मनोज बाजपेयी ने कहा है कि करियर के शुरुआती दौर में उन्हें फिल्में करने के लिए काफी कम पैसे मिलते थे। उनके पास खुद का घर भी नहीं था। फिल्म सत्या के आने के लगभग 8 साल बाद वे घर खरीद पाए थे।
मनोज ने कहा कि वे जिन फिल्मों में काम करते थे उनका बजट काफी कम होता था, इस वजह से फीस भी काफी कम मिलती थी। मनोज ने कहा कि सत्या में काम करने के बाद वे सिर्फ एक कार खरीद पाए थे। हालांकि मनोज ये मानते हैं कि वो वक्त उनके लिए काफी आजादी वाला था। वे जहां चाहे वहां जा सकते थे। अब वो फ्रीडम नहीं है।
मनोज ने बॉलीवुड हंगामा को दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘मैं उस वक्त जो फिल्में कर रहा था। उससे मुझसे अच्छे पैसे नहीं मिल रहे थे। मैं सत्या, शूल, जुबैदा या दिल पर मत ले यार जैसी फिल्में कर रहा था।
ये सभी फिल्में कम बजट वाली थी। मैंने इन फिल्मों में इसलिए काम किया क्योंकि मैं इनका हिस्सा बनना चाहता था। इन फिल्मों से भले ही मैं पैसे नहीं कमा सका लेकिन मेरी एक्टिंग की भूख इनमें काम करने से शांत हो गई।’
मनोज ने आगे कहा, ‘सत्या के सात या आठ साल बाद ही मैं अपने लिए घर खरीदने में कामयाब रहा। उस वक्त तक फिल्म से आने वाले पैसों से मैं सिर्फ अपना काम चला पाता था।
सत्या करने से पहले मैं अपने लिए सिर्फ एक कार ले पाया था। हालांकि मुझे उस जिंदगी से प्यार था। मैं उस फ्रीडम को काफी ज्यादा इंजॉय करता था। जब मेरे साथ सिक्योरिटी गॉर्ड्स चलते हैं तो मुझे बोझिल लगता है।’
मनोज बाजपेयी आज ऐसे ही बड़े स्टार नहीं बने हैं, उन्होंने सक्सेस पाने के लिए काफी संघर्ष किया है। वे बिहार के एक साधारण परिवार से आते हैं। उन्होंने 17 साल की उम्र में नाटकों में काम करना शुरू कर दिया था।
जब वो बॉम्बे गए तो उन्हें वहां कोई नहीं जानता था। खाने तक के लाले पड़े थे। मनोज की उस वक्त ऐसी कंडीशन थी कि उन्हें बड़ा पाव तक महंगा लगता था। ट्रैवल करने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं रहते थे।
उन्हें 5 किलोमीटर तक तो पैदल ही चलना पड़ता था। 1994 में मनोज को पहला ब्रेक महेश भट्ट ने अपने टीवी सीरियल ‘स्वाभिमान’ के जरिए दिया। इसमें काम करने के लिए उन्हें 1500 रुपए प्रति एपिसोड मिलते थे।
मनोज ने शेखर कपूर की फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ से डेब्यू किया। हालांकि 1998 में आई राम गोपाल वर्मा की ‘सत्या’ को मनोज अपना असली डेब्यू मानते हैं और इसी फिल्म ने उनकी जिंदगी बदल दी। ‘भीखू म्हात्रे’ के रोल से वो पूरे देश में पहचाने गए। इस रोल के लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का नेशनल अवॉर्ड भी मिला था।
मनोज ने एक दूसरे इंटरव्यू में अपने प्रोफेशनल लाइफ से जुड़ी एक अनकही बातें शेयर की थी। उन्होंने कहा, ‘शुरुआती दौर में एक फेमस एक्ट्रेस ने मुझसे कहा कि मनोज तुम हीरो की तरह नहीं दिखते हो। खैर इस बात का मुझे बुरा नहीं लगा क्योंकि ये बात मुझे पहले से पता थी।
जब श्याम बेनेगल ने मुझे जुबैदा के लिए कास्ट किया तो मुझे कुछ पल के लिए विश्वास नहीं हुआ। मैं सोचने लगा कि क्या मैं सच में एक प्रिंस (फिल्म में उनका किरदार प्रिंस का था) की तरह दिखता हूं।’मनोज बाजपेयी की अपकमिंग फिल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ पर विवाद हो गया है। 8 मई को फिल्म का ट्रेलर रिलीज होने के बाद आसाराम बापू ट्रस्ट ने फिल्म के मेकर्स को नोटिस जारी किया है। दरअसल फिल्म में दिखाया गया है कि एक बाबा ने 16 साल की लड़की का रेप किया है।
चूंकि डिस्क्लेमर में साफ लिखा है कि ये फिल्म सच्ची घटनाओं पर प्रेरित है। फिल्म में दिख रहे बाबा का हुलिया सीधे तौर पर आसाराम से मिलता जुलता है। ट्रस्ट के वकील ने कोर्ट से फिल्म की रिलीज और प्रमोशन को भी रोके जाने का अनुरोध किया है।