प्रेम का बंधन : गोविन्द मौर्या (प्रेम जी)

govind maurya

प्रेम की पावन बगिया से
           दो प्रेम के फूल खिले दिल में ।
स्नेह प्यार के बंधन से
           मन मगन हुआ अपने मन में ।।

जीवन के सच्चे बंधन से
        मन बहा प्रेम सागर की धारा में ।
एक प्रेम के सच्चे सपने से
     स्नेह का चहल पहल हुआ मन में ।।

उसकी प्यारी प्यारी खुशबू से
         महक का पवन चला जीवन में ।
उसकी पायल की प्यारी छम छम से
            दिल धड़क उठा अंतर्मन में ।।

उसकी आंखों की प्यारी काजल से
    यूं लगा घनघोर घटा छाई सावन में ।
उसकी होठों की मुस्कानों से
  यूं लगा धूप निकल गया अगहन पौष में ।।

उसके मंद मंद मुस्कानों से
     ज्येष्ठ का पवन चला दिल में ।
होंठो की प्यारी लाली से
         प्रातः का सूर्य उदय हुआ वन में ।।

प्रेम की पावन बगिया से
           दो प्रेम के फूल खिले दिल में ।
स्नेह प्यार के बंधन से
           मन मगन हुआ अपने मन में ।।

लेखक:
    ( गोविन्द मौर्या – प्रेम जी )
  सिद्धार्थ नगर , उत्तर प्रदेश
E-mail : govindlalmourya724@gmail.com