फर्रुखाबाद:विश्व सोरायसिस दिवस शनिवार को सोरायसिस एक सिस्टेमिक यानी दैहिक बीमारी-सीएमओ

फर्रुखाबाद, 27 अक्टूबर 2022 अगर आपके शरीर पर लंबे समय तक कहीं का चमड़ा काला या बदरंग नजर आए तो यह सोरायसिस हो सकता है। सोरायसिस त्वचा संबंधित क्रॉनिक और ऑटोइम्यून बीमारी है l अक्सर यह बीमारी या तो डायग्नोज ही नहीं हो पाती है या फिर गलत तरीके से डायग्नोज होती है। इसके बारे में जागरूकता फैलाना महत्वपूर्ण है। इसी को देखते हुए हर साल 29 अक्टूबर को विश्व सोरायसिस दिवस मनाया जाता है l यह कहना है मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अवनींद्र कुमार का।
सीएमओ ने बताया कि सोरायसिस में आमतौर पर त्वचा पर पपड़ीदार पैच बन जाता है। जो बहुत तेजी से बढ़ते है और जल्दी ही उतर भी जाता है। अक्सर इसको त्वचा रोग, फंगल संक्रमण या बैक्टीरियल की प्रकृति वाला समझा जाता है लेकिन सोरायसिस एकदम अलग है l सोरायसिस एक सिस्टेमिक यानी दैहिक बीमारी है। इसलिए इसे ऑटोइम्यून बीमारी के रूप में वर्गीकृत किया गया है l शरीर के इम्यून सिस्टम का काम शरीर को सुरक्षित रखना है l कभी-कभी, इम्यून सिस्टम गलती से शरीर पर ही हमला करने लगता है l
सीएमओ ने बताया कि आमतौर पर त्वचा रोग केवल त्वचा को प्रभावित करते हैं लेकिन अगर आपको सोरायसिस है तो सूजन आपके शरीर के आंतरिक अंगों में भी हो सकती है, खासकर हृदय से संबंधित कार्डियोवस्कुलर सिस्टम में। सोरायसिस से मेटाबॉलिक सिंड्रोम भी हो सकता है। इसमें संबंधित रोगों की एक पूरी श्रृंखला शामिल है l
सीएमओ ने बताया कि सोरायसिस के लक्षण त्वचा रोग से संबंधित अन्य बीमारियों से मिलते जुलते होते हैं। इसलिए जब तक आप किसी विशेषज्ञ के पास नहीं जाते हैं तब तक बीमारी आसानी से डायग्नोज नहीं हो पाती हैl
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी और गैर संचारी रोगों के नोडल अधिकारी डॉ दलवीर सिंह ने बताया कि सोरायसिस की शुरुआती डायग्नोसिस और उचित उपचार अति आवश्यक है l अक्सर देखने को मिलता है कि अगर सोरायसिस के मरीज अपनी बीमारी की पहचान करने या उसे नियंत्रित करने में असमर्थ रहते हैं, तो लंबे समय में उन्हें मोटापा, डायबिटीज और हृदय रोग होने का भी खतरा बढ़ जाता हैl
डॉ दलवीर ने बताया कि ज्यादातर, मरीज डॉक्टर के पास 8-9 साल के बाद आते हैं और तब तक जोड़ों में दर्द, इन्फ्लेमेशन, हाथ-पैर के छोटे जोड़ों में सूजन और उंगली के जोड़ों में विकृति जैसे लक्षण विकसित हो जाते हैं l ये सोरायसिस के दीर्घकालिक प्रभाव हैं जिन्हें रोकने की जरूरत है l
डॉ दलवीर ने बताया आमतौर पर मरीज अवसादग्रस्त हो जाते हैं, उनमें डिप्रेशन के लक्षण होते हैं और उन्हें ऐसा महसूस होता है कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा l इसका कारण ये है कि चूंकि लोग सामाजिक होने को आकर्षक होने से जोड़कर देखते हैं और सोरायसिस बीमारी व्यक्ति की आकर्षकता को नुकसान पहुंचाती है इसलिए मरीज अक्सर आइसोलेटेड और अकेलापन महसूस करने लगते हैं l सोरायसिस के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह व्यक्ति के आत्मविश्वास को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है l

डॉ राममनोहर लोहिया चिकित्सालय में तैनात फिजिशियन डॉ ऋषि नाथ गुप्ता ने बताया कि सोरायसिस को डायग्नोज करने में बहुत अधिक प्रयास या जांच की जरूरत नहीं होती, लेकिन लोग त्वचा की बीमारियों को हल्के में लेते हैं l
ज्यादातर लोग इसे केवल एक छोटी फुंसी या चकत्ता मान लेते हैं और सोचते हैं कि इसका उनकी सेहत पर खास प्रभाव नहीं पड़ेगा l कई लोग अपने परिवार के मेडिकल इतिहास से भी अनजान होते हैं और चूंकि जेनेटिक्स भी सोरायसिस होने में भूमिका निभाता है, इसलिए भी इसे डायग्नोज करने में देरी होती है या फिर बीमारी गलत डायग्नोज हो जाती है l

डॉ ऋषि ने बताया कि यदि किसी युवा मरीज को सोरायसिस हो जाता है और वह इसकी अनदेखा कर देता है तो इसका न सिर्फ व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव पड़ता है बल्कि व्यक्ति अक्षम भी हो सकता है l यही कारण है कि सोरायसिस के मामले में शुरुआती और सही उपचार महत्वपूर्ण है l
डॉ ऋषि ने बताया कि भले ही आप सोरायसिस के जेनेटिक कारणों को नियंत्रित न कर पाएं लेकिन पर्यावरण से जुड़े उन कारकों का प्रबंधन कर सकते हैं जो बीमारी को बढ़ाने का काम करते हैं l धूम्रपान और शराब का सेवन बीमारी को अधिक भड़काता है l
डॉ ऋषि ने बताया कि सर्दियों के मौसम में अपनी त्वचा की देखभाल करने से सोरायसिस रोगियों को बीमारी के बेहतर प्रबंधन में मदद मिल सकती है l
डॉ ऋषि ने बताया कि यह बीमारी मात्र 0.5 प्रतिशत लोगों में देखने को मिलती है l