‘आखिर पलायन कब तक’ फिल्म का सेंसिटिव ट्रेलर रिलीज हो गया है। फिल्मी जगत के इतिहास में पहली बार किसी फिल्म-निर्माता ने सभी पीड़ितों को स्टेज पर इनवाइट किया। पीड़ितों की जुबानी उनकी दर्दनाक कहानी मीडिया और फैंस के सामने रखी गई। ये फिल्म इसी पर आधारित होगी।
फिल्म ‘आखिर पलायन कब तक’ के राइटर और डायरेक्टर मुकुल विक्रम हैं। वहीं सोहनी कुमारी और अलका चौधरी इस फिल्म की प्रोड्यूसर्स हैं। मंगलवार को मुंबई के एक शानदार इवेंट में फिल्म का ट्रेलर लॉन्च हुआ। ट्रेलर लॉन्च के दौरान फिल्म की टीम ने ‘वक्फ बोर्ड’ की दादागिरी से पीड़ित लोगों को स्टेज पर इनवाइट किया।
पीड़ितों ने अपनी कहानी सबके सामने रखी। हालांकि ज्यादातर पीड़ित सामने आने से डर रहे थे। लेकिन उनमें से कुछ पीड़ितों ने कैमरे का सामना करते हुए अपनी दर्दनाक कहानी सब को सुनाई। जो लोग डरे हुए थे, वो सब मीडिया की तरफ अपनी पीठ करके स्टेज पर खड़े नजर आए। वहीं दो हिम्मती लोगों ने कैमरे को फेस किया।
पीड़ितों के जज्बे को सलाम करते हुए फिल्म प्रोड्यूसर और एक्ट्रेस सोहनी कुमारी ने बताया- आज मुझे धमकियां आ रही हैं। लेकिन मुझे पता है कि मैं कुछ अच्छा कर रही हूं। मुझे किसी का डर नहीं है। अगर मर भी गई तो क्या हुआ, देश के लिए शहीद होना गर्व की बात है। हमारे फौजी भाई बॉर्डर पर अपनी जान दे देते हैं, ताकि समाज सुरक्षित रह सके। ऐसे में ये हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम भी ऐसी फिल्में बनाए जो समाज में हो रही बुराइयों को खत्म करे। लोग इसके बारे में जागरूक हों।
मैं भी अपने फौजी भाइयों और पूर्वजों जैसा जज्बा रखती हूं। मैं भले ही बॉर्डर पर नहीं हूं, लेकिन समाज को सुधारने की कोशिश तो कर ही सकती हूं। ऐसे में मेरी जान जाती है तो जाए। मैं डरने वाली नहीं हूं। मैं ऐसी ही फिल्में बनाऊंगी।
फिल्म की कहानी मुसलमानों द्वारा जानबूझकर हिंदुओं को निशाना बनाने पर आधारित है। यह एक ज्वलनशील मुद्दा है कि कैसे एक मुस्लिम बोर्ड हिंदुओं की जमीन पर कब्जा करके उन्हें निशाना बनाता है। फिल्म में राजेश शर्मा, भूषण पटियाल, गौरव शर्मा, चितरंजन गिरी, धीरेंद्र द्विवेदी और सोहनी कुमारी हैं। ‘आखिर पलायन कब तक’ उन सभी सिनेमा प्रेमियों और फिल्म प्रेमियों के लिए ट्रीट होगी, जो यथार्थवादी सिनेमा देखना पसंद करते हैं। यह फिल्म जीवन और समाज की वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है।
फिल्म डायरेक्टर मुकुल विक्रम बोले- हम लोग पॉलिटिकल एजेंडा या धर्म विशेष को टारगेट नहीं कर रहे हैं। यह बहुत से परिवारों की सच्ची कहानी है। इस कहानी को लोगों तक पहुंचाना बहुत जरूरी है।
‘आखिर पलायन कब तक’ की कहानी हत्याओं, थाने में तैनात एक पुलिस इंस्पेक्टर, एक लापता परिवार और उसके चार सदस्यों और कई अन्य रोमांचक स्थितियों के इर्द-गिर्द घूमती है। असल में कहानी कश्मीरी पंडितों को मुस्लिम ‘मोहल्ले’ में रहने के घातक और भयानक अनुभवों को उजागर करती है। किस तरह से अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय एक दूसरे के प्रति नफरत और द्वेष रखते हैं। किस तरह से एक दूसरे को दबाने, डराने और बेइज्जत करने के लिए अलग-अलग हथकंडे इस्तेमाल करते हैं।
डायरेक्टर ने आगे कहा- इस फिल्म में ऐसा कुछ है, जो हम सबकी कहानी है। एक बुरे सामाजिक सच की कहानी है। एक ऐसा सच जिसे सभी ने देखा और महसूस भी किया है। लेकिन उसके खिलाफ कभी आवाज नहीं उठाई। उम्मीद करता हूं कि ‘आखिर पलायन कब तक’ दर्शकों को जरूर पसंद आएगी। फिल्म 16 फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होगी।