बरेली – संसदीय गरिमा के साथ खिलवाड़ उचित नहीं: आशीष तिवारी

आँवला – भारत एक विशाल लोकतांत्रिक देश है। देश की संसद वह पावन स्थल है, जिसे इस विशाल लोकतंत्र का मंदिर कहा जाये तो गलत नहीं होगा। देश की इस सबसे बड़ी पंचायत में वर्तमान में लोकसभा के 543 तथा राज्यसभा के 545 सदस्य विद्यमान हैं। इस देश का राजनीतिक ताना बाना इस तरह का है कि यहां पर जनमत को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। संसद वह संस्था है, जहां जनतंत्र से चुने हुए जनप्रतिनिधियों को निर्णय लेने का अधिकार होता है। संसद ऐसी लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था है, जहां सर्वोच्च शक्ति लोगों के प्रतिनिधियों के निकाय में निहित है। इसकी गरिमा को अक्षुण्ण बनाये रखना, इसकी मर्यादा को बनाये रखना इसके सदस्यों की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

इसके विपरीत खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि बीते कुछ वर्षों में कई सदस्यों के अमर्यादित आचरण के कारण संसद की गरिमा को काफी चोट पहुंची है। उसकी मर्यादा तार—तार हुई है। बीते रविवार को भी राज्यसभा में कृषि विधेयकों पर चर्चा के दौरान ऐसा ही देखने को मिला। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर द्वारा कृषि विधेयकों पर चर्चा किये जाने के दौरान समय खत्म हो गया तो देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य गुलाम नबी आजाद ने शेष चर्चा अगले दिन कराने तथा मतदान कराने की मांग की। इसके विपरीत राज्यसभा के सभापति हरिवंश ने समय सीमा आगे बढ़ाते हुए चर्चा जारी रखने पर सहमति दी। इस पर भड़के विपक्षी सदस्यों ने आसंदी के आगे प्रदर्शन किया। बिल की प्रतियां फाड़ीं और यही नहीं, उपसभापति का माइक तोड़ दिया। तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने संसद की बिल बुक फाड़ दी और उपसभापति का माइक तोड़ने के लिए आगे बढ़े। कांग्रेस सांसद रिपुन बोरा, आप सांसद संजय सिंह तथा डीएमके सांसद तिरुचि शिवा भी उपसभापति का माइक तोड़ने की कोशिश करते नजर आये। हालत यहां तक हो गयी कि सांसदों को काबू में करने के लिए मार्शलों को बुलाना पड़ा। कहना न होगा कि संसद का लाइव प्रसारण होने के कारण सारा देश विपक्षी सांसदों के इस अमर्यादित आचरण का साक्षी बना।

यद्यपि, राज्यसभा के सभापति वेंकैयानायडू ने अमर्यादित आचरण के लिए राज्यसभा के आठ सांसदों को एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया है, लेकिन इसके साथ ही यह सवाल उठना वाजिब है कि जनप्रतिनिधियों का विरोध का यह तरीका कहां तक उचित है। क्या उनको अपनी बात कहने के लिए अनुशासित ढंग से नहीं व्यवहार करना चाहिए था। या वे यह सब अगले चुनावों को देखते हुए जनता की सहानुभूति हासिल करने के लिए कर रहे थे। उन्हें याद रखना चाहिए कि जनता अब जागरूक हो चुकी है और उसे यह भी पता है कि संसद की एक दिन की कार्यवाही पर जनता की गाढ़ी कमाई के लाखों रुपये खर्च होते हैं।

चाहे सत्ता पक्ष के लोग हों अथवा विपक्षी सांसद, उन्हें अपने मर्यादित आचरण का परिचय देते हुए संसद की गरिमा बनाये रखना चाहिए, ताकि जनता में कोई ऐसा संदेश न जाये कि वे उसका प्रतिनिधित्व करने के बजाय संसद को लड़ाई का मैदान बना रहे हैं। लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर का अपने पुजारियों अर्थात् संसद सदस्यों से यही तकाजा है।

रिपोर्टर – परशुराम वर्मा