अपनी ताकत के विस्तार करने में जुटा चीन अपने पड़ोसी देशों की आंतरिक अशांति का भी फायदा उठा रहा है। फरवरी 2021 में जब म्यांमार की सेना ने चुनी हुई सरकार को हटाकर सत्ता पर कब्जा कर लिया, तो चीन ने इसे ‘बड़ा कैबिनेट फेरबदल’ कहा था।
इस तख्तापलट के बाद म्यांमार में गृहयुद्ध में हजारों लोग मारे गए और 20 लाख लोग विस्थापित हुए। इसके बावजूद चीन ने म्यांमार की सेना (जुंटा) को 2 हजार करोड़ रु. के हथियार बेचे हैं।
वहीं, विद्रोही गठबंधन थ्री ब्रदरहुड ने उत्तरी म्यांमार में चीन की सीमा से लगे जुंटा के 200 ठिकानों और 4 सीमा क्रॉसिंग पर कब्जा कर लिया। जानकारों का कहना है कि चीन विद्रोहियों की भी मदद कर रहा है। इससे पहले, चीन के आग्रह के बावजूद म्यांमार ने उत्तरी हिस्से में बढ़ रहे अपराधों को रोकने के लिए कदम नहीं उठाए थे।
भारत की चिंता यह है कि चीन म्यांमार के विद्रोहियों के जरिए पूर्वोत्तर भारत में अशांति फैला सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बीजिंग गुप्त रूप से विद्रोही समूहों और पूर्वोत्तर में सक्रिय विद्रोहियों का समर्थन कर रहा है। कई विद्रोही नेताओं की चीन ने मेजबानी की और उन्हें प्रशिक्षण भी दिया गया है।
आंतरिक अशांति के बावजूद चीन ने म्यांमार में सड़कों, रेलवे, पाइप लाइनों और बंदरगाहों का एक नेटवर्क बनाने की योजना का तेजी से विस्तार किया है। जिसके जरिए चीन की हिंद महासागर तक सीधी पहुंच मिल रही है।
चीन बंगाल की खाड़ी में स्थित मलक्का जलडमरूमध्य के चोक-पॉइंट के विकल्प के रूप में देखता है, जिसके माध्यम से चीन से अधिकांश समुद्री व्यापार होता है।
चीन ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना में 2.9 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश करने का वादा किया है। वहीं, भारत अपने उत्तर-पूर्व और म्यांमार के बीच सड़क और समुद्री संपर्क में 4 हजार करोड़ रुपए के निवेश करने की योजना बना रहा है।
1948 में जब से म्यांमार को आजादी मिली है, उसकी सरकार 2,000 किमी लंबी उत्तरी जंगली सीमा क्षेत्र को सही तरह नियंत्रित करने में विफल रही है। इस कारण से म्यांमार सीमा से लगे चीनी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का निवेश खतरे में था। विद्रोहियों के कब्जे के बाद चीन का काम आसान हो गया।