स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा के राष्ट्रीय महासचिव पद से दिया इस्तीफा, खुद बताया फैसले का कारण

समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा से राष्ट्रीय महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया है। इसकी जानकारी उन्होंने खुद सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स के जरिए दी। उन्होंने पोस्ट के जरिए सपा मुखिया अखिलेश यादव और पार्टी के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल को भी टैग किया। साथ ही स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस्तीफा देने का कारण भी बताया। सपा नेता ने कहा- “जबसे मैं समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हुआ, लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की। सपा में शामिल होने के दिन ही मैंने नारा दिया था “पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है”। हमारे महापुरूषों ने भी इसी तरह की लाइन खींची थी। भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” की बात की तो डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा कि “सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावै सौ में साठ”, शहीद जगदेव बाबू कुशवाहा व रामस्वरूप वर्मा ने कहा था “सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग हमारा है, इसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन के महानायक काशीराम का भी वही था नारा “85 बनाम 15 का”।

स्वामी प्रसाद मौर्य ने आगे कहा- “किंतु पार्टी द्वारा लगातार इस नारे को निष्प्रभावी करने एवं वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सैकड़ो प्रत्याशियों का पर्चा व सिंबल दाखिल होने के बाद अचानक प्रत्याशियों के बदलने के बावजूद भी पार्टी का जनाधार बढ़ाने में सफल रहे, उसी का परिणाम था कि सपा के पास जहां मात्र 45 विधायक थे वहीं पर विधानसभा चुनाव 2022 के बाद यह संख्या 110 विधायकों की हो गई थी। बिना किसी मांग के आपने मुझे विधान परिषद में भेजा और ठीक इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव बनाया, इस सम्मान के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।”

स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर तंज कसते हुए कहा- “हैरानी तो तब हुई जब पार्टी के वरिष्ठतम नेता चुप रहने के बजाय मेरे निजी बयान कह करके कार्यकर्ताओं के हौसले को तोड़ने की कोशिश की, मैं नहीं समझ पाया एक राष्ट्रीय महासचिव हूँ, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव व नेता ऐसे भी हैं जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है, एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है। दूसरी हैरानी यह है कि मेरे इस प्रयास से आदिवासियों, दलितों, पिछड़ो का रुझान समाजवादी पार्टी के तरफ बढ़ा है। बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास व वक्तव्य पार्टी का न होकर निजी कैसे? यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो में समझता हूँ ऐसे भेदभाव पूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से में त्यागपत्र दे रहा हूँ, कृपया इसे स्वीकार करें।