नीतीश की सियासी चालें सफल रही तो, वह भाजपा के ही वोट बैंक में सेंधमारी करेंगे लोक जनशक्ति पार्टी की नाराजगी की वजह से बीते विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को कम से कम 30 सीटों का नुकसान हुआ था।
चिराग पासवान अगर एनडीए के साथ रहते और भाजपा जदयू के नेताओं के साथ मंच पर खड़े हुए। होते तो शायद बिहार में भाजपा तीसरे नंबर की पार्टी होती और जदयू दूसरे नंबर की। मतलब साफ है कि लोजपा को साधकर नीतीश ने सिर्फ चिराग पासवान को कमजोर नहीं किया है बल्कि भाजपा के वोट बैंक में भी बड़ी सेंध लगाने की कोशिश की है।
चिराग पासवान इस समय अकेले पड़ गए हैं अपने पिता की तरह सड़कों पर संघर्ष का उनका कोई अनुभव नहीं है दिवंगत रामविलास पासवान जिस तरह से दलित समाज के लोगों के बीच आसानी से घुल मिल जाया करते थे। ऐसा एक भी उदाहरण चिराग अभी तक पेश नहीं कर पाए हैं। न तो चिराग पासवान ने बिहार में दलितों के लिए कोई आंदोलन खड़ा किया और न ही उनके नेतृत्व में कोई बड़ी सफल रैली हो पाई है।
मतलब चिराग पिता की सियासी विरासत संभालने का माद्दा अभी तक नहीं दिखा पाए। नीतीश इस राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं। वह बहुत ही आसानी से पशुपति कुमार पारस को रामविलास पासवान की जमीन पर उतार देंगे और उनका भरपूर सियासी इस्तेमाल भी कर लेंगे।