लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का ऐलान भले न हुआ हो। मगर सपा ने सबसे पहले 16 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी। इसमें से 11 OBC उम्मीदवार हैं। मंगलवार को जारी इस लिस्ट में अखिलेश यादव ने अपने परिवार के तीन सदस्यों को सुरक्षित लोकसभा सीटों पर उतारा, जहां वह कभी न कभी जीते थे।
इस सूची में खास बात यह है कि अखिलेश ने P.D.A. (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) पर पूरा फोकस किया। सपा ने सबसे पहले सूची जारी करके INDIA गठबंधन का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस पर भी दबाव बनाया है। इसके अलावा, कांग्रेस की कुछ दावेदारी वाली सीटों पर पेंच भी फंसा दिया है।
3 पॉइंट में बताते हैं पहली सूची के मायने? राजनीतिक जानकार क्या कहते हैं?
1- नीतीश कुमार का INDIA छोड़ना, कुर्मी वोट बैंक पर फोकस
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस मानते हैं,”अखिलेश यादव ने इंडिया गठबंधन से नीतीश कुमार के अलग होने के बाद सबसे पहला कदम पिछड़ों को एक करने के लिए उठाया है। अखिलेश “यादव” वोट बैंक के अलावा कुर्मी या अन्य OBC वोट बैंक को साथ लाने पर भी जोर दे चुके हैं। इसीलिए अखिलेश ने 16 उम्मीदवारों की सूची में 4 कुर्मी नेताओं को टिकट दिया है।
नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के हिस्सा होते, तो कुर्मी वोट बैंक के नेताओं में सबसे प्रमुख चेहरा माने जाते। लेकिन उनके अलग होने के बाद इंडिया गठबंधन में कोई भी बड़ा कुर्मी चेहरा नहीं रहा। ऐसे में अखिलेश ने पहली सूची जारी करके कुर्मी नेताओं के साथ बैकवर्ड पर भी फोकस किया है।
अखिलेश यादव ने लखीमपुर खीरी से उत्कर्ष वर्मा, बस्ती जिले में रामप्रसाद चौधरी और बांदा से शिव शंकर पटेल को उम्मीदवार बनाकर कुर्मी वोट बैंक वाले जिले में अन्य दलों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है।
2- कांग्रेस पर राजनीतिक दबाव, कांग्रेस का 2009 फॉर्मूला रिजेक्ट
सपा की 16 उम्मीदवारों की सूची में सबसे अहम पेंच लखीमपुर खीरी के उम्मीदवार को लेकर माना जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस मानते हैं, पहली सूची में कोई भी ऐसा उम्मीदवार या लोकसभा सीट नहीं है, जहां कांग्रेस से सीधे टकराव हो। लेकिन लखीमपुर खीरी में उत्कर्ष वर्मा को उम्मीदवार बना कर कांग्रेस के लिए एक चिंता की लकीर जरूर खींच दी है।
बीते दिनों यहां से पांच बार के सांसद रवि प्रकाश वर्मा ने सपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। ऐसा माना जा रहा था कि लखीमपुर खीरी में रवि प्रकाश वर्मा खुद या अपनी बेटी को चुनाव मैदान में उतारेंगे। ऐसे में सपा ने उत्कर्ष वर्मा को उम्मीदवार बना कर या राजनीतिक मनो-वैज्ञानिक दबाव बना दिया है कि लखीमपुर खीरी की सीट इंडिया गठबंधन के हिस्से में सपा के खाते में रहेगी।
दरअसल, सपा ने 3 दिन पहले यूपी की 80 लोकसभा सीटों में 11 लोकसभा सीट कांग्रेस को देने का ऐलान किया था। मगर, अखिलेश ने सीट बंटवारे का जवाब न मिलने पर एक और सवाल कांग्रेस के सामने खड़ा कर दिया है। यही नहीं, सपा ने कांग्रेस के 2009 के फॉर्मूले को भी रिजेक्ट कर दिया है।
समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के 2009 के फॉर्मूले को रिजेक्ट करते हुए केवल अमेठी और रायबरेली समेत 11 लोकसभा सीटें देने का पूरा मन बना लिया है।
समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के 2009 के फॉर्मूले को रिजेक्ट करते हुए केवल अमेठी और रायबरेली समेत 11 लोकसभा सीटें देने का पूरा मन बना लिया है।
3- जातीय गणित पर फोकस, बीजेपी के सामने चुनौती खड़ी करने का प्लान
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस मानते हैं कि सपा ने यादव के अलावा अन्य OBC वोटबैंक को साथ लाने के लिए जातीय गणित पर भी पूरा फोकस किया है। परिवार के तीन यादव सदस्यों के अलावा चार कुर्मी नेताओं को भी टिकट दिया है। इसके अलावा दो शाक्य, एक खत्री और मुस्लिम नेता को उम्मीदवार बनाया है। राजनीतिक जानकार यह भी मानते हैं कि अखिलेश यादव ने बीजेपी के सामने यादव के अलावा अन्य OBC वर्ग के वोटबैंक को साधने और एक करने के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
हालांकि, बीजेपी ने भी 2014 के बाद से यादव वोटबैंक के अलावा अन्य सभी ओबीसी वोट बैंक पर फोकस किया है। ऐसे में सपा उम्मीदवारों की सूची में यादव के अलावा अन्य ओबीसी नेताओं को चुनाव मैदान में उतरना बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है।
वहीं, यूपी की जातीय आंकड़ों पर अगर गौर करें, तो सबसे बड़ी आबादी OBC वर्ग की मानी जाती है। शुरू से ही अखिलेश यादव के परिवार पर यादव वाद का ठप्पा लगता रहा है। ऐसे में लोकसभा चुनाव की पहली सूची में यादव उम्मीदवारों की संख्या कम और अन्य OBC वोट बैंक के उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा देकर अखिलेश ने एक साथ कई समीकरण साधे हैं।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अखिलेश ने सबसे पहले उम्मीदवारों का ऐलान करके इंडिया गठबंधन के जवाब न देने के आगे एक और सवाल खड़ा कर दिया। दूसरी तरफ, बीजेपी के लिए बसपा के सामने भी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। खास बात यह है कि सपा अपना घर बचाने के लिए परिवार को तो उतार चुकी है।
इसके साथ ही यादव के अलावा अन्य जाति के पिछड़ों को सबसे ज्यादा तवज्जो दी है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी के मिशन 80 के दावे के आगे अखिलेश यादव के उम्मीदवारों का गणित कितना सफल होगा, ये तो आने वाला चुनाव परिणाम बताएगा।