फिर परधानी आईल बा : अनिल मिश्र (मुंबई)

फिर परधानी आईल बा
उहै पुरनके चेहरन में अब,
नई रवानी आईल बा।
हमरा के लागेला जइसे,
फिर परधानी आईल बा।।
कतवारू जी बड़े सवेरे,
गांव कै चक्कर मारे लें,
जउने घर में वोटर ज्यादा,
वही ज डेरा डारे लें,
रामखेलावन हाथ जोड़िके,
घुमत बाटें टोला में,
वृद्धा पेंशन वाला फारम,
धइले बाटे झोरा में,
समरसता के बदरा जइसे,
गांव मध्य में छाइल बा।
हमरा के लागेला जइसे,
फिर परधानी आईल बा।।
खरपत्तू कै माई तेवरिस,
मरि गइलीं लाचारी में,
खेत बेंचि के रुपया फुकलैं,
माई के बैमारी में,
केहू मदद करे ना आयल,
ना केहू दर्शन दिहलै,
असों भँइस मरल बाओकर,
सब केहू अंगना कईलै,
यतना रुपया जुटल बा ओकरे,
दूसर भँइस किनाइल बा।
हमरा के लागेला जइसे,
फिर परधानी आईल बा।।
यहर ओहर जे बतियावे ला,
वही कै थइली गरम हवे,
सब प्रत्याशी जीत रहल बा,
अइसन सबके भरम हवे,
चापलूस के चमकल किस्मत,
रोज बजारे आ जालें,
थैली में एको आना ना,
तबो ऊ सीसी पा जालें,
ढेर कै रुपया जे फूँकत बा,
वही के नाँव सुनाइल बा।
हमरा के लागेला जइसे,
फिर परधानी आईल बा।।
भाई-चारा पनप उठल बा,
प्रत्याशी के जेहन में,
अबहिन ले ऊ खेत ना छूटल,
धयल जवन बा रेहन में,
परधानी लड़ले कै कीड़ा,
चालत बाय कपारे में,
जूता कुर्ता मफलर आयल,
लगल बा डाई बारे में,
कलिहैं अबहिन खादी वाली,
सदरी “लाल” किनाइल बा।
हमरा के लागेला जइसे,
फिर परधानी आईल बा।।