अर्जक संघ और रामस्वरूप वर्मा: उपेन्द्र पथिक

आज़ादी के बाद भारत में समाज सुधार की आवश्यकता थी जिसे जाने माने समाज सुधारक और मानववादी दार्शनिक रामस्वरूप वर्मा जी ने अर्जक संघ की स्थापना करके पूरा किया. भारतीय समाज में पुनर्जन्म, भाग्यवाद, जातिगत भेदभाव, छुआछूत, कर्मकांड, धर्मांधता, कुरीतियां, सामंतवाद, विषमता, निरादर और दरिद्रता समेत कई प्रकार की समस्याएं व्याप्त थी.और आज भी हैं. इसके ख़िलाफ़ बहुजन/अर्जक समाज में समय समय पर अलग-अलग नायकों के आह्वान पर आवाजें उठती रही हैं. इन्हीं नायकों में जाने माने समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ, विद्वान लेखक, कुशल पत्रकार, वैज्ञानिक चेतना के वाहक, क्रांतिकारी, आंदोलनकारी महामना रामस्वरुप वर्मा का नाम उल्लेखनीय है।


महामना रामस्वरूप वर्मा का जन्म कानपुर (उत्तर प्रदेश) जिला के गौरिकरण गांव के एक किसान परिवार में 22 अगस्त 1922 को हुआ था. इनके पिता वंशगोपाल के चार पुत्रों में रामस्वरूप वर्मा सबसे छोटे थे. उनकी माता का नाम सखिया था. उन्होंने वर्ष 1949 में हिंदी साहित्य में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए किया और आगरा विश्वविद्यालय से विधि स्नातक (एलएलबी) की डिग्री हासिल की. इसके अलावा वे होमियोपैथ के भी अच्छे जानकार थे.
रामस्वरुप वर्मा अमानवीयता और शोषण पर आधारित व्यवस्था का मुखर विरोध करते हुए समतामूलक समाज की स्थापना करने और मानवतावादी मूल्यों को स्थापित करने के लिए 1 जून 1968 को लखनऊ में अर्जक संघ नामक सामाजिक सांस्कृतिक संगठन की स्थापना की.
अर्जक संघ का मुख्य उद्देश्य शारीरिक श्रम करके उत्पादन और निर्माण वालों को सम्मान और उनकी उचित मजदूरी, श्रमशील कौमों की एकता, उनमें वैज्ञानिक चेतना जगाकर मानववाद की स्थापना करना, समतामूलक समाज की स्थापना करना तय किया गया.
यह संघ पिछड़े दलितों का पहला निछकका संगठन बना. संगठन द्वारा ही उन्होंने 2 जून 1969 को लखनऊ से ‘अर्जक’ हिंदी साप्ताहिक का प्रकाशन भी शुरू किया . जल्द ही यह पत्रिका पूरे उत्तर भारत में फैल गया.


वर्मा जी का मानना था कि समाज में मुख्य रुप से दो तरह के लोग पाए जाते हैं. एक अर्जक, जो शारीरिक श्रम करके जीविकोपार्जन करते हैं फिर भी उनका जीवन सुखमय नहीं है. दूसरा मानसिक श्रम करके जीविकोपार्जन करने वाले जिनका जीवन तुलनात्मक दृष्टिकोण से ज्यादा सुखी और समृद्ध है जिसे ‘अनर्जक’ नाम दिया गया.
वे गौतम बुद्ध, रविदास, कबीर, जोतीराव फुले छत्रपति शाहूजी महाराज, बाबा साहब डॉ. आंबेडकर पेरियार रामास्वामी नायकर से प्रभावित रहे. अर्जक संघ के विस्तार में बिहार लेनिन जगदेव प्रसाद, चौधरी महाराज सिंह भारती, ललई सिंह यादव आदि की भूमिका भी अहम रही. जगदेव प्रसाद से मिलकर 1972 में महामना रामस्वरूप वर्मा ने पटना में शोषित समाज दल की स्थापना की. इसके पूर्व इन्होंने उत्तर प्रदेश में समाज दल और जगदेव बाबू ने बिहार में शोषित दल बनाया था .
वे सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक, जीवन के चारों क्षेत्रों में बदलाव (क्रांति) करने के पक्षधर थे. उन्होंने अर्जक संघ और शोषित समाज दल दोनों का लिखित सिद्धांत वक्तव्य, नीति, विधान और कार्यक्रम पेश करके देश और समाज को नई दिशा दी.ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद को समाज और देश का दुश्मन मानते थे. उसकी जगह मानववाद और समाजवाद स्थापित करना चाहते थे.


उनका राजनीतिक और सामाजिक जीवन बिल्कुल सादगीपूर्ण और सिद्धांतयुक्त रहा . ईमानदार व्यक्तित्व के धनी और त्याग मूर्ति थे. सर्वप्रथम वे सोसलिस्ट पार्टी से जुड़े . और विधायक, मंत्री भी बने. सिद्धांत के मामले में लोहिया जी से कई बार तर्कपूर्ण बहस भी हुई उन्हें कथनी और करनी में अंतर समझ में आया तब लोहिया जी के मरने के उपरांत 1969 में एक अलग समाज दल बनाया. वर्मा जी 1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे. उन्होंने मंत्री रहते हुए बगैर कोई नया टैक्स लगाये मुनाफे का बजट पेश करके देश के अर्थशास्त्रियों को हैरत में डाल दिया. उन्होंने राजकोषीय घाटे को कम करने से लेकर सरकारी राशि के अपव्यय पर नियंत्रण का जनपक्षीय तरीका इजाद किया था. मंत्रालय से सभी अंग्रेजी टाइपराइटर को नीलाम करके हिंदी टाइपराइटर खरीदवाया ताकि सारा कामकाज हिंदी में हो. हिंदी को राज काज की भाषा बनाने के लिए मंत्री रहते दिल्ली में गिरफ्तारी दी. कांग्रेस के प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री पद का लालच भी दिया गया पर वे दल बदलकर कॉंग्रेस में नही गए. हालांकि राजनीति में आने से पहले उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की लिखित परीक्षा उत्तीर्ण की. लेकिन तब तक सामाजिक राजनीतिक आंदोलन में दिलचस्पी इतनी बढ़ गई थी कि वह इंटरव्यू देने ही नहीं गए.
उनकी शादी के करीब एक दो वर्ष बाद ही उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी पर सिद्धांत के पक्के वर्मा जी ने परिवार के लाख कहने पर भी दूसरी शादी नहीं की,और पूरा जीवन विधुर ही रहे. पर जीवन में किसी प्रकार का कलंक नहीं लगने दिया. रामस्वरूप वर्मा महामना बुद्ध और डॉ. आंबेडकर के विचारों से काफी प्रभावित थे. उन्होंने दिन-रात एक करके दर्जनों किताबों की रचना की. इनमें मानववाद बनाम ब्राह्मणवाद, “ब्राह्मण महिमा क्यों और कैसे?”, “मानववादी प्रश्नोत्तरी”, “क्रांति क्यों और कैसे?”, “मनुस्मृति राष्ट्र का कलंक”, “निरादर कैसे मिटे?”, और “अछूतों की समस्या और समाधान” आदि शामिल हैं.


रामस्वरूप वर्मा लिखते हैं कि- “सामाजिक जागरूकता सामाजिक परिवर्तन को ला सकती है और सामाजिक परिवर्तन राजनीतिक परिवर्तन को संचालित करता है. इसलिए सामाजिक परिवर्तन के बिना राजनीतिक परिवर्तन होता है तो वह दीर्घकालिक नहीं होगा.”
आगे जातिवाद पर लिखते हुए वे इस तरह मुखर होते हैं– “अगर पोटेशियम सायनाइड का टुकड़ा दूध के एक कैन में गिरा दिया जाय और फिर बाहर निकाल लिया जाय तब भी दूध जहर ही होगा. इसलिए ब्राह्मणवादी मूल्य सुधार के लिए उपयुक्त नहीं है.


वर्मा जी कुर्मी जाति के थे पर वे आजीवन किसी जातीय बैठकों में नही गए जिसके कारण उनकी जाति वाले नाराज भी रहते थे. वर्मा जी आजीवन 90 प्रतिशत शोषितों, अर्जकों के शोषण और अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे. उनका मानना था कि ब्राह्मणवाद को सुधारा नहीं नकारा जा सकता है.
रामस्वरूप वर्मा के राजनीतिक जीवन की शुरुआत कानपुर के रामपुर विधानसभा से 1957 में हुई. वह 1967 से 1969, 1980, 1989 , 1991 में विधायक बने जिसमें दो बार सोशलिस्ट पार्टी से,एक बार निर्दलीय और तीन बार शोषित समाज दल से चुने जाते रहे. यह उनकी लोकप्रियता का ही परिणाम था कि उन्हें जनसमर्थन लगातार मिलता रहा.
रामस्वरुप वर्मा जी जनता की जमीन को मंदिर व मजार के लिए आवंटित करने के खिलाफ थे. उनका मानना था कि जनकल्याण के लिए स्कूल व कॉलेज ज़्यादा ज़रूरी हैं ना कि यह सब. इस संबंध में वह एक विधेयक भी लेकर आए थे.
भारतीय समाज में पुरोहितवाद हावी होने की वजह से जनता का धर्म के नाम पर लगातार शोषण होता रहा है, जिसमें तमाम कर्मकांड व कुरीतियां शामिल हैं. रामस्वरूप वर्मा ने उन कुरीतियों को व्यावहारिक धरातल पर खत्म करने का आंदोलन चलाया. मनुस्मृति और रामचरित मानस को संविधान विरोधी करार देते हुए उनके नेतृत्व में देश के कई जगहों पर होली जलाई जिसमें अर्जक संघ और शोषित समाज दल के कई लोग जेल भी गए .पुलिस की लाठियां भी खाई . इसका असर आज भी देखा जा सकता है. अर्जक संघ पद्धति से शादी और शोकसभा समाज में काफी प्रचलित हुआ है.
अर्जक पद्धति से होने वाले शादी और शोकसभा में न तो ब्राह्मण की जरूरत होती है और न मंत्रोच्चारण की. संघ का कोई भी कार्यकर्ता उसे सम्पन्न कर देता है.
कम खर्च, कम परेशानी, कम समय और मानववाद की स्थापना इस पद्धति की मुख्य विशेषता है.
इस पद्धति में दिखावा और फिजूलखर्ची पर प्रतिबन्ध है. हालांकि इनके देखादेखी दूसरे संगठन भी अब ऐसी शुरुआत कर दिए हैं .
वर्मा जी ने पुराने त्योहारों को शोषण का षड्यंत्र बताते हुए 11 त्योहार भी प्रतिपादित किया . उनकी मृत्योपरांत अर्जक संघ की राष्ट्रीय समिति ने 3 अन्य त्योहार भी तय किया. ये त्योहार भी समाज में धीरे धीरे प्रचलित हो रहा है.

निश्चित तौर पर रामस्वरुप वर्मा जी का आंदोलन भारतीय इतिहास की एक ऐसी इबारत है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
महामना रामस्वरूप वर्मा सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र में अर्जक संघ के माध्यम से मानववाद और आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्र में शोषित समाज दल के माध्यम से समाजवाद स्थापित करने के किए आजीवन संघर्षशील रहे. निरादर और दरिद्रता को वे प्रमुख समस्या मानते थे.
भारतीय समाज के लिए वर्मा जी ने जो सन्देश दिया है उससे देश और समाज सुखी और समृद्धि को प्राप्त कर सकेगा.
वर्मा जी ने अर्जक संघ के माध्यम से नारा दिया था – जानो तब मानो .
दूसरा नारा दिया-
जिसमें समता की चाह नहीं, वह बढ़िया इंसान नहीं.
समता बिना समाज नहीं, बिन समाज जनराज नहीं.
तीसरा नारा था-
दो बातें हैं मोटी मोटी, हमें चाहिए इज्जत रोटी.
ये सभी नारा काफी लोकप्रिय हुआ.
इस प्रकार, अर्जक संघ और रामस्वरूप वर्मा देश और समाज के लिए अद्वितीय रहे.

-लेखक- उपेन्द्र पथिक