बरेली – पिछली सदी के साठ के दशक में सदाबहार धुनों के एक बड़े संगीतकार चित्रगुप्त श्रीवास्तव उर्फ़ ‘चित्रगुप्त’ का नाम बड़े संगीतकारों की ज़मात में उल्लेखनीय ढंग से उभरता है। पढ़े-लिखे संगीतकारों में चित्रगुप्त का नाम तो आदर से लिया जाता ही है, इस बात पर भी उन्हें प्रशंसा मिलती रही है कि उन्होंने बाक़ायदा पण्डित शिवप्रसाद त्रिपाठी से संगीत की शिक्षा ली थी और भातखण्डे संगीत विद्यालय, लखनऊ से संगीत के नोट्स मंगाकर रियाज़ किया करते थे।
उनके रचे हुए अमर गीतों में प्रमुख रूप से ‘लागी छूटे ना अब तो सनम’ (लता-रफ़ी, फ़िल्म- काली टोपी लाल रुमाल), ‘दगाबाज़ हो बांके पिया’ (लता-उषा, फ़िल्म-बर्मा रोड), ‘एक बात है कहने की आँखों से कहने दो’ (लता-रफ़ी, फ़िल्म-सैमसन), ‘आ जा रे मेरे प्यार के राही’ (लता-महेंद्र, फ़िल्म-ऊँचे लोग), ‘दिल का दिया जला के गया’ (लता, फ़िल्म- आकाशदीप) जैसे गीत हैं।
लता मंगेशकर के एकल गीतों की समृद्ध विरासत में चित्रगुप्त का एक बड़ा भाग शामिल है। जब भी लता मंगेशकर की संगीत-यात्रा का विमर्श जुटाने बैठते हैं तो वहाँ नौशाद, सी रामचन्द्र, शंकर-जयकिशन, हेमन्त कुमार, एसडी बर्मन, रोशन, मदन मोहन एवं लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल के बनाये हुए गीतों को ही एकांगी भाव से इस मूल्यांकन का आधार चुन लेते हैं, जबकि सच्चाई यह भी है कि इस फ़ेहरिस्त में चित्रगुप्त को शामिल किये बग़ैर यह विमर्श पूरा होता हुआ दिखाई नहीं देता है
उनके सैकड़ों ऐसे मधुर गानों को जोड़ा जा सकता है जिनको लता मंगेशकर, मुकेश, मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, महेंद्र कपूर, आशा भोंसले एवं उषा मंगेशकर की आवाज़ों में स्वरबद्ध किया गया है. चित्रगुप्त ने अपनी हरेक फ़िल्म को अनोखे ढंग से मेलोडी प्रधान बनाया है, चाहे वह किसी भी बैनर की फ़िल्म क्यों न रही हो।
उनके पुत्र आनंद श्रीवास्तव व मिलिंद श्रीवास्तव की “आनंद-मिलिंद” के रूप में मशहूर संगीतकार जोड़ी रही है।
भारतीय सिनेमा और संगीत की खुशबूदार दुनिया के महान् बादशाह चित्रगुप्त श्रीवास्तव की जन्म जयंती पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।
रिपोर्टर – परशुराम वर्मा