अश्वत्थ यानी पीपल का वृक्ष। यह मात्र वृक्ष नहीं, हमारी संस्कृति और सभ्यता का सजीव प्रतिमान है। इसका पत्ता-पत्ता हमारे इतिहास और जप-तप-संयम तथा वैराग्य की कथा कहता है। हाल में जब अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आए तो राजघाट पर श्रद्धा-पुष्प चढ़ाने के बाद उन्होंने वहां अश्वत्थ का वृक्ष भी लगाया। ओबामा भारत की हजारों साल पुरानी परंपरा के वाहक अश्वत्थ का वृक्ष लगाकर हमारी पारंपरिक महत्ता को अभिवादन कर गए हैं।
क्या कहते हैं शास्त्र?
अनेक ग्रंथों में पीपल की महिमा बताई गई है। पीपल का नाम और उसके देवस्वरूपी होने की कथाएं वैदिक साहित्य में हैं। उपनिषदों और पुराणों में पीपल को भगवान विष्णु का साक्षात रूप माना है। श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण पीपल को अपना अवतार घोषित करते हैं।
अनेक आचार्यों ने भगवान श्रीकृष्ण के इस उपदेश की व्याख्या की है, जिनका सारांश यही है कि सारी वनस्पतियों में पीपल की सर्वश्रेष्ठता निर्विवाद है। आचार्य आनंदगिरि के अनुसार सभी वनस्पतियों में पीपल सर्वाधिक महत्वशाली है। जगद्गुरु श्रीरामानुजाचार्य ने गीताभाष्य में पीपल को सबसे अधिक पूज्य माना है।
आचार्य वेदांतदेशिक ने तात्पर्यचंद्रिका में स्पष्ट लिखा है कि पीपल की महिमा स्वर्ग में स्थित पारिजात आदि वृक्षों से भी ज्यादा है। अत: भगवान कृष्ण ने स्वयं को पारिजात नहीं बल्कि अश्वत्थ ही कहा।
पीपल के पूजन से ग्रह होंगे अनुकूल
पद्मपुराण के अनुसार माता पार्वती के शाप से ग्रस्त होकर अग्नि देवता धरती पर अश्वत्थ के रूप में प्रकट हुए। धर्मशास्त्रों की मान्यतानुसार दरिद्रता से बचने के लिए शनिवार को पीपल का पूजन करना चाहिए। पूजन में मात्र जल सेचन व दीप प्रज्वलन का विधान पुराणों में है। जिन व्यक्तियों को बृहस्पति की पीड़ा हो, उन्हें गुरुवार को पीपल की समिधा से बृहस्पति के वैदिक मंत्र से 108 आहुतियों से हवन करना चाहिए।
ग्रंथों में तो यहां तक वर्णित है कि प्रात: उठकर पीपल के दर्शन मात्र से आयु, धन तथा धर्म की प्राप्ति होती है। पीपल का पूजन भगवान् विष्णु के पूजन के समान फलदायी है। ग्रहों की अनुकूलता के लिए पीपल के दर्शन शुभ हैं। पीपल को कभी नहीं काटना चाहिए क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि जो मूढ व्यक्ति पीपल के पेड़ को छिन्न-भिन्न करता है, उसके पाप को नष्ट करने के लिए कोई धर्म विधि या प्रायश्चित कर्म नहीं है।
औषधियों का राजा क्यों है पीपल
ऐतरेयब्राह्मण के अनुसार जब सभी वनस्पतियों ने विधाता से पूछा कि हम सब किसके अधीन रहेंगी? तब भगवान ने कहा कि तुम वनस्पतियों-औषधियों का राजा अश्वत्थ है। अत: वह पीपल ही तुम सभी वनस्पतियों में श्रेष्ठ है। भगवान कृष्ण ने न केवल स्वयं को वरन संसार को भी उल्टे मुंह वाला पीपल का वृक्ष बताया है।
गीता में जगत को अश्वत्थरूपी बताते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं-यह पूरा संसार ही ऐसा पीपल का पेड़ है, जिसकी जड़ें ऊपर और शाखाएं नीची हैं। वेदों के मंत्र इसके पत्ते हैं। इस अद्भुत पीपल के पेड़ का रहस्य जो मनुष्य जानता है, वही वेदों को जानने वाला है।
अश्वत्थ का इतना प्रभाव हमारी परंपरा पर है कि पीपल के वृक्ष को काटना पाप माना जाता है। गरुड़पुराण के अनुसार किसी मृतक के शवदाह में पीपल की लकड़ी को श्रेयस्कर माना गया है। वहीं ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति ग्रह की प्रसन्नता के लिए पीपल के वृक्ष लगाना और उन्हें सींचना विघ्नों के निवारण में प्रमुख माना गया है।
घर में मांगलिक कार्य में पीपल के पत्ते बंदनवार या कलश में लगाने के लिए उपयुक्त हैं। पीपल को 5 देव वृक्षों में एक माना गया है, अत: अश्वत्थ पंच-पल्लवों में भी एक है। आयुर्वेद में पिप्पलाद्य लौह, पिप्पलासव आदि अनेक औषधियों का निर्माण पीपल से होता है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार कई बीमारियों का शमन पीपल के जरिए किया जा सकता है। इसी तरह हवन व यज्ञादि में पीपल की समिधा को अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है।