फर्रूखाबाद:झांसी की रानी लक्ष्मीबाई: साहस, बलिदान और स्वतंत्रता की अमर प्रतीक।

फर्रूखाबाद:(द दस्तक 24 न्यूज़) 18 जून 2025 झांसी की रानी लक्ष्मीबाई भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहली वीरांगनाओं में से एक थीं, जिन्होंने अपने अद्भुत साहस, राष्ट्रभक्ति और नेतृत्व के बल पर अंग्रेज़ी हुकूमत को कड़ी चुनौती दी। वे न केवल महिलाओं के लिए बल्कि समस्त भारतवासियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई हैं।

प्रारंभिक जीवन

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी (तब बनारस) में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था और प्यार से लोग उन्हें ‘मनु’ बुलाते थे। उनके पिता मोरोपंत ताम्बे मराठा दरबार में कार्यरत थे। मनु ने बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्ध कला में गहरी रुचि ली, जो आगे चलकर उनकी पहचान बनी।

झांसी की रानी बनना

सन् 1842 में मणिकर्णिका का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव से हुआ और वे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कहलाईं। विवाह के कुछ वर्षों बाद उनका एक पुत्र हुआ, जो कुछ ही समय में चल बसा। इसके बाद उन्होंने एक पुत्र दमोदर राव को गोद लिया, लेकिन अंग्रेज़ों ने इस दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया।

अंग्रेज़ों से संघर्ष

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की ‘Doctrine of Lapse’ (व्यपगत सिद्धांत) नीति के अनुसार झांसी को हड़पने की कोशिश की गई। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों को स्पष्ट उत्तर दिया — “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।”

सन् 1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई ने स्वतंत्रता की मशाल को जलाया। उन्होंने महिलाओं की एक सेना तैयार की और वीर पुरुषों के साथ मिलकर अंग्रेज़ों से कई मोर्चों पर लोहा लिया।

गौरवमयी युद्ध और बलिदान

रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की रक्षा में अद्भुत वीरता दिखाई। उन्होंने घोड़े पर बैठकर तलवारें चलाईं, अपने पुत्र को पीठ पर बांधकर युद्ध किया।

17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में अंग्रेज़ सेना से लड़ते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुईं। उनका अंतिम संस्कार युद्धभूमि पर ही उनके अनुयायियों द्वारा किया गया।

रानी लक्ष्मीबाई की विरासत

रानी लक्ष्मीबाई आज भी भारतीय जनमानस में ‘वीरांगना’ के रूप में पूजनीय हैं। उनकी बहादुरी पर कई कविताएँ, कहानियाँ और नाटकों की रचना हुई है। सुभद्राकुमारी चौहान की कविता की यह पंक्ति अमर है —

 “ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।”

निष्कर्ष

झांसी की रानी नारी शक्ति की प्रतीक थीं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि एक स्त्री भी तलवार उठा सकती है, युद्ध कर सकती है और राष्ट्र की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर कर सकती है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा देशभक्त कभी हार नहीं मानता।

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