भारतीय संस्कृति में गंगा-जमुनी तहजीब के अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण 2000 वर्ष पुराने पीलीभीत के श्री गौरी शंकर मंदिर में भी नजर आता है। इस मंदिर में ढाई सौ वर्ष पूर्व रुहेला सरदार हाफिज रहमत खां ने एक भव्य द्वार का निर्माण कराया था। आज भी यह द्वार मंदिर की दिव्यता में और इजाफा कर रहा है। सावन के सोमवारों पर यहां जबरदस्त भीड़ रहती है। पीलीभीत के श्री गौरी शंकर मंदिर का इतिहास लगभग 2000 वर्ष पुराना है। यह सिद्ध पीठ दुर्लभ शिवलिंग है। शिवलिंग में पार्वती का मुख भी विराजमान है। मंदिर का निर्माण स्वर्गीय द्वारकादास बंजारे की भूमि पर हुआ था। पीलीभीत लम्बे समय तक बंजारा समुदाय की शरण स्थली रहा था।
1742 में मुगलों के गवर्नर को हटा कर सूबेदार अली मोहम्मद खां ने बरेली पर आधिपत्य स्थापित किया। इसके साथ पीलीभीत में रुहेला शासन ने दस्तक दे दी। 1748 में अली मोहम्मद खां के बाद रुहेला सरदार हाफिज रहमत खां को पीलीभीत की गद्दी मिली। रुहेला सरदार ने दिल्ली की तर्ज पर जामा मस्जिद बनवाई। इसी दौरान जनभावनाओं को समझ कर उन्होंने श्री गौरी शंकर मंदिर के मुख्य द्वार को बनाने की पहल की। 1770 में मुगलिया और राजपूताना शैली का यह भव्य द्वार बनाया गया। इससे मंदिर का रूप और भी दिव्य हो गया। आज भी यह द्वार मौजूद है।
पहले होती है दूधिया मंदिर में आरती
दूर-दूर से आने वाले कांवड़िये पहले दूधिया मंदिर में आरती करते हैं। दूधिया मंदिर से श्रीगौरीशंकर मंदिर तक दूरी करीब डेढ़ किलोमीटर है। यहां कांवड़िये जलाभिषेक कर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। सावन के सोमवार को यहां विशेष पूजन होता है जिसमें दूर-दूर से लोग आकर शामिल होते हैं।
महात्मा गांधी ने की थी मंदिर में सभा
श्री गौरी शंकर मंदिर 1976 से पुरातत्व विभाग की देखरेख में है। यह दूसरी बात है कि यहां पुरातत्व विभाग ने कोई भी विशेष कार्य नहीं कराया। 1929 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने यहां बड़ी जनसभा की थी। मंदिर के बाहर लिखे बोर्ड पर यह इतिहास दर्ज है। मंदिर में अभी तक स्वर्गीय खूबचंद महंत, स्वर्गीय भोलानाथ महंत, स्वर्गीय हरप्रसाद महंत, स्वर्गीय गिरधारीलाल महंत अपनी सेवाएं दे चुके हैं। वर्तमान में स्वर्गीय गिरधारी लाल महंत के पुत्र पंडित शिव शंकर महंत पूजा-सेवा कर रहे हैं।
कभी दाग नहीं लगा यहां की संस्कृति पर
अनूठी संस्कृति को संजोए पीलीभीत में अमन चैन और मिल जुल कर रहने की रवायतें कायम है। कभी भी शहर की फिजां में नफरत को जगह नहीं मिली। पूरे रुहेलखंड में सबसे शांतचित्त और अमनपसंद जिले के तौर पर इसकी पहचान बनी हुई है।