कर अदायगी और उसका उपभोग: किसानों के सन्दर्भ में-राम सिंह

समय-समय पर यह मुद्दा उठता रहता है कि कर अदायगी कोई करता है जबकि उस कर का उपभोग कोई दूसरा करता है। उदाहरणार्थ जेएनयू में फीस के मुद्दे पर छात्रों के आंदोलन के समय कुछ लोगों ने प्रश्न किया था कि हमारे कर का उपयोग प्रौढ़ हो चुके छात्रों की शिक्षा पर न किया जाय। साथ ही यह भी कहा गयाकि जेएनयू आतंकवाद का गढ़ बन गया है, अतः उनके द्वारा अदा किए गए कर का उपयोग इन आतंकवादियों पर न किया जाए। वर्तमान में किसानों के आंदोलन के समय कुछ लोगों ने पुनः प्रश्न किया है कि कर की अदायगी वह करते हैं और उस कर से किसानों को मुफ्त की रेवडियां बांटी जाती हैं, अनुदान दिया जाता है जबकि कृषि पर कोई कर नहीं लगता है।
ऐसे करदाता भूल जाते हैं कि अप्रत्यक्ष कर का भुगतान तो देश का प्रत्येक नागरिक करता है, वह किसी भी व्यवसाय में संलग्न हो या बेरोजगार ही क्यों न हो, जो भी व्यक्ति कोई भी वस्तु खरीदता है, कर का भुगतान करता है। 2017-18 में प्रत्यक्ष कर से 10.02 लाख करोड़ और अप्रत्यक्ष कर से 7.18 लाख करोड़ रुपये का कर संग्रह हुआ। इस दृष्टि से दोनों करों में बहुत अधिक अंतर भी नहीं है।
इस कर का उपयोग अवसंरचना, मूलभूत सुविधाएं, अनुदान, सरकारी प्रतिष्ठानों-उद्योगों, आदि में किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण, शिक्षा की बात करें तो सभी विश्वविद्यालय, अधिकांश महाविद्यालय, इंटर कॉलेज और हाई स्कूल नगरीय क्षेत्रों में ही अवस्थित हैं। सरकारी विद्यालयों की शिक्षा की गुणवत्ता भी खराब है। निजी विद्यालयों को भी कुछ मात्रा में अनुदान मिलता है। अधिकांश निजी शिक्षा संस्थान नगरीय क्षेत्रों में ही अवस्थित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे इन नगरीय क्षेत्रों में किराए पर रहकर पढ़ाई करते हैं जिससे उन्हें कई हानियां होती हैं। किराए पर खर्च करना पड़ता है, अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है जिसके कारण उनका समुचित शारीरिक-मानसिक-सामाजिक विकास नहीं हो पाता है। परिवार को भी अपने बच्चों से दूर रहना पड़ता है जिसका तनाव परिवार भी सहता है। कुछ बच्चे जो नगरोंके पड़ोसी गांवो के होते हैं, प्रतिदिन शहरों को चलकर पढ़ने जाते हैं, उनकी काफी ऊर्जा आने-जाने में ही खर्च हो जाती है और समय भी खर्च होता है जिसे वह पढ़ने में लगा सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन के साधन भी समुचित मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं जिसके कारण कुछ छात्रों को आने-जाने के समय के अलावा प्रतीक्षा भी करनी पड़ती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन भी समुचित मात्रा में उपलब्ध नहीं है| रेलमार्ग तो शहरों तक ही सीमित हैं|क्षेत्रफल और जनसँख्या दोनों की दृष्टि से सडकों का घनत्व नगरीय क्षेत्रों की तुलना मंी ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत कम है| उदहारण के लिए सीतापुर जनपद में 2017-18 में क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि से ग्रामीण क्षेत्रमें सड़क घनत्व क्रमशः 111.53 और15.97 जबकि नगरीय क्षेत्र में 951.61 और 144.50 था| लम्बाई के साथ ही उनकी गुणवत्ता भी खराब है जिसके कारण परिवहन के साधन जल्दी खराब हो जाते हैं। साथ ही आवागमन में समय अधिक लगता है| इन दोनों कारणों से हुए हानि को आर्थिक हानि में बदलकर देख सकते हैं|
प्रकाश और अन्यविभिन्न कार्यों के लिएविद्युत आवश्यक है|है। प्रकाश की आवश्यकता पढाई और अन्य विभिन्न कार्यों के लिए होती है|विद्युत की उपलब्धतानगरीय क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत कम है। यह उपलब्धता घरों तक पहुँच और घंटों में उपलब्धता, दोनों दृष्टियों से कम है|वर्तमान में हर गांव तक विद्युत पहुंच चुकी है किन्तु हर बस्ती या हर घर तक अभी भी नहीं पहुंची है। एक गांव की परिभाषा में कई बस्तियां शामिल होती हैं जिन्हें पुरवा, नगला, पल्ली, आदि नामों से जाना जाता है। कुछ गांवो में तो बस्ती के बाहर तक ही विद्युत पहुंची है और उस गांव को विद्युतीकृत मान लिया गया है।
शैक्षिक सुविधाओं की तरह अधिकांश स्वास्थ्य सुविधाएं भी नगरीय क्षेत्रों में ही अवस्थित हैं। यहां तक की ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना के अंतर्गत स्थापित अधिकतर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी नगरीय केन्द्रों में ही स्थापित हैं। नगरीय क्षेत्रों के स्वास्थ्य केन्द्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों में कर्मचारियों की उपलब्धता कम है, साथ ही तुलनात्मक रूप से भी कम है क्योंकि कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं नहीं देना चाहते हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का अत्यंत अभाव है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण अनुपस्थिति की दर भी ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों पर अधिक रहती है। लगभग सभी निजी स्वास्थ्य सुविधाएं (अस्पताल और क्लीनिक) नगरीय क्षेत्रों में ही अवस्थित हैं। कर्मचारियों की अनुपस्थिति और सुविधाओं के अभाव के कारण बीमारी की दशा में भी ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए लम्बी दूरी तय करके नगरीय क्षेत्रों को आना पड़ता है। सुविधाओं की कमी के कारण ही बहुत से ग्रामीण झोला छाप चिकित्सकों से इलाज करवाते हैं जिसके कारण कई बार लाभ के बजाय हानि और कभी-कभी तो जीवन से भी हाथ धोना पड़ता है। यदि हानि न भी हो तो भी दीर्घकाल में इस तरह के इलाज से नुकसान ही होता है।
सार्वजनिक और निजी उद्योगों की स्थापना भी नगरीय क्षेत्रों में ही हुई है जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं को रोजगार की तलाश में नगरीय क्षेत्रों को आना पड़ता है जिसके कारण उन्हें अपने घर-परिवार से दूर रहना पड़ता है। घर से दूर रहने के कारण उस श्रमिक और उसके परिवार पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। उद्योग नगरीय क्षेत्रों में अवस्थित हैं, इसी कारण से नगरीय क्षेत्रों में प्रदूषण की अधिकता होती है जिसका प्रभाव पड़ोसी ग्रामीण क्षेत्रों पर भी पड़ता है। जैसे कि नदियों के प्रदूषण से फसलों की सिंचाई करने के कारण लोगों में बीमारियां और फसलों का भी विषैला होना। नगरीय क्रियाओं के कारण ही जलवायु परिवर्तन और तापमान में वृद्धि हो रही है जिसका प्रभाव कृषिपर भी पड़ रहा हैक्योंकि इन दोनों कारणों से मौसम की अतिशयताओं में वृद्धि हो रही है|मौसम की इन अतिशयताओं का सबसे अधिक प्रभाव कृषि व्यवसाय पर ही पड़ता है|
इस प्रकार यदि नगरीय लोग अधिक कर का भुगतान करते हैं तो उन्हें सुविधाएं भी अधिक उपलब्ध हैं। कृषकों को यदि अनुदान मिलता है तो वह भी अप्रत्यक्ष कर का भुगतान करते हैं। जो करदाता प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर दोनों का भुगतान करते हैं, उन्हें सुविधाएं भी तुलनात्मक रूप से अधिक मिली हुई हैं। यदि नगरीय करदाता यह कहें कि वह अप्रत्यक्ष कर का भुगतान अधिक करते हैं क्योंकि उनकी आय तुलनात्मक रूप से अधिक है और वह खरीददारी अधिक करते हैं तो यह बात भी ग्रामीणों के ही पक्ष में है क्योंकि वह देश के संसाधनों का कम उपयोग करते हैं| इन संसाधनों में से अनेक ऐसे हैं जो अनवीकरणीय हैं जिनकासंरक्षण आवश्यक है| हालाँकि ग्रामीण क्षेत्रों की आय भी बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि ग्रामीण आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी कर सकें और उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके| इसके लिए सबसे आवश्यक है कि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा सर्वसुलभ हो और गुणवत्तापूर्ण भी हो| इससे वह कुशल बन सकेंगेंजिससे उन्हें द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार मिल सकेगा जिससे कृषि पर दबाव भी घटेगा, जनसँख्या वृद्धि में भी कमी आयेगी जिससे पुनःकृषि पर जनसँख्या दबाव में कमी आयेगी और देश पर भी जनसँख्या का दबाव कम होगा|

राम सिंह,
प्रोफ़ेसर-भूगोल,
जे. एल.एन. डिग्रीकॉलेज, एटा, उ. प्र., मोबा.- 9450874945