यूपी के कानपुर शहर के बीचों बीच समाज कल्याण विभाग का यह भिक्षु गृह 32 साल से है। शहर में भीख मांगने वाले भिखारियों को यहां शेल्टर देने के लिए इसे शुरू किया गया था लेकिन इतने सालों में यहां एक भी भिखारी नहीं आया। भिक्षु गृह की व्यवस्स्थाओं के नाम पर 22 सरकारी मुलाजिमों की ड्यूटी जरूर लगा दी गई। 19 कर्मचारी तो यहां ड्यूटी करके रिटायर भी हो गए। अब 3 कर्मचारी ड्यूटी कर रहे हैं। बिल्डिंग का प्लास्टर गिर रहा है लेकिन 14 हजार रुपए महीना किराया पूरा भुगतान हो रहा है। भास्कर रिपोर्टर ने डीएम से सवाल किया तो उन्हें भी इसकी खबर नहीं थी। नगर निगम कमिश्नर को भी इसकी जानकारी नहीं है।
प्रशासन ने भिक्षुओं के लिए सरकार की ओर से एक भिक्षुक गृह 1972 में बनवाया था। 1989 में यह बिल्डिंग किराए से ली, तब से लेकर आज तक इनमें एक भी भिखारी नहीं रहा। सरकार ने इस भिक्षुक गृह के जरिए भिक्षुकों के रहने-खाने, स्वास्थ्य और रोजगारपरक प्रशिक्षण देने, शिक्षण की व्यवस्था की थी, जिससे भिक्षुओं को मुख्य धारा से जोड़ा जाए और उन्हें रोजगार मुहैया कराया जाए। मगर इस भिक्षु गृह का सही क्रियान्वयन न होने से यह योजना सिर्फ कागजों में ही चलती रही। यहां वर्तमान में समाज कल्याण विभाग के 3 सरकारी कर्मचारी तैनात हैं। उनको तनख्वाह मिल रही है। कभी-कभी वे यहां झांककर देख भी लेते हैं। विभागीय जिम्मेदारों का कहना है कि पुलिस जिन भिक्षुकों को हिरासत में लेकर मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर करती है, उन्हें ही समाज कल्याण विभाग के भिक्षुक गृहों में रखा जाता है। लेकिन आज तक यहां किसी भी भिक्षुक को लाया ही नहीं गया है। यह बात जिला समाज कल्याण कानपुर अमर जीत सिंह ने बताई। उन्होंने आगे बताया कि सरकार की तरफ से कोई आदेश या योजना ही नहीं आई है जिसके अंतर्गत इसमे कुछ काम किया जाए। इसलिए जैसा पहले चल रहा था वही आज भी चल रहा है। इस समय यहाँ पर दो चपरासी और एक महिला क्लर्क कार्यरत है।