मैनपुरी में शुभा भटनागर ने बहू मंजरी के साथ मिलकर अपने घर में उगाई केसर की फसल

मैनपुरी में केसर की खेती केवल ठंडे इलाके और एक खास प्रकार की मिट्टी में ही संभव है शहर निवासी सास बहू ने इस मिथक को तोड़ने का कार्य किया है। शहर निवासी शुभा भटनागर ने अपनी बहू मंजरी भटनागर के साथ मिलकर मैनपुरी में केसर की पैदावार करके दिखाई है। शुभा और मंजरी ने नई तकनीक की मदद से अपने मिल में एक हॉल में केसर उगाने में सफलता हासिल करते हुए जिले की महिलाओं को तकनीकी खेती के साथ रोजगार को संदेश दिया है। दो साल पहले शहर के राधामरन रोड रघुवीर शीतगृह के स्वामी संजीव भटनागर की पत्नी शुभा भटनागर के मन में जनपद के लिए कुछ करने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। शुभा ने गूगल के माध्यम से केसर की खेती करने का तरीका देखा। शुभा को तकनीकी में कम जानकारी थी इसलिए उन्होंने अपनी बहु मंजरी की मदद ली। शुभा और मंजरी ने मिलकर मैनपुरी में केसर की खेती करने का निर्णय लिया।

वर्ष 2023 में दोनों सास-बहू कश्मीर पहुंचीं और किसानों से एक सप्ताह तक रहकर खेती के तौर तरीकों की जानकारी ली। शुभा और मंजरी ने 30 अगस्त 2023 को रघुवीर शीत गृह में एक हॉल में केसर की खेती का बीज बोया। शुभा और मंजरी की मेहनत रंग लाई और नवंबर में उनकी पहली फसल तैयार हो गई। पहली फसल में शुभा और मंजरी को सवा दो किलो केसर प्राप्त हुआ। इस केसर की 750 रुपये प्रति एक ग्राम के हिसाब से बिक्री की जा रही है। शुभा और मंजरी के इरादों ने जिले की महिलाओं को बेहतर करने का संदेश दिया है।

साढ़े पांच सौ वर्ग फीट का वातानुकूलित हॉल किया तैयार केसर की खेती के लिए वातानुकूलित जगह की जरूरत थी। इसके लिए शुभा और मंजरी ने रघुवीर शीतगृह में साढ़े पांच सौ वर्गफीट का एक वातानुकूलित हॉल तैयार किया है। इसके लिए उन्होंने कश्मीर के पंपरो से केसर के दो हजार किलोग्राम बीज खरीदे। पहली फसल की सफलता के बाद दूसरी फसल की बुवाई कर दी है। जुलाई में इसका बीच एरोफोनिक तकनीक से लकड़ी की ट्रे में वातनुकूलित कमरे में पहुंचेगा। यहां सितंबर और अक्तूबर में केसर बनकर तैयार हो जाएगा।

महिलाओं को रोजगार देने का संकल्प

शुभा भटनागर बताती हैं कि उन्हें केसर की खेती को करने के लिए लगभग 25 लाख रुपये की लागत आई। वह केसर को बाहर एक्सपोर्ट नहीं करेंगी। अपने देश में केसर के उत्पादन की बहुत कमी है। उनका पहला लक्ष्य इसे पूरा करने का है। उन्होंने बताया कि केसर की इस सफल खेती से कई ग्रामीण महिलाओं को भी रोजगार मिलेगा। उन्होंने अपनी फसल की देखरेख के लिए ग्रामीण अंचल की 25 महिलाओं को चुना है। ये महिलाएं ही इस फसल की देखरेख करती हैं।