जौनपुर: सच्चे राष्ट्रवादी औ समाजसुधारक पेरियार रामास्वामी नायकर का मनाया गया परिनिर्वाण दिवस

जौनपुर-जिले के सिरकोनी विकास क्षेत्र के कजगांव में सरदार सेना के कार्यकर्ताओं के द्वारा पेरियार रामा स्वामी नायकर का परिनिर्वाण दिवस मनाया गया परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर सरदार सेना के जिलाध्यक्ष अरविन्द कुमार पटेल ने पेरियार रामा स्वामी नायकर के द्वारा जीवन काल में किये गये तमाम कार्यों के बारे में बताते हुए श्री पटेल कहा कि पेरियार रामा स्वामी नायकर एक भारत में सच्चे तमिल राष्ट्रवादी और समाज सुधारक के रूप में जाने जाते थे
ई.वी.रामास्वामी एक तमिल राष्ट्रवादी,राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे।इनके प्रशंसक इन्हें आदर के साथ ‘पेरियार’शब्द से संबोधित करते थे।इन्होने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ या ‘द्रविड़ आन्दोलन’ प्रारम्भ किया था।उसके बाद उन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जो बाद में जाकर ‘द्रविड़ कड़गम’ हो गई।अनिवार्य शिक्षण का भी उन्होंने दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग के लिए आजीवन कार्य किया। उन्होंने एक पृथक राष्ट्र ‘द्रविड़ नाडु’ की मांग की।पेरियार ई.वी. रामास्वामी ने तर्कवाद,आत्म सम्मान और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर जोर दिया और जाति प्रथा का घोर विरोध किया। उन्होंने दक्षिण भारतीय गैर-तमिल लोगों के हक़ की लड़ाई लड़ी और उत्तर भारतियों के प्रभुत्व का भी विरोध किया।उनके कार्यों से ही तमिल समाज में बहुत परिवर्तन आया और जातिगत भेद-भाव भी बहुत हद तक कम हुआ।यूनेस्को ने अपने उद्धरण में उन्हें ‘नये युग का पैगम्बर,दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात,समाज सुधार आन्दोलन के पिता,अज्ञानता,अंधविश्वास और बेकार के रीति-रिवाज़ का दुश्मन’ कहा।प्रारंभिक जीवन इरोड वेंकट नायकर रामा स्वामी का जन्म 17 सितम्बर 1879 को मिलनाडु के इरोड में एक सम्पन्न और परम्परावादी हिन्दू परिवार में हुआ था।उनके पिता वेंकतप्पा नायडू एक धनि व्यापारी थे। उनकी माता का नाम चिन्ना थायाम्मल था।उनका एक बड़ा भाई और दो बहने थीं।सन् 1885 में उन्होंने स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा के लिए दाखिला लिया पर कुछ सालों की औपचारिक शिक्षा के बाद वे अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ गए।बचपन से ही वे रूढ़िवादिता, अंधविश्वासों और धार्मिक उपदशों में कही गयी बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे।उन्होंने हिन्दू महाकाव्यों और पुराणों में कही गई परस्पर विरोधी बातों को बेतुका कहा और माखौल भी उड़ाया।उन्होंने सामाजिक कुप्रथाएं जैसे बाल विवाह,देवदासी प्रथा,विधवा पुनर्विवाह का विरोध और स्त्रियों के शोषण का खुलकर विरोध किया।उन्होने जाति व्यवस्था का भी विरोध और बहिष्कार किया काशी यात्रा सन् 1904 में पेरियार ने काशी की यात्रा की जिसने उनके जीवन को परिवर्तित कर दिया।इसके बाद उन्होंने किसी भी धर्म को नहीं स्वीकारा और आजीवन नास्तिक रहे।बाद में कांग्रेस पार्टी में उन्होंने इरोड के नगर निगम के अध्यक्ष के तौर पर कार्य किया और सामाजिक उत्थान के कार्यों को बढ़ावा दिया। उन्होंने खादी के उपयोग को बढ़ाने की दिशा में भी कार्य किया।चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के पहल पर सन् 1919 में वे कांग्रेस के सदस्य बन गये।उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और गिरफ्तार भी हुए।सन् 1922 के तिरुपुर सत्र में वे मद्रास प्रेसीडेंसी कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बन गये और सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण की वकालत की।सन् 1925 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दिया।फिर वैकोम सत्याग्रह
केरल के वैकोम में अस्पृश्यता के कड़े नियम थे केरल के कांग्रेस नेताओं के निवेदन पर पेरियार ने वैकोम आन्दोलन का नेतृत्व किया। यह आन्दोलन मन्दिरों की ओर जाने वाली सड़कों पर दलितों के चलने की मनाही को हटाने के लिए किया गया था। इस आन्दोलन में उनकी पत्नी और मित्रों ने भी उनका साथ दिया आत्म सम्मान आन्दोलन पेरियार और उनके समर्थकों ने समाज से असमानता कम करने के लिए अधिकारियों और सरकार पर सदैव दबाव डाला। सन् 1925 के बाद पेरियार ने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ के प्रचार-प्रसार पर पूरा ध्यान केन्द्रित किया। आन्दोलन के प्रचार के एक तमिल साप्ताहिकी ‘कुडी अरासु’ (1925 में प्रारंभ) और अंग्रेजी जर्नल ‘रिवोल्ट’ (1928 में प्रारंभ) का प्रकाशन शुरू किया गया।इस आन्दोलन का लक्ष्य महज ‘सामाजिक सुधार’ नहीं बल्कि ‘सामाजिक आन्दोलन’ भी था।
हिंदी भाषा का विरोध सन् 1937 में जब सी.राजगोपालाचारी मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने स्कूलों में हिन्दी भाषा की पढ़ाई को अनिवार्य कर दिया, जिससे हिन्दी विरोधी आन्दोलन उग्र हो गया। तमिल राष्ट्रवादी नेताओं, जस्टिस पार्टी और पेरियार ने हिन्दी-विरोधी आंदोलनों का आयोजन किया जिसके फलस्वरूप सन् 1938 में कई लोग गिरफ्तार किये गये। उसी साल पेरियार ने हिन्दी के विरोध में ‘तमिल नाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया। उनका मानना था कि हिन्दी लागू होने के बाद तमिल संस्कृति नष्ट हो जाएगी और तमिल समुदाय उत्तर भारतीयों के अधीन हो जायेगा।
अपनी राजनैतिक विचार धाराओं को छोड़ सभी दक्षिण भारतीय दलों के नेताओं ने मिलकर हिन्दी का विरोध किया।जस्टिस पार्टी और द्रविड़ कड़गम सन् 1916 में एक राजनैतिक संस्था ‘साउथ इंडियन लिबरेशन एसोसिएशन’ की स्थापना हुई थी।इसका मुख्य उद्देश्य था कि सामाजिक उत्थान।यह संस्था बाद में ‘जस्टिस पार्टी’ बन गयी। जनसमूह का समर्थन हासिल करने के लिए जातिओं में समानता की विचार धारा को प्रसारित-प्रचारित किया।
सन्1937 के हिन्दी-विरोध आन्दोलन में पेरियार ने ‘जस्टिस पार्टी’ की मदद ली थी। जब जस्टिस पार्टी कमजोर पड़ गयी तब पेरियार ने इसका नेतृत्व संभाला और हिन्दी विरोधी आन्दोलन के जरिये इसे सशक्त किया।तथा पेरियार की मृत्यु 24 दिसंबर 1973 में हो गई कार्यक्रम के दौरान हरिशंकर पटेल,विकास पटेल,जगबहादूर,जयप्रकाश पटेल,शाहआलम अन्सारी,बृजेश पटेल,श्याम सुन्दर,प्रेम चन्द्र,विवेक कुमार,सुबाष पटेल,सत्यम् पटेल,सुरेन्द्र विश्वकर्मा,पुष्पा देवी,केवला देवी,सीता,कलावती देवी,तनिषा आदि दर्जनों कार्यकर्ता मौजूद रहे!

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आदर्श कुमार

संस्थापक और एडिटर-इन-चीफ