आँवला – शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, बिजली, खेती-किसानी आदि मुद्दों के बीच उत्तर प्रदेश में इस बार पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा भी है। यह ऐसा मुद्दा है, जिससे सीधे तौर पर राज्य के करीब 28 लाख कर्मचारी, शिक्षक और पेंशनर्स जुड़ रहे हैं। इन्हें सिर्फ 28 लाख मान लेना ठीक नहीं होगा। यह शिक्षित वर्ग है समाज में राय कायम करता है। समाज में न सही यदि परिवार में भी इन्होंने एक राय बना ली तो सीधे सीधे एक करोड़ से अधिक वोटर इस मुद्दे से प्रभावित दिखेंगे।
चुनाव में सपा ने पुरानी पेंशन बहाली का ब्रह्मास्त्र छोड़ बढ़त लेने की कोशिश की है। कर्मचारियों व शिक्षकों के बीच यह मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि कर्मचारी वर्ग को जोड़े रखने के लिए चुनाव की अधिसूचना से पूर्व के तीन चार महीनों में भाजपा सरकार ने भी लाखों मानदेय कर्मियों के मानदेय में इजाफा और पुराने बंद भत्तों को बहाल करने के साथ ही कुछ नए भत्ते देने का तोहफा दिया था। अब देखना है होगा कि बढ़े वेतन व भत्तों तथा पुरानी पेंशन बहाल करने के वादे का असर इस चुनाव के परिणाम को प्रभावित करता है अथवा नहीं।
पहली बार मुद्दा बने पुरानी पेंशन योजना के बारे में जानकार बताते हैं कि कोई भी सरकार पुरानी पेंशन लागू करने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगी क्योंकि पहले से ही राज्य के कुल बजट का करीब 50 फीसदी धनराशि वेतन, पेंशन और भत्तों में चला जाता है। शेष जो बचता है उसी में प्रदेश सरकार के समस्त कार्य होते हैं।
2005 में मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे जब पुरानी पेंशन बंद की गई थी
प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना को 2005 में बंद कर नई पेंशन योजना (एनपीएस) लागू की गई थी। उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार और राज्य में मुलायम सिंह यादव की सपा सरकार थी। जब नई पेंशन योजना लागू की गई उस समय कर्मचारी इसे समझ ही नहीं पाए। ऐसा लगा था मानों नई योजना में जब कर्मचारी सेवानिवृत्त होंगे तो उन्हें मोटी धनराशि के साथ ही अच्छा खासी पेंशन मिलेगी। यह भ्रम पिछले तीन चार साल पहले टूटा है। जब नई पेंशन योजना से आच्छादित कुछ कर्मचारी सेवानिवृत्त हुए और उनके खाते में पेंशन के नाम पर दो से पांच हजार रुपये महीने गया। जिसके बाद से राज्य में यह आंदोलन बना हुआ था।
बड़ा आंदोलन होने पर वर्ष 2018 में मुख्यमंत्री योगी ने बनाई थी इसके लिए कमेटी
पुरानी पेंशन बहाली के लिए राज्यकर्मियों 2018 में बड़ा आंदोलन खड़ा किया था। दिसंबर 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुरानी पेंशन बहाली पर विचार कर अपनी रिपोर्ट देने के लिए एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी में सात वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और कर्मचारी संगठनों के नेता थे। कमेटी ने इस दिशा में बहुत सारे तथ्यों पर काम किया था, लेकिन हड़ताल समाप्त होने के बाद धीरे-धीरे यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। एक अप्रैल 2005 के बाद पुरानी पेंशन बंद योजना राज्य में बंद की गई थी। इसके बाद से जो भी नियुक्तियां हुईं सभी को एनपीएस में लिया गया।
कर्मचारी नेताओं का कहना है कि सच्चाई तो यह है कि नई पेंशन योजना लागू करने के बाद इसके लिए कर्मचारी और नियोक्ता की तरफ से पेंशन के लिए दिए जाने वाले धनराशि का प्रबंधन ही आज तक राज्य में सही नहीं किया गया। सरकार द्वारा समय से धनराशि बाजार में निवेश ही नहीं की गई। शेयर बाजार का फायदा मिलेगा कहां से। विभागों ने शेयर बाजार में निवेश के लिए जिन एजेंसियों को चुना है, सभी के दफ्तर मुंबई में हैं यानी मुंबई में बैठे फंड मैनेजरों से विभागों का कोई संपर्क तक नहीं है।
आज तक इस मुद्दे पर किसी भी विधायक, मंत्री या सांसद ने कोई आवाज नहीं उठाई। जब कोई नेता एक दिन के लिए भी विधायक या सांसद बन जाता है तो उसे जीवन भर पेंशन और अन्य सुविधाएं सरकार देती है। वहीं 30 से 35 साल तक राज्य की सेवा करने वाले कार्मिकों को पेंशन देने से सरकारें पीछे क्यों भाग रही है? नई पेंशन योजना इतनी ही अच्छी है तो सांसद व विधायकों के लिए इसे लागू क्यों नहीं किया जाता? सरकार के खजाने में जो राजस्व आ रहा है वह नेताओं के कारण नहीं बल्कि राज्य के अधिकारियों व कर्मचारियों की मेहनत से आ रहा है। इस लिहाज से भी पुरानी पेंशन पाने का हक कार्मिकों का बनता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे पर कहा है कि कर्मचारियों के वेतन का पैसा शेयर बाजार में नहीं लगाया जा सकता
केंद्र सरकार ने नई पेंशन योजना लागू की तो इसे राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं किया, लेकिन धीरे-धीरे तमाम राज्यों ने इसे अंगीकार कर लिया। एकमात्र पश्चिम बंगाल ही ऐसा राज्य है जहां पर अब भी पुरानी पेंशन व्यवस्था ही लागू है। सरकारें चाहें तो पुरानी पेंशन का लाभ दे सकती हैं।
अभी तक के चुनावों का अनुभव यह रहा है कि चुनाव आते-आते कर्मचारी-शिक्षक अपने मुद्दों को भूल जाते हैं और जो जिस पार्टी की रीति नीति को मानता है उसके साथ चला जाता है। राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए राज्य कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति 58 से बढ़ाकर 60 साल किया था। विधानसभा चुनाव में इसका कोई लाभ निकलता नहीं दिखा था। राजनाथ सिंह ने जिस मंशा से यह फैसला लिया था वह अधूरी रह गई। चुनाव के समय कर्मचारियों ने वही किया जो उनके अंतर्मन में था।
नई पेंशन योजना में सरकार पहले ही महीने के वेतन के साथ पेंशन मद में अपना अंशदान कर्मचारी के खाते में देती जा रही है। कर्मचारी जब सेवानिवृत्त होगा उस समय कर्मचारी के वेतन से हुई कटौती और सरकार के अंशदान की धनराशि बढ़कर जितनी हुई होगी उसके आधार पर पेंशन बनेगी। इस व्यवस्था में कार्मिक के सेवानिवृत्त होने के बाद सरकार पर कोई वित्तीय भार नहीं रहेगा।
पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारी के मद से पेंशन धनराशि की कोई कटौती नहीं होती है राज्य सरकार भी सेवा के दौरान इसमें कोई अंशदान नहीं करती है। कर्मचारी जब सेवानिवृत्त होता है तो पेंशन का सारा वित्तीय भार सरकार उठाती है। इस पेंशन धनराशि के भुगतान का प्रबंध सरकार सालाना बजट से करती है।
नई पेंशन योजना का उद्देश्य आने वाले सालों में सरकार के कंधे से पेंशन भुगतान का बोझ समाप्त करने की है। इस व्यवस्था से यह माना जा रहा है कि 2035 के बाद राज्य सरकार के कंधे से हर महीने पेंशन मद में मोटी धनराशि देने का बोझ उतर जाएगा।
जगदीश चन्द्र सक्सेना
प्रदेशाध्यक्ष
बेसिक शिक्षा समिति उत्तर प्रदेश
प्रदेश उपाध्यक्ष
कायस्थ चित्रगुप्त महासभा उत्तर प्रदेश
मो- 9219196917।
रिपोर्टर – परशुराम वर्मा