पीलीभीत : इलाज के अभाव से जिंदगी की जंग हार गया किशोर

पीलीभीत पूरनपुर अमरैयाकलां। बगैर मां बाप के इलाज के अभाव में गम्भीर बीमारी में जिंदगी मौत के बीच झूल रहे एक किशोर की मौत हो गई। कुछ लोग बच्चे के अंतिम संस्कार के लिए पिता की पीलीभीत जमानत कराने गए। मगर अवकाश के चलते जमानत नहीं हो सकी। किस्मत के खेल ने नन्हीं उम्र के बच्चे ने अपने बड़े भाई को जैसे ही मुखाग्नि दी। हर एक व्यक्ति के आंखों में आंसू रोके नहीं रुके।
कोतवाली पूरनपुर के गांव अमरैयाकलां निवासी रमेशचन्द्र कुशवाहा के दो बेटे जिसमें बड़ा सत्रह वर्षीय आलोक कुमार और छोटा चौदह वर्षीय प्रिंस कुशवाहा है। जिसमें बच्चों की माँ उनको छोटे पर ही पिता के पास छोड़कर कहीं चली गई। दोनों बच्चे भी अपने पापा के पास कुछ समय ही साथ से रह सके और पढ़ाई कर रहे थे। जिसमें बच्चों के पिता पिछले करीब तीन वर्षों से जेल में बंद है। परिवार भूमिहीन होने के चलते मजदूरी कर गुजारा कर रहे थे। पिता जेल में बंद होने से अपना पेट पालने के लिए बच्चे इधर-उधर काम कर गुजारा कर रहे थे। परिवार भूमिहीन होने के चलते और पिता जेल में बंद होने से बच्चे उचित शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर सके।
बड़ा लड़का आलोक कुमार बगैर मां बाप के पिछले एक माह से इलाज के अभाव में गम्भीर बीमारी से ग्रस्त जिंदगी मौत के बीच झूल रहे उसकी शुक्रवार को तड़के मौत हो गई। जिससे छोटे बेटे प्रिंस कुशवाहा पर मानो पहाड़ टूट पड़ा हो। कुछ लोग मृतक आलोक कुमार के अंतिम संस्कार के लिए उसके पिता की जमानत कराने पीलीभीत गए थे। मगर अवकाश के चलते जमानत नहीं हुई और वह निराश होकर वापस गांव चले आए। इधर गांव बालों की मदद से उसका अंतिम संस्कार गोमती उद्गम घाट किया। किस्मत के खेल ने नन्हीं उम्र के बच्चे प्रिंस कुशवाहा ने रोते हुए अपने बड़े भाई को जैसे ही मुखाग्नि दी। हर एक व्यक्ति के आंखों में आंसू रोके नहीं रुके।
इधर छोटे बेटे प्रिंस कुशवाहा ने रोते हुए बताया कि हमारे रुपए होते तो हम अपने बड़े भाई की इलाज कराकर बचा लेते। मगर हम गरीब को बेसहारा छोड़ दिया। जिससे हमारा भी जिंदगी की जंग हार गया। उन्होंने बताया कि दीपावली के दिन पूर्व जिला पंचायत सदस्य अर्चना वर्मा के पति सच्चिदानन्द वर्मा घर आए थे और हमको दो हजार रुपए आर्थिक सहायता दी। तो दिल को थोड़ा सुकून मिला कि ईश्वर ने हमारी मदद के लिए किसी को भेज दिया। इसके अलावा ग्राम पंचायत स्तर से एवं प्रशासनिक स्तर एवं किसी जनप्रतिनिधि से भाई के इलाज के लिए कोई सहायता प्रदान कर देता। तो शायद हमारा भाई बच जाता। मगर सरकारी अस्पताल दवा के सहारे हमारा भी हमें खेलते हुए हमें छोड़ कर चला गया। जिसकी किस्मत खराब हो वहां सरकारी मशीनरी भी काम नहीं आती।