आँवला – सम्पूर्ण विश्व में वेद विज्ञान तथा भावातीत ध्यान के माध्यम से भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान को पुनर्स्थापित करने वाले महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी, 1918 को जबलपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। यह स्वामी विवेकानन्द का भी जन्म दिन है; और इन दोनों ही संन्यासियों ने विश्व भर में हिन्दू धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की पताका को फहराने का पुण्य कार्य किया।
महर्षि का प्रारम्भिक नाम महेश प्रसाद वर्मा था। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से गणित और भौतिकी की पढ़ाई की थी। इसके साथ ही उन्होंने हिन्दू धर्म ग्रन्थों का भी गहन अध्ययन किया। अध्यात्म की ओर उनकी रुचि बचपन से ही थी। संन्यास लेने के बाद वे इस पथ पर और तीव्रता से बढ़ते गये।
हिमालय और ऋषिकेश में उन्होंने लम्बी साधना की। ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द के बाद उन्हें ही इस पीठ पर प्रतिष्ठित किया जाने वाला था, पर किसी कारण से यह हो नहीं पाया। कुछ लोगों का मत है कि उनके जन्म से ब्राह्मण न होने के कारण ऐसा हुआ।
पर इससे महेश योगी की साधना में कोई अन्तर नहीं आया। उन्होंने भारत के साथ ही विदेशों में अपना ध्यान केन्द्रित किया और नीदरलैण्ड में अपना केन्द्र बनाया। यहाँ उन्होंने ध्यान, प्राणायाम और साधना के अपने अनुभवों को ‘भावातीत ध्यान’ के रूप में प्रसारित किया।
इससे मानव बहुत आसानी से अपनी आन्तरिक चेतना की उच्चतम अवस्था में पहुँच जाता है। यह भौतिकता, भागदौड़ और उन्मुक्त यौनाचार की चकाचौंध में डूबे खण्डित परिवार वाले पश्चिमी जगत के लिए नयी चीज थी। इसलिए उनके पास आने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी।
महर्षि महेश योगी के साथ भावातीत ध्यान करने वाले अनुभव करते थे कि वे हल्के होकर धरती से कुछ ऊपर उठ गये हैं। उनका मत था कि ध्यान का उपयोग केवल अध्यात्म में ही नहीं, तो दैनिक जीवन में भी है। इससे मानव की आन्तरिक शक्तियाँ जाग्रत होती है, जिससे वह हर कार्य को अधिक सक्रियता से करता है।
इससे जहाँ एक ओर उसका जीवन उत्कृष्ट बनता है, वहाँ उसे अपने निजी कार्य में भी आशातीत सफलता मिलती है। कुछ ही समय में ध्यान की यह विधि अत्यधिक लोकप्रिय हो गयी। 1960-70 के दशक में विश्व प्रसिद्ध बैण्ड वादक बीटल्स, रोलिंग स्टोन्स, मिक जैगर और प्रसिद्ध लेखक दीपक चोपड़ा आदि ने महर्षि के सान्निध्य में इस विधि को सीखा। इससे महर्षि की ख्याति चहुँ ओर फैल गयी।
उन्होंने विश्व में भारतीय संस्कृति, वेद और अध्यात्म पर आधारित रामराज्य की स्थापना का लक्ष्य लेकर काम किया। उनके अनुयायी भी राम ही कहलाते हैं। उन्होंने ‘राम मुद्रा’ का भी प्रचलन किया। महर्षि ने भारत और शेष दुनिया में हजारों विद्यालय और विश्वविद्यालयों की स्थापना की, जहाँ सामान्य शिक्षा के साथ योग एवं ध्यान की शिक्षा भी दी जाती है।
महर्षि महेश योगी एक सच्चे वेदान्ती थे। वे अतीत को स्वयं पर हावी होने देने की बजाय वर्तमान और भविष्य पर अधिक ध्यान देने को कहते थे। वे लोगों से सदा हँसते हुए मिलते थे। इसलिए उन्हें ‘हँसता हुआ गुरु’ भी कहा जाता था। 6 फरवरी, 2008 को नीदरलैण्ड में ही उनका देहान्त हुआ। उनके पार्थिव शरीर को प्रयाग लाकर उनके अरैल स्थित उसी आश्रम में अन्त्येष्टि की गयी, जहाँ से उन्होंने अपनी अध्यात्म-यात्रा प्रारम्भ की थी।
रिपोर्टर – परशुराम वर्मा