कार्तिक पूर्णिमा स्नान के होते हैं विशेष महत्व

आंवला से नंद किशोर मौर्य की खास रिपोर्ट

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा ’’कार्तिकी पूणिमा’’ कही जाती है। इस बार स्नान दान की कार्तिक पूर्णिमा 23 नवम्बर, शुक्रवार उदया तिथि के अनुसार है। इस दिन महादेव जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था, इसलिए इसे ’’त्रिपुरी पूर्णिमा’’ भी कहते हैं। बाला जी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा ने बताया कि 23 नवम्बर शुक्रवार को कृतिका नक्षत्र में सूर्योदय होने के कारण छत्र योग बनने के साथ महाकार्तिकी योग भी बन रहा है जो कि स्नान दान के लिए अतिशुभ है। कृतिका नक्षत्र सायं 04ः41 बजे तक रहेगा। महाकार्तिकी योग में स्नान, दान की पूर्णिमा होने के कारण इसके विशेष फल में वृद्धि होगी।

इस दिन का विशेष महत्त्व

इस दिन संध्या के समय भगवान का मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान आदि का फल दस यंज्ञों के समान प्राप्त होता है । ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा, आदित्य के अनुसार यह महापुनीत पर्व हैै। इसलिए भी इसका विशेष महत्व है। इस दिन चँद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसुइया और क्षमा इन छः कृतिकाओं का पूजन अवश्य करना चाहिए। कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में व्रत करके बैल दान करने से शिव पद प्राप्त होता है। गाय, घी, आदि का दान करने से सम्पत्ति बढ़ती है। इस दिन भेड़ दान करने से ग्रहयोग के कष्टों का नाश होता है। इस दिन कन्या दान से ’’संतान व्रत’’ पूर्ण होता है।

दीपक जलाना शुभ

कार्तिकी पूर्णिमा से प्रारम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को व्रत एवं जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। इस दिन यमुना जी पर कार्तिक स्नान की समाप्ति करके राधा-कृष्ण का पूजन, दीप दान, शय्यादि का दान करना शुभ रहता है। कार्तिक की पूर्णिमा वर्ष भर की पूर्णमासियों में से एक है। भगवान कार्तिकेय जी के नाम से प्रचलित इस पूर्णिमा का व्रत एवं पूजा-अर्चना करने से कुमारियों को मन वांछित वर एवं घर मिलता है। जबकि विवाहिताओं के सभी मनोरथ पूरे होते हैं। धर्म पुराणों के अनुसार इस दिन सायं काल के समय देव मंदिरों, चैराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों और तुलसी के पौधों के पास दीपक जलाना शुभ रहता है।