ओडिशा के सुन्दरगढ़ में हर घर में हैं हॉकी खिलाड़ी…बच्चे को बैट की जगह स्टिक थमाते हैं, इनाम में मिलता है बकरा-मुर्गा

आज की तारीख में भारतीय हॉकी का नाम सुनते ही सबसे पहले ओडिशा जेहन में आता है। यह राज्य भारतीय टीम को स्पॉन्सर करता है। यहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इस समय देश में खेल के सबसे बड़े ब्रांड अंबेसडर नजर आते हैं। ओडिशा में ही अभी 15वां हॉकी वर्ल्ड कप भी खेला जा रहा है।

इतना सब होने के बावजूद हॉकी के साथ इस राज्य की लव स्टोरी का एक बड़ा किरदार भारत के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों के अनसुना है। यह किरदार कोई व्यक्ति नहीं है। यह ओडिशा का एक जिला है, जिसका नाम है सुंदरगढ़। यह जिला भारतीय हॉकी का नया गढ़ बन गया है। कैसे बना और क्यों बना यही इस स्टोरी में जानेंगे।
भारतीय हॉकी में सुंदरगढ़ की अहमियत इसी बात से पता चलती है कि यहां 17 ब्लॉक से अब तक 85 खिलाड़ी पुरुष और महिला वर्ग में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। हाल के दशकों में यहां स्टार खिलाड़ियों की पैदावार और भी तेज रही है। पूर्व भारतीय कप्तान दिलीप तिर्की इसी जिले से हैं। दिलीप इस समय हॉकी इंडिया के अध्यक्ष भी हैं। अभी चल रहे वर्ल्ड कप में भारत की ओर से पहला गोल दागने वाले अमित रोहिदास भी यहीं के रहने वाले हैं। मौजूदा टीम इंडिया के एक अन्य मेंबर नीलम संजीप भी सुंदरगढ़ के हैं।

अब सवाल उठता है कि यहां से इतने शानदार खिलाड़ी एक के बाद एक क्यों सामने आ रहे हैं। इसका जवाब है यहां रहने वाले लोगों में हॉकी के लिए प्यार और समर्पण। यहां की संस्कृति का दूसरा नाम हॉकी को कहा जा सकता है। देशभर में बच्चे बैट-बॉल यानी क्रिकेट खेलना और देखना पसंद करते हैं। सुंदरगढ़ के बच्चे हॉकी स्टिक की सोहबत रखते हैं।
सुंदरगढ़ आदिवासी बहुल जिला है। यहां के आदिवासियों ने अपनी परंपरा को भी हॉकी से जोड़ दिया है। यह परंपरा है किसी काम में अच्छा करने पर इनाम के तौर पर मुर्गा या बकरा दिया जाना। यहां के गांव-गांव में हॉकी टूर्नामेंट खेला जाता है। विजेता टीमों को पुरस्कार के तौर पर बकरा या मुर्गा दिया जाता है। जितना बड़ा टूर्नामेंट बकरे की संख्या उतनी ज्यादा। युवा आदिवासी बच्चे इसे हॉकी खेलने के इंसेंटिव के रूप में देखते हैं
सुंदरगढ़ जिले में हर साल बकरा टूर्नामेंट आयोजित होते हैं। क्रिसमस यानी 25 दिसंबर को शुरू होने वाले इन टूर्नामेंट में 100 से अधिक गांव खेलते हैं। हर रविवार को इसके मैचों का आयोजन होता है। अलग-अलग ब्लॉक और गांव इन प्रतियोगिताओं का आयोजन कराते हैं और जीतने वाली टीम को बकरा और मुर्गा ईनाम के रूप में दिए जाते हैं।
इन टूर्नामेंट में वही खिलाड़ी हिस्सा ले सकता है। जिसका चयन डिस्ट्रिक्ट, स्टेट या नेशनल लेवल की टीम में न हुआ हो। यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि जो खिलाड़ी खेल में एक मुकाम हासिल कर चुके हैं वे अन्य युवाओं की जगह न घेरें। राज्य सरकार इस टूर्नामेंट के जरिए टैलेंट हंट भी करती है। हुनरमंद खिलाड़ियों की पहतान कर उन्हें राज्य सरकार के पानपोष स्पोर्ट्स हॉस्टल में दाखिला दिया जाता है। वहां उनकी आधुनिक ट्रेनिंग होती है और वे इसकी बदौलत खेल में आगे अपना करियर बनाते हैं।
पानपोष में ट्रेनिंग दे रहे पूर्व ओलिंपियन लाजरूस बारला बताते हैं कि टैलेंट स्काउट करने के लिए वे लोग छोटे-छोटे गांव तक जाते हैं। यहां से प्रतिभावान बच्चों को चुनकर उन्हें तैयार करते हैं। सुंदरगढ़ के हॉकी कल्चर पर वे कहते हैं कि आमतौर पर भारत में जब बच्चा चलना शुरू करता है तो पैरेंट्स उसे बैट थमाते हैं, लेकिन हमारे यहां बच्चे को हॉकी स्टिक थमाई जाती है
स्पोर्ट्स हॉस्टल में जो खिलाड़ी अच्छा परफॉर्म करते हैं उन्हें जिले में चल रही दो अकादमी में एडमिशन मिल जाता है। एक आकादम सेल इंडिया चलाती है और दूसरी अकादमी राज्य सरकार चलाती है। 1985 में सामने आई सरकारी अकादमी में इस समय 199 खिलाड़ी मौजूद हैं। सिर्फ इस अकादमी से अब तक 67 इंटरनेशनल खिलाड़ी निकल चुके हैं। दिलीप तिर्की और अमित रोहिदास भी इसी अकादमी से निकले हैं।
सुंदरगढ़ जिले में एस्ट्रोटर्फ भी मौजूद हैं। हॉकी अब तमाम इंटरनेशनल टूर्नामेंट एस्ट्रोटर्फ पर ही होते हैं। सुंदरगढ़ के खिलाड़ी करियर की शुरुआत में ही एस्ट्रो टर्फ पर खेलने की तकनीक में महारत हासिल कर लेते हैं। जल्द ही जिले में 21 एस्ट्रोटर्फ उपलब्ध होने वाले हैं।