेने वालों के खिलाफ कानून अपना काम करेगा। कानून व्यवस्था बनाने वाली एजेंसियां अपना काम करेंगी। मैं बस इतना ही कहूंगा।

सवाल : सरकार ने किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए अब तक क्या किया है?

जवाब – देखिए सरकार खुले मन से किसानों से बातचीत कर उनकी तकलीफ दूर करने की हिमायती है। किसानों ने कानून के कुछ प्रावधानों पर ऐतराज किया तो सरकार ने सहर्ष उस पर विचार करने की बात कही। एक्ट में विवाद निपटाने के लिए एसडीएम को नामित करने का प्रावधान है, लेकिन किसान संगठनों ने कहा कि सिविल कोर्ट में विवाद की सुनवाई की अनुमति दी जानी चाहिए। सरकार बिना विलंब उसे मानने को तैयार हो गई। उन्हें वार्ता में कानूनी प्रावधानों पर विस्तार से चर्चा करनी चाहिए। किसी की कही-सुनी बातों पर हठ अथवा जिद ठीक नहीं है।
सवाल : पूरा मसला कब तक सुलझने की संभावना है?

जवाब – सरकार हमेशा तैयार बैठी है। वार्ता के लिए खुला निमंत्रण है। हर समस्या के समाधान का आश्वासन है। देखिए, यह किसान भी जानते हैं कि मोदी सरकार ने उनके लिए एक कदम आगे बढ़कर काम किया है, लेकिन उन्हें राजनीतिक मंशा रखने वाले लोगों ने बरगलाया है। मुझे उम्मीद है कि बहुत जल्द मामला सुलझ जाएगा।

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आदर्श कुमार

संस्थापक और एडिटर-इन-चीफ