कोरबा। इस जिले में लगभग 2 दशक पहले कटघोरा और पाली ब्लॉक में ACB इंडिया प्रा. लिमिटेड नामक कंपनी द्वारा पॉवर प्लांट और कोल वाशरी का निर्माण किया गया। इस आदिवासी बाहुल्य इलाके में प्लांट के लिए जमीन खरीदने की बारी आयी तो प्रबंधन ने दूसरे राज्यों से आये अपने कर्मचारियों के नाम पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवा लिए, और इन्हीं के नाम पर सैकड़ों एकड़ जमीन खरीद ली। एक शिकायत के बाद यह मामला खुला और धारा 170 ख के तहत जमीन वापसी की प्रक्रिया SDM के न्यायालय में शुरू की गई है। हालांकि सवाल यह उठ रहा है कि इतने सालों बाद जब इन जमीनों में पॉवर प्लांट, कोल वाशरी और आवासीय कॉलोनी बन गए हैं, तब क्या ये जमीनें मूल आदिवासियों को वापस की जा सकेंगी ?मूल निवासी बताकर बना दिए गए जाति प्रमाण पत्रकुछ माह पूर्व ही छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना नामक संगठन ने दीपका में संचालित मेसर्स एसीबी इंडिया प्रा. लिमिटेड के खिलाफ शिकायत की थी कि प्रबंधन द्वारा अपने दो दर्जन कर्मचारियों को फर्जी तरीके से आदिवासी बताते हुए उनके स्थाई जाति प्रमाण पत्र बनवा दिए और इन्हीं के नाम से आसपास के कई गांवों से मूल आदिवासियों की लगभग 500 एकड़ जमीन खरीद ली। इन्हीं जमीनों पर ग्राम बांधाखार, रतिजा, चाकाबुड़ा, दीपका और कसईपाली में पावर प्लांट और कोल वाशरी का कालांतर में निर्माण कर लिया गया। इससे प्रबंधन को दो फायदे हुए। पहला इलाके के किसी भी जमीन मालिक को मुआवजा नहीं देना पड़ा, दूसरा इनमे से किसी को नौकरी भी नहीं देनी पड़ी।SDM कार्यालय से फाइल गायब, गांव के निवासी भी नहींबता दें कि वर्तमान में संबंधित गांव पाली अनुविभाग में आते हैं। इस मामले में संस्था द्वारा की गई शिकायत पर राजभवन से कलेक्टर को पत्र लिखे जाने के बाद गंभीरता से जांच शुरू हुई, तब पता चला कि प्रमाण पत्र कटघोरा से जारी हुए हैं, और तब वहां गजेंद्र ठाकुर SDM थे। छानबीन हुई तब जाति प्रमाण पत्रों से संबंधित फाइल गायब मिली। वहीं जब खुद को आदिवासी बताकर जमीन खरीदने वाले ग्रामीणों का उनके बताये गए पतों का सत्यापन किया गया तब पता चला कि वे उस गांव के रहने वाले ही नही हैं। इस तरह यह तय हो गया कि इनके जाति प्रमाण पत्र ही फर्जी हैं।नोटिस के बाद फरार हुए जमीन मालिकइस मामले की जिला स्तरीय छानबीन समिति द्वारा जांच शुरू की गई और संबंधित जमीन मालिकों को नोटिस जारी किया गया, तब सभी अपने मूल पते से फरार हो गए। वहीं पाली SDM द्वारा भी इन्हें नोटिस जारी किया गया है, मगर वहां भी इन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई। कंपनी में मामूली सी नौकरी करने वाले इन तथाकथित आदिवासियों ने करोड़ों की जमीन कैसे खरीदी, इस पर तब के प्रशासनिक अधिकारियों ने कोई भी सवाल नहीं उठाया।