बरेली-अंत्येष्टि की सिर से ढोकर थक जाते है,मृत के परिजन

आंवला तहसील क्षेत्र के गांव के लोग बर्षों से ठीक ठाक रास्ते के अभाव मे मृत व्यक्ति की अन्तेष्टी करने के लिए कटीलीे झाड़ियों गहरे-गहरे गढ्ढों से होकर सिर पर ईंधन रखकर शमसान भूमि तक पैदल जाने को कब तक मजबूर रहेंगे जबकि ग्रामीणों ने काफी समय पहले अपनी इस समस्या के समाधान को लेकर उच्चाधिकारियों व पूर्व मे रहे प्रधानों से शिकायत भी की

हम बात कर रहे हैं तहसील आंवला व व्लाक मझगवां के गांव इस्माइलपुर की जहां के ग्रामीण वर्षो से एक बढ़ी समस्या से जूझते आ रहे हैं जहां विकास के सभी दावे हवाहवाई साबित हो रहे हैं लगातार गांव से लेकर तहसील व उच्चाधिकारियों से शिकायत करने के बावजूद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ मिला तो बस हर किसी से सिर्फ आश्वासन गांव से पश्चिमी दिशा मे बनी शमसान भूमि का रास्ता मेन रोड से कंटीली झाडिय़ों और गहरे गढ्ढों से भरा हुआ है रास्ता ठीक न होने के कारण कोई ईंधन से भरा हुआ बाहन भी शमसान भूमि तक नहीं पहुंचता मजबूरन ग्रामीण मेन रोड से चाहे कोई भी मौसम हो जाड़ा ,गर्मी,बारिश मे मृतक की अन्तेष्टी के लिये सिर से ईंधन ढो ढोकर ले जाते हैं ग्रामीणों की सुनने बाला कोई नहीं

कहां गये गांव के छुटभैय्या नेता

कहने को तो गांव मे बड़ी-बड़ी पहुंच रखने वाले छुटभैय्या नेताओं की कमी नहीं है अगर हांकने पर उतर आयें तो अपनी सीधी सांसद या विधायक तक पहुंच बताते हुये प्रतिनिधि बताते हुये रौव झाड़ते हैं लेकिन क्या करें वे छुटभैय्या नेता भी वर्षों से इन्हीं झाड़ियों से होकर गुजर रहे हैं नेता जी ने कभी गांव वालो को इस समस्या से निदान दिलाने की जहमत ही नहीं उठाई खुद भी ऐसे रास्ते से गुजरते हुये शर्म महसूस नहीं होती

मृतक की अन्तेष्टी के दौरान ग्रामीणों ने मौजूदा प्रधान से समस्या के समाधान हेतु कहा

शुक्रवार को गांव के एक बुजुर्ग व्यक्ति की मृत्यु के दौरान झाड़ियों व कीचड़ भरे रास्ते से होकर शमसान भूमि तक ग्रामीणों के साथ पहुंचे मौजूदा ग्राम प्रधान से मृतक के भाई समेत कई ग्रामीणों ने इस गंभीर समस्या का जल्द समाधान करने के विषय मे बात की अब आगे देखने बाली बात होगी की ग्रामीणों को इस समस्या से ग्राम प्रधान छुटकारा दिला पाते हैं या ग्रामीणों को ग्राम प्रधान की तरफ से भी छुटभैय्या नेताओं की तरह आश्वासन मिलता रहेगा अगली बार हो जायेगा चिंता मत करिये

सोचने पर मजबूर कर देने बाली बात

इस पूरे मामले को देखकर लगता है कि अबतक गांव के रहे जिम्मदारों व छुटभैय्या नेताओं ने गांव वालों को इस समस्या से निकालने के प्रयास ही नहीं किये अगर प्रयास किये तो गांव वालों को अबतक इस समस्या से क्यों जूझना पड़ रहा है या यूं कहिये के अपने आपको तीस मार खां बताने बाले गांव के छुटभैय्या नेता खाली झुनझुना बजाते रहते हैं लगता है उन झुनझुनो मे दम नहीं