मैनपुरी के इतिहास में संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी के किस्से घर घर सुने जाते हैं। संयोगिता के प्रेम संबंध दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के साथ हो गए थे। जानिए पूरा इतिहास—–
पड़ोसी जनपद कन्नौज में उस समय राजा जयचंद थे। उनकी पुत्री संयोगिता के प्रेम संबंध दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के साथ हो गए। लेकिन इन प्रेम संबंधों को कन्नौज के राजा जयचंद स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने पृथ्वीराज से संयोगिता के विवाह का प्रस्ताव ठुकरा दिया। कन्नौज के राजा ने प्रस्ताव ठुकराया तो पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता से विवाह करने का फैसला कर लिया। मैनपुरी के इतिहास में संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी के किस्से घर-घर सुने जाते हैं।
दिल्ली की सत्ता पर काबिज पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता को अपनी पत्नी बनाने का फैसला कर लिया। इधर, जयचंद ने संयोगिता से विवाह का प्रस्ताव ही नहीं ठुकराया बल्कि संयोगिता के विवाह के लिए कन्नौज में एक स्वयंवर के आयोजन की घोषणा कर दी। देश के विभिन्न हिस्सों से स्वयंवर में भाग लेने के लिए राजा और युवराजों को आमंत्रण दिया गया। मगर जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान को इस स्वयंवर में आने का आमंत्रण नहीं दिया। संयोगिता को पत्नी बनाने के लिए पृथ्वीराज चौहान ने अपने भरोसेमंद सेनापति मोटामल को साथ लिया और दिल्ली से मैनपुरी आ गए। उन्होंने मैनपुरी के करहल में सेना के साथ पड़ाव डाल दिया।
करहल के वनखंडेश्वर मंदिर की शिव मूर्ति स्थापित
करहल से पृथ्वीराज कन्नौज पहुंचे ओ वेश बदलकर संयोगिता का अपहरण करके वापस करहल आ गए। उनके पीछे कन्नौज के राजा की सेना भी आ गई और संयोगिता को छुड़ाने के लिए युद्ध करने लगी। पृथ्वीराज और संयोगिता करहल के वनखंडेश्वर मंदिर में पहुंच गए। यहां उन्होंने संयोगिता की इच्छा पर भगवान शिव की मूर्ति स्थापित कराई और पूजा की।
कन्नौज की सेना से संग्राम करते हुए शहीद मोटामल
उधर दूसरी ओर पृथ्वीराज के सेनापति मोटामल कन्नौज की सेना से संग्राम कर रहे थे। संयोगिता और पृथ्वीराज को उन्होंने दिल्ली के लिए रवाना कर दिया और मोटामल घमासान युद्ध के दौरान करहल में ही शहीद हो गए। यहां जो मंदिर बना हुआ है उसे मोटामल मंदिर का दर्जा दिया गया। साल में यहां मोटामल महाराज का मेला भी लगता है।
REPORT: YOGESH KUMAR
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आदर्श कुमार
संस्थापक और एडिटर-इन-चीफ