नवादा: मानववादी संगठन अर्जक संघ के पहल पर सेवानिवृत प्रधानाध्यापक कैलाश प्रसाद की पत्नी पार्वती देवी के निधनोपरांत रविवार को मिर्जापुर सूर्यमंदिर के निकट शोकसभा का आयोजन अर्जक संघ के वरिष्ठ नेता उपेन्द्र पथिक की अध्यक्षता में किया गया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री पथिक ने कहा कि समाज में व्याप्त ढेर सारी कुरीतियों में मृत्युभोज भी एक सामाजिक कुरीति है। इसके कारण बहुतेरे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है पर इसे खत्म करने का साहस कम लोगों में होता है। कैलास बाबू ने मृत्युभोज का बहिष्कार करके साहसिक कदम उठाया है। इनके घर के किसी सदस्य ने सिर नहीं मुंडवाया। समारोह को अन्य लोगों के अलावा सुनील कुमार, जगदीश प्रसाद, अविनाश प्रसाद, नागेन्द्र प्रसाद, बैजनाथ प्रसाद, नरेन्द्र कुमार, दशरथ साहू, अशोक कुमार, सत्येन्द्र कुमार, रामकिसुन प्रसाद, आलोक रविदास समेत दर्जनों अर्जकों ने आत्मा, स्वर्ग,नरक, अंधविश्वास एवम अन्य कुरीतियों को मिटाकर अर्जक पद्धति को अपनाने पर बल दिया।
जानकारी के अनुसार
रूढ़िवादी व्यवस्था के बदलाव को ले संकल्पित है कुंजैला ग्रामवासी। तीन दशक पूर्व पहले महिलाओं से अर्थी को कंधा दिलाने की शुरूआत करने के साथ ही महिलाओं को शमशान घाट नहीं जाने की परम्परा को भी तोड़ने का काम किया। अब मृत्यु भोज का बहिष्कार कर समाज के सामने न सिर्फ मिशाल पेश किया। बल्कि फुजूलखर्ची पर भी अंकुश लगाने का काम किया। कुंजैला गॉंव के सहोदर भाई स्व.नाथो महतो और स्व. राघो महतो का परिवार कई दशक पूर्व से ही रूढ़िवादी व्यवस्था को समाज से समूल नष्ट करने के लिए प्रयासरत है। जिसके कारण इस परिवार को समाज के कुछ लोगों का कोपभाजन भी बनना पड़ता है। बावजूद यह परिवार समाज में फैली ओछी परम्परा को समाप्त करने पर तुले हुए हैं। धीरे-धीरे इसमें आम लोगों का सहयोग भी मिलने लगा है। और दूसरे लोग भी अमल करने लगे हैं। स्व. नाथो महतो के पुत्र कैलाश प्रसाद की पत्नी पार्वती देवी का आठ जुलाई को नवादा के मिर्जापुर स्थित आवास पर निधन हो गया। मानववादी संगठन अर्जक संघ के विचारों को आत्मसात कर दाह-संस्कार किया गया। मुखाग्नि घर की सभी महिला-पुरूष मिलकर दिया। इसके अठारह दिन बाद 25 जुलाई को नवादा मिर्जापुर स्थित घर के प्रांगण में शोक सभा कर उनके चित्र पर शुभचिंतकों द्वारा फूल- चढ़ा कर श्रद्धा-सुमन अर्पित किया गया। परन्तु इस मौके पर मृत्यु भोज का आयोजन नहीं किया गया। जो इन दिनों चर्चा का विषय बन गया है। इसके पूर्व नब्बे के दशक में राघो महतो के निधन के उपरांत उनके पुत्र सिध्देश्वर प्रसाद ने रूढ़िवादी व्यवस्था को दरकिनार करते हुए महिलाओं से अर्थी को कंधा दिलाने व उन्हें श्मशान घाट तक जाने की परम्परा को आगे बढ़ाने का काम किया था। साथ ही मृत्यु से जुड़े इसके अन्य कर्मकांडों का विरोध किया था। इस घर की बहू व समाजसेवी सुमित्रा सिन्हा ने बताया कि समाज में पुरूषों के बराबर ही महिलाओं का भी अधिकार है। इसलिये पूजा हो या कर्मकांड सभी में महिलाओं की भागीदारी होनी चाहिये। अर्जक संघ के सदस्य, सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक व मृतक के पति कैलाश प्रसाद
ने कहा कि मृत्यु भोज सामाजिक कोढ़ है। इससे कारण कई गरीब परिवार आडम्बर के चक्कर में पड़कर अपनी जमीन जायदाद तक बेच देते हैं। इसलिये शोक के मौके पर श्राद्ध उचित नहीं है। तथा लोगों को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को खिलाना उचित नहीं है। इन्होंने आम लोगों से भी इस परम्परा को अपनाने के लिए निवेदन करते हुए
अपनी मृत्यु पर भी भोज नहीं करने का अपने पुत्रों से निवेदन भी किया। वहीं अर्जक संघ सांस्कृतिक प्रकोष्ट के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र पथिक ने कहा कि वास्तव में यह परिवार द्वारा रूढ़िवादी व्यवस्था के खिलाफ उठाया गया कदम सराहना के योग्य है। इसपर आम लोगों को अमल करना चाहिए। मृत्यु उपरांत किया जाने वाले भोज के कारण कइयों परिवार आर्थिक तंगी का शिकार हो जाते हैं। राजस्थान सरकार की तरह बिहार सरकार को भी मृत्यु भोज पर प्रतिबंध लगाना चाहिये। इस गॉंव में अमृत महतो, चन्देश्वर प्रसाद, सरयुग प्रसाद, डॉ के नागेंद्र, जगदीस प्रसाद के अलावा दर्जनों परिवार द्वारा अर्जक संघ की पहल पर मृत्यु उपरांत सर मुंडन के अलावा रूढ़िवादी व्यवस्था को दरकिनार किया गया। इस मौके पर अर्जक संघ के जिला संयोजक सुनील कुमार, जगरनाथ प्रसाद, जगदीश प्रसाद,नगेन्द्र प्रसाद, बैजू महतो, दशरथ साहू, डॉ सुधीर कुमार के अलावा इनके शिक्षक पुत्र किशोरी शरण वर्मा, विजय शंकर वर्मा, बहु भारती सिन्हा, आंगनबाड़ी सेविका छोटी बहु तारा कुमारी, शिक्षिका पुत्री नीलम सिन्हा, प्रतिभा सिन्हा, उमेश प्रसाद आदि उपस्थित थे।