बरेली – माता पिता और संतान के बीच बढ़ते मतभेद।

आँवला – प्रिय साथियों संसार मे माता-पिता ही वो सख्शियत हैं जो अपने बच्चों की खुशी के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर देते हैं अपने जीवन के सभी सुखों का त्याग कर वे हमारे जीवन को संवारने में लग जाते हैं और ये सब करते करते उनके निजी जीवन के बारे में वे तनिक भी नही सोंचते वहीं एक समय ऐसा जो कि प्रचलन में है कि जिन माता पिता के द्वारा अपना सर्वस्व त्याग कर हमारी खुशियों के लिए अपने जीवन के भौतिक सुखों को त्याग संतान को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया उनके वैचारिक मतभेद देखने को मिलते हैं साथियों समाज मे ऐसी बहुत से समस्याएं हैं जिनसे हर व्यक्ति जूझ रहा है लेकिन वह शांत है किसी से कह नही सकता इन घटनाओं को देखते हुए आज अपने विचार आपके साथ साझा कर रहा हूँ आखिर ऐसा क्यों होता है????
एकांत में इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास किया तो यह पाया कि सबसे बड़ी समस्या समयकाल की होती है क्योंकि जो व्यक्ति जिस समयकाल परिस्थितियों में ज्यादा रहा होता है वह समाज की हर समस्या को उसी दृष्टिकोण से देखता है आधुनिक समय मे ये घटनाएं इसलिए ज्यादा देखने को मिलती हैं क्योंकि दो सभ्यताओं के विचार परस्पर समन्वय स्थापित नही कर पाते क्योंकि माता-पिता भारतीय संस्कृति और गुरुकुल शिक्षा वैदिक सभ्यता या हमारी पुरातन संस्कृति के अनुयायी होते हैं और हम आधुनिक मैकाले शिक्षा पद्धति और समाज मे व्याप्त पाश्चात्य संस्कृति जिसने आज की युवा पीढ़ी को बुरी तरह से प्रभावित कर उस पर अपना स्वामित्व बना लिया है ऐसे में सबसे बड़ा संकट पारिवारिक लड़ाइयां और वैचारिक मतभेद होते हैं जिसके कारण कई परिवारों में ये समस्याएं बहुत हानिकारक साबित होती हैं।

निष्कर्ष:-

जब चिंतन करते करते इस समस्या का उपाय जाना तो सबसे पहले ये निष्कर्ष निकाला कि समय के अनुसार पाठ्यक्रम बदलना चाहिए लेकिन नैतिकता और संस्कृति में कभी बदलाव नही करना चाहिए, क्योंकि हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है औऱ दूसरा निष्कर्ष ये था कि समय के साथ साथ माता-पिता को भी चाहिए कि बच्चों की स्थिति को समझने का प्रयास करें उनके सकारात्मक विचारों को गति प्रदान करें क्योंकि युवा अवस्था में युवाओं के अंदर एक अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है जिससे वह समाज मे कीर्तिमान स्थापित कर सकता है माता पिता को युवाओं की मनोस्थिति को समझते हुए ही अपने निर्णय को उनके जीवन से जोड़ना चाहिए जिससे कि वे भविष्य में आने वाली समस्याओं से खुद निकल सकें। तीसरा निष्कर्ष जो अन्ततः मैंने स्वंय से भी प्रयोग किया है कि समाज ही हमारे उत्थान का कारण भी है और हमारे पतन का भी और इसी समाज ने बहुत से लोगों को बुलंदियों तक पहुंचाया है और इसी समाज ने बहुत लोगों के जीवन की ज्योति को अंधकार की ओर धकेल दिया । साथियों बस अपने जीवन मे सकारात्मक विचारों के साथ आगे बढ़ते रहिये समस्याएं आएंगी लेकिन आप अपने जीवन कौशल के कारण निरंतर आगे बढ़ते जाएंगे और एक दिन यही समाज आपको अपने मस्तक पर स्थान देगा, जिस प्रकार रात के अंधकार में सूर्य के संघर्ष को दुनिया नही जानती लेकिन प्रातः काल की वेला में दुनिया उसी सूर्य को नमस्कार करती है ठीक उसी प्रकार आपके संघर्ष की कोई सराहना नही करता तो आप हतोउत्साहित मत होइए क्योंकि आपकी कामयाबी दुनिया मे एक कीर्तिमान स्थापित करेगी।
जिन बच्चों को माता पिता का आशीर्वाद प्राप्त होता है वे अपने जीवन मे निरंतर कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ते हैं और समाज को नई दिशा देने का कार्य करते हैं अपनी इस पोस्ट के माध्यम से मैं समाज मे सभी से ये अपेक्षा करता हूँ कि समय को ध्यान में रखते हुए एक दूसरे को समझने का प्रयास करें जिससे समाज तनाव मुक्त बन सके ।
वैदिक सिद्धान्त अद्भुत हैं इन्हें सभी युवा अवश्य जानें और अन्य को भी प्रेरित करें अपनी संस्कृति पर गर्व करें क्योंकि उसी से हमारी पहचान है👍

-सत्यदेव आर्य

रिपोर्टर – परशुराम वर्मा